पुल को तरसता सरहदी गांव अराई मलका

रिपोर्ट: रयाज़ अहमद | अराई मलका, पुंछ, जम्मू कश्मीर | शब्बीर अहमद की बेटी के पैर में चोट लगी है, उन्होंने उसका शहर जाकर इलाज करवाया। पुंछ से 20 किलोमीटर की यात्रा कर वो जब अपने गांव अराई मलका (Arai Village) पहुंचे तो उन्हें अपनी बेटी को चारपाई पर लेटाकर घर तक ले जाना पड़ा, क्योंकि उनके गांव में सड़क तो है लेकिन पुल नहीं है, जिसकी वजह से कोई गाड़ी घर तक नहीं जाती। वो कहते हैं कि अगर पुल होता तो शायद उन्हें आज इस मुसीबत का सामना नहीं करना पड़ता।

देखिये हमारी रिपोर्ट

चारों तरफ से पहाड़ों से घिरे जम्मू कश्मीर (Jammu Kashmir) के अराई गांव में ज्यादातर जनजातीय लोग बसते हैं। पहाड़ी गांवों की जो सबसे मूलभूत आवश्यकता होती है वो है रोड कनेक्टिविटी। इस गांव के आखिरी छोर तक सड़क तो बन चुकी है लेकिन गांव को मुख्य सड़क से जोड़ने वाला पुल अभी तक नहीं बना है। इसकी वजह से लोगों को कई तरह की मुसीबतों का सामना करना पड़ रहा है। ग्राउंड रिपोर्ट की टीम ने यहां के लोगों से बात की और जाना की पुल न होने से क्या-क्या परेशानियां वो झेल रहे हैं।

अराई मलका को मुख्य सड़क से जोड़ने वाला जर्जर पुल

पहाड़ की गोद में बसे मलका को मुख्य सड़क से जोड़ता है यह तिनके सा दिखने वाला पुल, जिसपर से मुश्किल से ही कोई मोटर साईकिल गुज़र सकती है। पुल पर चलना भी जोखिम भरा जान पड़ता है। यह पुल दो गांवों को आपस में जोड़ता है, एक तरफ है अराई तो दूसरी तरफ है पंचायत मलका। दोनों ही गांवों का एक दूसरे से रोटी-बेटी का संबंध है। स्कूल आने के लिए भी बच्चों को यह पुल पार करना होता है जो खतरे से खाली नहीं है। गांव के लोग बताते हैं कि इस पुल पर कई हादसे भी हो चुके हैं।

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रुबीना कौसर कहती हैं कि पुल नहीं होने की वजह से उन्हें घर के छोटे-बड़े कामों के लिए मर्दों पर निर्भर रहना पड़ता है, अगर पुल होता तो वो खुद जाकर राशन ला सकतीं और बच्चे भी खुद से स्कूल जा सकते। छोटे बच्चों को पुल पार करवाकर स्कूल तक छोड़कर आना होता है। हाल की घटना का ज़िक्र करते हुए रुबीना कहती हैं कि एक बच्ची को भालू ने काट लिया था, उसे चार पाई पर अस्पताल लेकर गए, तब-तक काफी खून बह चुका था। पक्का पुल होता तो गाड़ी से उसे ले जाया जा सकता था।

गांव के सरपंच मोहम्मद असलम कहते हैं कि पुल के लिए उन्होंने कई बार सिफारिश की लेकिन अभी तक इसपर कोई फैसला नहीं हो सका है। सड़क तो बन गई लेकिन उसका कोई फायदा गांव वालों को नहीं मिल रहा है क्योंकि पुल नहीं है।

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गांव के बुज़ुर्ग कहते हैं कि रात बिरात अगर तबीयत खराब हो जाए तो फिर भगवान ही मालिक है। हर छोटे बड़े काम के लिए पैदल उस छोर तक जाना होता है। मौसम खराब हो तो और आफत। बर्फबारी के बाद तो मानों हम दुनिया से कट ही जाते हैं।

कुछ इस तरह तिनके के सहारे जुड़े हैं दो गांव

पहाड़ी इलाकों में जीवन वैसे ही कठिन होता है, सरकार की नीतियों की वजह से कई गांवों तक बिजली, पानी और सड़क पहुंचे, जिससे वो गांव मुख्यधारा से जुड़ सके हैं। लेकिन आज भी ऐसे कई गांव हैं जहां मूलभूत व्यवस्था न होने की वजह से वहां की आवाम मुश्किलों से दो चार हो रही है। अराई मलका में भी एक पुल न होना लोगों के विकास में अड़चन बना हुआ है। (चरखा फीचर)

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  • चरखा मीडिया के माध्यम से ग्रामीण हाशिए के समुदायों को अपने अधिकारों को पहचानने और उन्हें प्राप्त करने के लिए सशक्त बनाने के लिए प्रतिबद्ध है। http://www.charkha.org

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