दीपा दानू/ दीपा लिंगडीया | बागेश्वर, उत्तराखंड | आजादी के 70 साल बाद भी लगभग 50% भारतीय लोग पीने के पानी तक पहुंच नहीं पाते हैं. हालांकि केंद्र और राज्य स्तर पर अलग-अलग सरकारों ने इसके लिए काम किया है. लेकिन वास्तविकता यह है कि आज भी देश में लोगों, विशेषकर महिलाओं को पीने के पानी के लिए मीलों दूर पैदल चलना पड़ता है. शहरी और अर्ध शहरी क्षेत्रों की अपेक्षा देश के दूर दराज़ के ग्रामीण क्षेत्रों में इस कमी को साफ़ महसूस किया जा सकता है. हालांकि पीएम मोदी द्वारा गांव गांव और घर घर तक पीने का साफ़ पानी पहुंचाने वाली महत्वकांक्षी योजना 'जल जीवन मिशन' ने स्थिति में काफी बदलाव लाया है. इस योजना ने देश के कई ग्रामीण क्षेत्रों की हालत को पहले से बहुत बेहतर बना दिया है. अब कई ग्रामीण क्षेत्र ऐसे हैं जहां शत प्रतिशत घरों में नल से जल आता है. यह मिशन केंद्र की जल शक्ति मंत्रालय द्वारा राज्यों के साथ साझेदारी में लागू किया जाता है. इसका उद्देश्य 2024 तक देश के प्रत्येक ग्रामीण परिवार को नियमित और दीर्घकालिक आधार पर निर्धारित गुणवत्ता का पर्याप्त पेयजल उपलब्ध कराना है.
लेकिन अभी भी देश के कई ऐसे ग्रामीण क्षेत्र हैं जहां इस मिशन को लागू करने की सबसे अधिक ज़रूरत है. जिसकी कमी के कारण न केवल महिलाओं को शारीरिक रूप से कष्ट उठाना पड़ रहा है बल्कि किशोरियों की शिक्षा भी प्रभावित हो रही है. घर में पानी की कमी को पूरा करने के लिए लड़कियों को अपनी पढ़ाई छोड़नी पड़ रही है. ऐसा ही एक गांव पहाड़ी राज्य उत्तराखंड के बागेश्वर जिला स्थित गरुड़ ब्लॉक का गनीगांव है. जहां महिलाएं पीने के पानी के लिए दर दर भटक रही हैं. यह एक गांव ऐसा है, जहां पीने के पानी की सप्लाई की कोई व्यवस्था नहीं है. यहां महिलाओं और लड़कियों को दूर दूर से पानी सर पर ढो कर लानी पड़ती है.
गांव में पीने के पानी की स्थाई व्यवस्था न होने से परेशान एक किशोरी कविता का कहना है कि गांव को पीने के पानी की बहुत किल्लत झेलनी पड़ती है. घरों में नल तो लगे हुए हैं लेकिन जल के लिए हमें आज दूर दूर जाना पड़ता है, क्योंकि उस नल से पानी नहीं आता है. ऐसे में हम पानी भरें या फिर अपनी पढ़ाई करें? सुबह उठने के साथ पहले पानी भरो, फिर स्कूल जाओ फिर स्कूल से आओ और पानी भरने जाओ, घर के सदस्यों से लेकर जानवरों तक के लिए हमें पीने के पानी का इंतज़ाम करनी पड़ती है. जिसकी वजह से हमें शारीरिक कष्ट पहुंचता है.
वहीं कुमारी हेमा कहती है कि हमारे गांव में पीने के पानी का बहुत बड़ा अभाव है. हमें पानी के लिए बहुत दिक्कत झेलनी पड़ती है. वास्तव में जल ही जीवन है. जिसके बगैर जीवन की कल्पना बेकार है. इंसान हो या जानवर, सभी के जीवन में पानी की बहुत बड़ी महत्ता है. लेकिन हमारे गांव में इसी महत्वपूर्ण चीज़ की सबसे बड़ी समस्या है. निःसंदेह गांव में नल तो लगे हुए हैं, लेकिन उनमें पानी नहीं आता है. अलबत्ता, 6 महीने में एक बार, वह भी कुछ समय के लिए गलती से कभी भूले भटके आ जाता है. परंतु उसकी धार इतनी तेज़ नहीं होती है कि किसी एक परिवार की समस्या का हल हो सके. गांव में पानी न होने की वजह से महिलाओं को दूर दूर से पानी भर कर लाना पड़ता है.
इसी पर गांव की एक महिला आनंदी देवी का कहना है कि जब से मैं इस गांव में शादी कर के आई हूं, तब से पानी के लिए दर दर भटक रही हूं. गांव में पानी न होने की वजह से हमें बहुत अधिक कष्टों का सामना करना पड़ता है. घर से तकरीबन पांच किमी की दूरी तय करके हमें ऊंची नीची पहाड़ियों में चलकर पानी लेने जाना पड़ता है. जो काफी कष्टकारी है. बरसात के दिनों में फिसलन की बहुत अधिक समस्या होती है. ऐसे में सर पर पानी उठाकर लाना बहुत मुश्किल होता है. इसमें पैर फिसलने का खतरा बना रहता है. कई बार ऐसी हालत में महिलाएं फिसल का घायल भी हो चुकी हैं.
गांव की एक बुजुर्ग महिला लीला देवी कहती हैं कि हमारे गांव में पानी की बहुत दिक्कत के कारण मुझे इस उम्र में भी दूर दूर पानी लेने जाना पड़ता है. हमारे घर पर पानी के नल तो हैं, लेकिन उसमें अन्य घरों की तरह पानी नहीं आता है. बताओ हम उस नल का क्या करें, जिसमें पानी ही न आता हो? हमें कपड़े धोने के लिए भी नदियों पर जाना पड़ता है. लेकिन पीने के पानी के लिए हमें नदियों से भी दूर जाना पड़ता है. इस उम्र में हमारी जैसी महिलाओं के लिए चल पाना बहुत मुश्किल होता है. ऐसे में किसी गर्भवती महिला की क्या हालत होती होगी, इसका अंदाज़ा शहर में रहने वाले नहीं लगा सकते हैं. कई बार उन्हें ऐसी परिस्थिति में भी जाना पड़ता है तो कई बार उन्हें इसके लिए दूसरों पर निर्भर रहना पड़ता है.
ग्राम प्रधान नरेंद्र सिंह भी गनीगांव में पीने के पानी की समस्या को स्वीकार करते हुए कहते हैं कि हमारे गांव में वर्षों से पानी की बहुत दिक्कत है. जिससे गांव के लोगों खासकर महिलाओं और लड़कियों को पानी लेने के लिए बहुत दूर जाना पड़ता है. वह कहते हैं कि मैंने अपनी तरफ काफी प्रयास किया कि गांव में पानी की समस्या दूर हो जाए और लोग खुशी खुशी अपना जीवन व्यतीत करें, इसके लिए मैं संबंधित विभाग से लगातार संपर्क में हूँ, लेकिन मेरा यह प्रयास अभी तक सफल नहीं हो पाया है. वह कहते हैं कि विभाग के सुस्त रवैये के कारण ही गांव में पानी की समस्या का अभी तक स्थाई हल नहीं निकल सका है. बरसात के दिनों में पीने के पानी के लिए भी तपस्या और भी बढ़ जाती है. अब देखना यह है कि यह समस्या कब तक दूर होती है जिससे लड़कियों का समय पानी लाने में बर्बाद न हो. (चरखा फीचर)
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