मौजूदा शीतकालीन संसद सत्र के दौरान बीते 6 दिसंबर को एक सवाल का जवाब देते हुए देश के कोयला मंत्री प्रह्लाद जोशी ने बताया कि भारत सरकार आने वाले दिनों में 100 से भी अधिक कोयला खदानों की नीलामी करने वाली है. दरअसल सत्र के दौरान बेलाना चन्द्र शेखर और अमलापुरम की सांसद चिंता अनुराधा द्वारा कोयले की नई खदानों के विषय में सवाल करते हुए पूछा गया कि क्या सरकार अपने नेशनली डिटरमाइंड कंट्रीब्यूशन (NDC) के वादों को अमल में लाने को लेकर गंभीर है?
क्या है एनडीसी (नेशनली डिटरमाइंड कंट्रीब्यूशन)?
यूएनएफ़सीसीसी के शब्दों में कहें तो एनडीसी पैरिस समझौते को पूरा करने और दूर गामी लक्ष्यों को प्राप्त करने की चाभी (key) है. आसान शब्दों में इसे समझें तो यह एक दस्तावेज है जो यह बताता है कि सम्बंधित देश द्वारा साल 2020 के बाद क्लाइमेट एक्शन के रूप में कौन-कौन से कदम उठाए जाएँगे. यानि हर देश अपने इस दस्तावेज में यह बताता है कि कितने साल में उसके द्वारा कितना ग्रीन हाउस गैस का उत्पादन कम किया जाएगा.
भारत और एनडीसी
यदि भारत की बात करें तो 2 अक्टूबर 2015 में सबसे पहले एनडीसी सबमिट किया गया था. इसमें साल 2030 तक 3 लक्ष्यों को पूरा करने की बात कही गई थी. इसमें इस साल तक 40 प्रतिशत बिजली (cumulative electric power) का उत्पादन ग़ैर जीवाश्म ईधन से करने की बात थी. साथ ही भारत अपनी कुल जीडीपी में एमिशन इंटेंसिटी (emissions intensity) को साल 2005 के मुकाबले 33 से 35 प्रतिशत तक कम करेगा. इसके अलावा 2.5 से 3 बिलियन टन कार्बन डाई ऑक्साइड के लिए कार्बन सिंक का निर्माण करेगा.
लेकिन साल 2022 में भारत ने इसे अपडेट किया. अपडेटेड एनसीडी के अनुसार भारत 2030 तक एमिशन इंटेसिटी को साल 2005 के मुकाबले 45 प्रतिशत तक कम करेगा. इसके अलावा इसी अवधि में 50 प्रतिशत तक बिजली का उत्पादन ग़ैर जीवाश्म ईधन से करने की बात कही गई है.
कोयला खदान और एनडीसी
संसद में प्रस्तुत आंकड़ों के अनुसार भारत ने इस वित्त वर्ष (2023-24) के नवम्बर माह तक 84 मिट्रिक टन कोयले का उत्पादन किया है. हालाँकि यह बीते वर्ष की तुलना (116.55 मिट्रिक टन) में कम है. ऐसे में सवाल के तीसरे हिस्से जिसमें एनडीसी को लेकर सवाल पूछा गया है, का जवाब देते हुए मंत्रालय ने एनडीसी में कही गई बातों को ही दोहराया है. इसके अलावा मंत्रालय ने बताया कि साल 2005 से 2016 के बीच भारत ने एमिशन इंटेंसिटी 24 प्रतिशत तक कम की है.
हालाँकि सरकार कार्बन सिंक के सवाल पर लम्बे समय से चुप दिखाई देती है. साल 2021 में ग्लास्गो में बोलते हुए प्रधानमंत्री ने ‘पंचामृत’ एक्शन प्लान की बात करते हुए भी इसका ज़िक्र नहीं किया था. ग्लोबल फ़ॉरेस्ट वॉच के अनुसार साल 2002 से 2022 के बीच भारत में 393 हेक्टेयर प्राइमरी फ़ॉरेस्ट कम हुए हैं. वहीं साल 2022 में भारत में 117 हेक्टेयर प्राकृतिक वन कम हुए हैं. यह 62.9 मीट्रिक टन कार्बन-डाई-ऑक्साइड उत्सर्जन के बराबर है.
क्लाइमेट एक्शन ट्रैकर के अनुसार एनडीसी में मामले में भारत का प्रदर्शन बेहद ख़राब है. 2022 में भारत अक्षय ऊर्जा को अपनाने के मामले में विश्व में चौथे नंबर पर था. मगर कोयले और जीवाश्म ईधन का प्रयोग नहीं घटा है. वहीं नई कोयला खदान की नीलामी यह संकेत देती है कि आगामी दिनों में भारत में कोयले की खपत में बढ़ोत्री होगी. जिसके चलते एनडीसी का दूरगामी लक्ष्य यानि साल 2070 तक नेट ज़ीरो को हासिल करना मुश्किल दिखाई देता है.
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