एक अनुमान के मुताबिक भारत द्वारा उत्सर्जित कुल ग्रीन हाउस गैस (GHG) का आधा हिस्सा अकेले शहरी क्षेत्र द्वारा उत्सर्जित किया जाता है. सरकारी अनुमान के मुताबिक साल 2030 तक देश के शहरी क्षेत्रों में रहने वाली जनसंख्या बढ़कर 590 मिलियन हो जाएगी. ज़ाहिर है बढ़ते हुए शहरीकरण के बीच पर्यावरण का ख्याल रखने का ज़िम्मा भी भारत के शहरों पर बढ़ जाता है.
साल 2015 में लॉन्च हुए स्मार्ट सिटी मिशन में शहरों को स्मार्ट और सस्टेनेबल बनाने का वादा शामिल था. मगर इनका प्रो-एनवायरनमेंट होना भी उपर्युक्त कारण से ज़रूरी हो जाता है. इसे ध्यान में रखते हुए मिशन के शुरू होने के 4 साल बाद 2019 में क्लाइमेट स्मार्ट सिटी असेसमेंट फ्रेमवर्क (CSCAF) लॉन्च किया गया. इसमें 100 स्मार्ट सिटीज़ को 5 सेक्टर्स के आधार पर मापा गया.
- ऊर्जा और हरित भवन
- शहरी नियोजन, जैव विविधता और हरित आवरण
- गतिशीलता और स्वच्छ वायु
- जल संसाधन प्रबंधन
- कचरे का प्रबंधन
उपरोक्त असेसमेंट की पहली रिपोर्ट 2020 में प्रकाशित की गई. असेसमेंट के दूसरे चरण (CSCAF 2.0) में साल 2021 में सिटी रेडीनेस रिपोर्ट तैयार की गई. इसका मुख्य उद्देश्य शहरों में कैसे पर्यावरण को ध्यान में रखकर विकास किया जा सकता है, इस पर विचार कराना था.
स्मार्ट सिटी होने के नाते उज्जैन भी इसका हिस्सा था. इस शहर को अब तक केवल महाकाल कॉरिडोर बनने और बिगड़ने की ख़बरों के लिए जाना जाता है. मगर उज्जैन स्मार्ट सिटी के तहत 61 एरिया बेस्ड डेवलपमेंट प्रोजेक्ट थे. इनकी लागत 1 हज़ार 57 करोड़ रूपए थी. वहीं शहर के 35 पैन सिटी प्रोजेक्ट्स की लागत 599 करोड़ थी. अतः कुल 1 हज़ार 56 करोड़ की लागत से 96 प्रोजेक्ट्स यहाँ शुरू किए गए. संसद में हाल ही पेश हुई संसदीय समिति की रिपोर्ट के अनुसार इनमें से 73 प्रोजेक्ट्स पूरे हो चुके हैं. ऐसे में यह देखना दिलचस्प है कि इस शहर ने असेसमेंट से कितना सीखा? क्या यह शहर वाकई क्लाइमेट स्मार्ट सिटी बन पाया है?
असेसमेंट में उज्जैन की स्थिति
उपरोक्त मानकों पर शहरों की तैयारी को मापकर सभी चयनित शहरों को 1 से 5 स्टार के बीच रेटिंग दी गई. उज्जैन को इसमें 3 स्टार रेटिंग दी गई. यानि उज्जैन की पहचान एक ऐसे शहर के रूप में की गई जहाँ उपर्युक्त 5 मानकों से सम्बंधित समस्याओं से निपटने के लिए एक प्रशासनिक ढाँचा है. इस ढांचे में कई समितियाँ शामिल हैं.
हालाँकि रिपोर्ट में इन समितियों के स्वरुप और कार्य को लेकर बहुत स्पष्टता नहीं दिखती. साथ ही इस रेटिंग में ऐसे शहर भी शामिल हैं जिनका एक्शन प्लान बन चुका है या फिर बनने के क्रम में है. 126 में से कुल 22 शहरों को 3 स्टार रेटिंग में रखा गया.
ऊर्जा और हरित भवन
उज्जैन स्मार्ट सिटी लिमिटेड द्वारा नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ाने के लिए कुल 400 किलो वाट (KW) के सोलर पॉवर प्रोजेक्ट्स लगाया जाना था. वेबसाईट पर मौजूद जानकारी के अनुसार शासकीय उत्कृष्ट नूतन विद्यालय में सबसे बड़ा (210 KW). इसके अलावा खुद स्मार्ट सिटी के ऑफिस (USCL) में 100 KW का प्रोजेक्ट लगाया गया है.
इसके अलावा संसद में दी गई एक जानकारी के अनुसार उज्जैन ज़िले में कुल 107.4 मेगावाट के 5 पवन ऊर्जा प्रोजेक्ट भी केंद्र सरकार द्वारा घोषित किए गए हैं.
उज्जैन को ऊर्जा और हरित भवन के क्षेत्र में क्लाइमेट स्मार्ट सिटी असेसमेंट में 600 में से 375 मिले थे. इस स्कोर के सहारे इस शहर को 4 स्टार रैंकिंग भले ही मिली हो. मगर सच तो यह है कि शहर में उपयोग में आने वाली कुल ऊर्जा में नवीकरणीय ऊर्जा (Renewable energy) का हिस्सा मात्र 0.07 ही है. इस शहर में सौन्दर्यीकरण के नाम पर केवल 40 प्रतिशत एलईडी स्ट्रीट लाइट्स ही लगाई गई हैं.
यह शहर महाकाल कॉरिडोर के लिए सबसे ज़्यादा चर्चा में रहा है. मगर यहाँ के एक सामाजिक कार्यकर्त्ता नाम न छापने के वायदे के साथ कहते हैं,
“कॉरिडोर के रूप में जो चमक-धमक है, उसकी बिजली भी परम्परागत साधनों से ही आ रही है.”
भारत की तरह इस शहर के लिए भी जीवाश्म ईधन पर अपनी निर्भरता घटाना बेहद ज़रूरी है. 2019 के आँकड़े के अनुसार उज्जैन साल भर में 1.37 मीट्रिक टन CO2e ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जित करता है. इसका 71 प्रतिशत हिस्सा अकेले जीवाश्म ईधन ऊर्जा स्रोत (stationery energy) से उत्सर्जित होता है.
शहर की 10 प्रतिशत से भी कम बिल्डिंग्स ही एनर्जी एफिशिएंट या ग्रीन बिल्डिंग कहलाने लायक हैं. हालाँकि स्मार्ट सिटी लिमिटेड द्वारा 5 साल पहले 4 ऐसे प्रोजेक्ट शुरू किए गए थे जो ग्रीन बिल्डिंग कॉन्सेप्ट पर आधारित थे. इसमें नानाखेड़ा कमर्शियल कॉम्प्लेक्स का निर्माण भी शामिल था जो अब तक अधूरा है.
शहरी नियोजन, जैव विविधता और हरित आवरण
इस क्षेत्र में उज्जैन स्मार्ट सिटी का हाल बेहद खराब रहा है. शहर को 500 में से सिर्फ़ 126 नंबर मिले. सर्वे के अनुसार कुल नगर पालिक क्षेत्र का 6.87 प्रतिशत हिस्सा ही ग्रीन कवर है.अतः शहर में ग्रीन कवर वैसे भी बेहद कम है साथ ही कटते हुए पेड़ इसे और गंभीर कर देता है.
2 जनवरी 2024 को शहर के एक पर्यावरणविद अनन्य सिंह पवार द्वारा नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में एक याचिका दाखिल करते हुए कहा गया कि शहर के 2 पब्लिक पार्क में अतिक्रमण किया जा रहा है. इस पर आदेश देते हुए एक जॉइंट कमेटी को मामले में जाँच करने का आदेश दिया. इस कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में अतिक्रमण से इनकार किया. मगर यह स्वीकार किया कि इन दो पार्क कुल 32 पेड़ काटे जाने हैं.
इसके अलावा यहाँ मौजूद एक अन्य जलाशय गोविन्द सागर भी अतिक्रमण का शिकार हुआ है. एनजीटी एक्टिविस्ट बाकिर अली रंगवाला द्वारा दायर याचिका में कहा गया कि इस जलाशय में निर्माण कार्य करवाया जा रहा है साथ ही सीवेज भी छोड़ा जा रहा है. प्रशासन द्वारा शहर के जलाशयों के प्रति फ़िक्र और जागरूकता को ऐसे समझिए कि प्रशासन को इस जलाशय को पहचानने में भी दिक्कत आ रही थी.
बाकिर अली रंगवाला हमसे बात करते हुए कहते हैं,
“गोविन्द सागर धार्मिक और जैव विविधता दोनों लिहाज़ से महत्वपूर्ण है. मगर प्रशासन ने इस ओर कभी ध्यान नहीं दिया.”
धार्मिक शहर होने के कारण यहाँ पार्किंग की समस्या मुख्य है. स्मार्ट सिटी लिमिटेड द्वारा इस समस्या से निपटने के लिए चार जगह पार्किंग की सुविधा दी गई है. इन सभी पार्किंग को मिलाकर क़रीब 408 वाहनों को खड़ा करने की सुविधा दी गई है. साथ ही दर्शनार्थियों की सुविधा के लिए पार्किंग स्लॉट बुक करवाने के लिए एक एप भी डेवलप किया गया है.
गतिशीलता और स्वच्छ वायु
भारत में 13 प्रतिशत कार्बन डाई ऑक्साइड का उत्सर्जन यातायात द्वारा किया जाता है. क्या उज्जैन इस पर्यावरणीय बोझ को कम करता है? उज्जैन में हर 1000 व्यक्ति पर 0.08 बस हैं. यानि हज़ार लोगों को एक बस भी नसीब नहीं है. वहीँ शहार में केवल 113 ई-रिक्शा ही हैं. यही कारण है कि इस शहर को गतिशीलता और स्वच्छ वायु के मामले में क्लाइमेट स्मार्ट सिटी असेसमेंट में 2 स्टार रेटिंग मिली है.
स्मार्ट सिटी के पैन सिटी प्रोजेक्ट के अंतर्गत पब्लिक मोबिलिटी को बढ़ाने के लिए ‘स्मार्ट समाधान’ दिए जाने थे. इसके लिए टेंडर जारी करते हुए स्मार्ट सिटी लिमिटेड ने व्हीकल ट्रेकिंग एंड मैनेजमेंट सिस्टम, जीपीएस जैसे कई ‘समाधान’ देने की बात कही थी. इसमें मोबाइल एप (जो स्मार्ट कहलाने के लिए हर प्रोजेक्ट में लाया गया) को विकसित करना भी शामिल था. शहर को जवाहरलाल नेहरु राष्ट्रिय शहरी नवीकरण योजना (JNNURM) के तहत 39 बसें मिली थीं मगर बाद में यह भी बंद हो गईं.
मगर यह प्रोजेक्ट अभी कहाँ तक पहुंचा है इसकी जानकारी खुद स्मार्ट सिटी की वेबसाईट पर भी उपलब्ध नहीं है. शहर में ट्रांसपोर्ट नगर बनाने का भी वादा कई समय से किया गया. मगर वह आज भी वादा ही है. इसके अलावा पब्लिक साईकिल जैसे प्रयास भी किए गए. 2017 में इसके लिए भी टेंडर जारी किया गया. मगर इवेंट्स के आगे इसका पूरे शहर में लागू होना अब भी कोई सपना है.
शहर की हवा और यातायात का सीधा सम्बन्ध है. साल 2017 में शहर के 1246 वाहनों को प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा चेक किया गया. इनमें से केवल 6 वाहन ही प्रदूषण नियंत्रण के मानकों पर खरे उतरते हैं. ऐसे में शहर के पब्लिक ट्रांसपोर्ट को ठीक करना वायु गुणवत्ता पर सीधा असर डालेगा.
जल संसाधन प्रबंधन
गोविन्द सागर वाले केस से शहर में जल संसाधनों के प्रबंधन की स्थिति समझी जा सकती है. सीएससीएएफ़ सर्वे के अनुसार साल 2018 तक शहर के 52 प्रतिशत घरों में पाइप वाटर कनेक्शन था. वहीँ शहर के ट्रीटमेंट प्लांट द्वारा 54 MLD वेस्टवाटर को ट्रीट और रीयूज़ किया जाता है.
शहर से निकलने वाली क्षिप्रा नदी शहर के कुल नील क्षेत्र (blue space) का 60 प्रतिशत हिस्सा कवर करती है. इसे प्रदूषण से मुक्त करने के लिए कई प्रयास भी किए गए. मगर हाल में प्रकाशित हुई कैग (CAG) की रिपोर्ट के अनुसार क्षिप्रा नदी में प्रदूषण बढ़ा ही है. इसके अलावा जल संसाधनों के प्रबंधन के लिए सीएससीएएफ़ सर्वे के अनुसार जलाशयों का बाढ़ प्रबंधन भी करना था. अतः क्षिप्रा नदी का बाढ़ प्रबंधन ऐसे किया गया कि बीते साल ही इसके किनारे बाढ़ का शिकार हो गए.
हालाँकि इस क्षेत्र में शहर में रूद्र सागर तालाब को पुनः जीवित करना एक महत्वपूर्ण उपलब्धि रही है.
कचरे का प्रबंधन
कचरे के प्रबंधन के मामले में यह शहर बाकी पैमानों में अच्छा दिखाई देता है. सर्वे में उज्जैन को इसके लिए 5 स्टार रेटिंग दी गई. उज्जैन शहर प्रतिदिन 227.32 मीट्रिक टन ठोस अपशिष्ट उत्पादित करता है. वहीँ शहर के बाज़ार द्वारा करीब 30 मीट्रिक टन कचरा सब्ज़ी से निकलने वाले अपशिष्ट (vegetable waste) से निकलता है. इसे प्रोसेस करने के लिए शहर में बायो-मेथेनाइजेशन प्रोजेक्ट लगाया गया है. यह हर दिन 5 टन बायोडिग्रेटेबल बेस्ट को प्रोसेस करता है.
हालाँकि शहर में अब भी कोई भी वैज्ञानिक लैंडफिल नहीं है. इसे बनाने के लिए प्रपोज़ल ज़रूर भेजा गया. सर्वे में कहा गया कि घरों से एकत्रित किया जाने वाले कचरे को ले जाने वाले वाहनों (waste transportation) को और दुरुस्त किए जाने की ज़रूरत है. साथ ही सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट से होने वाले मीथेन उत्सर्जन को मोनिटर करने के लिए भी अभी शहर के पास कोई भी तरीका नहीं है.
उज्जैन में बढ़ते धार्मिक आयोजनों और दर्शनार्थियों की संख्या के चलते इसे पर्यावरण के लिहाज़ से विकसित करना महत्वपूर्ण है. शहर की पहचान क्षिप्रा नदी के किनारे बसे शहर के रूप में होती है. यह यहाँ आने वाले दर्शनार्थियों के लिए भी आस्था का केंद्र है. मगर इसका साफ़ न हो पाना एक बड़ी और मूलभूत समस्या है. वहीँ कोरिडोर की सजावट तो ठीक है मगर उसमें खर्च होने वाली बिजली चिंता का विषय है. ऐसे में ज़रूरी है कि इसे नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों को बढ़ाया जाए. शहर में निर्माण कार्य ज़रूर बढ़े हैं मगर यह भी पर्यावरण के लिहाज़ से कमज़ोर नज़र आते हैं. हालाँकि ग्रीन बिल्डिंग जैसे मामलों में मध्य प्रदेश भी बेहद पीछे है. इसके अलावा ट्रांसपोर्ट सिस्टम को दुरुस्त करना और जलाशयों को बचाना शहर की प्राथमिकता होनी चाहिए.
क्लाइमेट स्मार्ट सिटी के अधिकतर पैमानों पर उज्जैन पीछे दिखाई देता है. स्मार्ट सिटी के ज़्यादातर पैन सिटी प्रोजेक्ट धार्मिक आयोजन को इवेंट बनाने और उसके प्रमोशन पर केन्द्रित हैं. ऐसे में पर्यावरण की चिंता का मौका कम हो जाता है. स्मार्ट सिटी के ज़्यादातर प्रोजेक्ट कागज़ों में पुरे हो चुके हैं. मगर क्लाइमेट के लिहाज़ से इस शहर को स्मार्ट बनने में अभी वक़्त है.
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