हाल ही में मध्यप्रदेश के छतरपुर जिले में स्थित नैनागिरी गांव जाना हुआ। यह बक्सवाहा तहसील का हिस्सा है, वही Buxwaha जहां के जंगलों की कटाई को लेकर वर्षों से विवाद चल रहा है। ESSEL माईनिंग और आदित्य बिरला ग्रुप यहां Bunder ब्लॉक में हीरे की माईनिंग करना चाहती है। 2500 करोड़ के इस प्रोजेक्ट के लिए Buxwaha Forest के करीब 2 लाख पेड़ काटे जाने है। जिसकी वजह से यहां लगातार विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। इस क्षेत्र में मूलतः आदिवासी लोग रहते हैं, जिनका जीवन जंगलों पर ही निर्भर है। ये लोग तेंदूपत्ता, चिरौंजी और महुआ जंगलों से चुनकर लाते हैं और अपना घर चलाते हैं। खत्म होते जंगलों ने इनके अस्तित्व पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
क्या कहते हैं स्थानीय लोग?
अप्रैल की चिलचिलाती धूप में बरगद के पेड़ के नीचे बनी चाय टपरी पर कुछ लोगों को बैठा देख मैं भी उस तरफ चल पड़ा। चाय बनाने का बोलकर मैं उन्हीं लोगों के साथ बैठ गया और नैनागिरी के बारे में सवाल पूछने लगा। वहां बैठे लोगों ने बताया कि नैनागिरी में कुल 1000 लोग रहते हैं, 200 के करीब घर हैं, 37 फीसदी लोग आदिवासी समाज से आते हैं। यहां स्थित जैन तीर्थ रोज़गार का एक बड़ा ज़रिया है। माना जाता है यहां से 5 जैन मुनियों को मोक्ष प्राप्त हुआ था। जैनों के लिए यह सिद्धक्षेत्र है। बड़ी संख्या में लोग यहां दर्शन के लिए आते हैं। समय-समय पर होने वाले धार्मिक आयोजनों से स्थानीय लोगों को रोज़गार मिलता है। लेकिन यह इतना नहीं है कि साल भर इसी पर निर्भर रहा जा सके।
राधेश्य़ाम कहते हैं कि यहां पानी की समस्या बहुत ज्यादा है, इसलिए खेती भी अच्छे से नहीं हो सकती। यहां कोई तालाब नहीं है जिससे सिंचाई हो सके। बारिश ठीक ठाक हो तो फसल बोई जा सकती है, लेकिन अब वो भी नहीं होती। यहां कई सालों से सूखे जैसे हालात हैं। जमीन से पानी निकालना हर किसी के बस में नहीं है। बोरवेल लगाने पर 400 फीट पर पानी निकलता है। महुआ और तेंदूपत्ता तोड़कर घर चलता है, लेकिन जल्द वो भी नहीं रहेगा क्योंकि हमारे जंगलों को बर्बाद किया जा रहा है।
कहां से आएगा हीरे की खदान के लिए पानी?
Bunder ब्लॉक जहां पर आदित्य बिरला हीरे की माईनिंग करना चाहते हैं वो हर साल सूखे की मार झेलता है। Bunder Diamond प्रोजेक्ट के लिए हर वर्ष करीब 5.9 मिलियन क्यूबिक मीटर पानी की आवश्यकता होगी। और अनुमान है कि यह 15 साल तक चलेगा। इस क्षेत्र में पानी का केवल एक ही स्त्रोत है वो है ग्राउंड वॉटर, जिसका स्तर लगातार गिरता जा रहा है। माईनिंग प्रोजेक्ट भी ग्राउंड वॉटर का ही उपयोग करेगा, जिससे जलस्तर और गिर जाएगा। माईनिंग के कारण दूसरी पर्यावरणीय समस्याएं भी होती हैं जैसे हानिकारक कैमिकल का जलस्त्रोतों में छोड़े जाने से जल प्रदूषण और बारीक कणों की वजह से वायू प्रदूषण।
रेगिस्तान सा दिखने वाला यह इलाका मध्यप्रदेश के बुंदेलखंड का हिस्सा है, जो बरसों से पानी की समस्या से जूझ रहा है। तमाम सरकारों ने बुंदेलखंड के विकास के लिए करोड़ों रुपए खर्च करने का दावा किया लेकिन ज़मीन पर हालात ठीक नहीं है। टीकमगड़, छतरपुर, सागर, दमोह वो जिले हैं जो पानी की समस्या का सामना कर रहे हैं। सरकार विकास के नाम पर यहां हीरे के माईनिंग करना चाहती है, लेकिन जंगल काट कर। करोड़ों रुपए खर्च कर सरकार पानी की समस्या हल नहीं कर पाई, अब रोज़गार की समस्य़ा हल करने के लिए वो इस इलाके के जंगलों को तबाह कर देना चाहती है।
203 घरों के इस गांव में 2-3 दुकाने हैं, कोई भी ज़रुरी सामान लाना हो तो शहर जाना पड़ता है, जो यहां से 20 किलोमीटर की दूरी पर है। बसें भी समय-समय पर ही चलती हैं। सरकारी काम देखें तो बस कुछ हैंडपंप लगे दिखते हैं, जिनसे गांव वाले घड़ों में पानी भरकर ले जाते हैं। दूर-दूर तक बंजर ज़मीन दिखाई देती है, सूखे हुए खेत इस जगह को और उदासीन बना देते हैं।
#SaveBuxwahaForest
Buxwaha Forest की कटाई पर हाईकोर्ट से स्टे मिला है, जिसे आदित्या बिरला ग्रुप ने चैलेंज किया है। माईनिंग से होने वाले आर्थिक फायदे की तुलना में पर्यावरण को होने वाला नुकसान अधिक है। अनुमान है कि Buxwaha Forest में करीब 53.70 मिलियन टन किंबरलाईट मौजूद है, जिसमें 34 मिलियन कैरेट रफ डायमंड मौजूद हो सकते हैं। इससे पहले एक ऑस्ट्रेलियाई कंपनी ने यहां माईनिंग की योजना बनाई थी, लेकिन भारी विरोध प्रदर्शन की वजह से उन्हें यहां से जाना पड़ा था। अब 2019 में आदित्य बिरला ने यहां माईनिंग के अधिकार प्राप्त किये हैं, जिसका घोर विरोध हो रहा है।
हम यह लगातार देख रहे हैं कि सरकारें मल्टीनेशनल कपंनियों और देश के दिग्गज़ व्यापारियों के मुनाफे के लिए आदिवासियों की जमीने हड़पती जा रही है। इन प्रोजेक्ट से सरकार को भारी टैक्स मिलता है। जबकि भारतीय कानून फोरेस्ट राईट्स एक्ट 2006 आदिवासियों को जंगल पर विशेष अधिकार देता है। आदिवासी वर्षों से जंगलों पर निर्भर रहे हैं, वो जंगल को नुकसान पहुंचाए बिना उसका उपयोग करते हैं, और उसे संरक्षित रखते हैं। यह कानून सुनिश्चित करता है कि अगर आदिवासियों से उनके जंगल छीने जाएं तो उनका सही तरीके से पुनर्वास हो।
सवाल यह भी है कि सरकार क्यों आदिवासियों के विकास के लिए अभी तक कोई ठोस योजना नहीं बना पाई, क्यों वह जंगलों की कीमत पर रोज़गार की बात करती है? अभी तक बुंदेलखंड पानी की समस्या से क्यों जूझ रहा है? क्या हुआ उस हज़ारों करोड़ों के बजट का जो बुंदेलखंड के विकास के नाम पर खर्च कर दिया गया? जल मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक मध्य प्रदेश के कई जिलों में भू-जल-स्तर लगातार गिर रहा है, इसके लिए सरकार क्या कर रही है?
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