भारत द्वारा नेट ज़ीरो के लक्ष्य तक पहुँचने के लिए बिजली के लिए कोयले पर निर्भरता को कम करने और ऊर्जा के गैर-जीवाश्म स्त्रोतों पर ध्यान केन्द्रित करने की बात कही गई है. ज़ाहिर है ऐसा करते हुए कोयला के उत्पादन को कम करना ज़रूरी होगा. मगर बीते बुधवार, 2 अगस्त को लोकसभा में दिए एक सवाल के जवाब में केन्द्रीय मंत्री प्रहलाद जोशी ने बताया कि देश में इस साल जून महीने तक कोयला उत्पादन 8.51 प्रतिशत तक बढ़ गया है. वहीँ बीते सालों के मुकाबले साल 2022-23 में यह उत्पादन 14.77 प्रतिशत तक बढ़ गया था.
सदन में सवाल करते हुए सांसद वरुण गाँधी, वीणा देवी और अनिल फिरोजिया द्वारा संयुक्त रूप से यह पूछा गया कि क्या सरकार द्वारा कोयले के आयात को कम करने और देश में कोयले के उत्पादन को बढ़ाने के लिए कोई कदम उठाये गये हैं? इसके जवाब में केन्द्रीय मंत्री द्वारा सदन में यह आँकड़े प्रस्तुत किए गए.
सरकार ने सदन में दिए अपने जवाब में यह बताया कि वह कोयले के उत्पादन को बढ़ाने के लिए लगातार प्रयास कर रही है. बीते मार्च में 7वें राउंड की नीलामी में सरकार ने 106 खदानों की नीलामी का निर्णय लिया था. इस दौरान केन्द्रीय कोयला एवं खदान (Coal & Mines) मंत्री प्रहलाद जोशी ने कहा था कि सरकार उन प्राइवेट प्लेयर्स को प्रोत्साहन देगी जो सबसे पहले खदानों से उत्पादन शुरू करेंगे.
खननकर्ताओं को बढ़ावा
सरकार जहाँ एक ओर प्राइवेट खननकर्ता कंपनियों को बढ़ावा देने की बात कर रही है वहीँ दूसरी ओर पब्लिक सेक्टर में भी उत्पादन को को बढ़ाने के लिए तकनीक और प्रोजेक्ट पर काम कर रही है. सदन में दिए जवाब के अनुसार कोल इंडिया लिमिटेड अपनी अंडरग्राउंड खदानों की संख्या को बढ़ाने के साथ-साथ उनमें अधिकतम उत्पादन सुनिश्चित करने के लिए मास प्रोडक्शन टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल को भी बढ़ावा देगी. इसके साथ ही एससीसीएल साल 2023-24 में अपना उत्पादन 67 मीट्रिक टन से बढ़ाकर 75 MT करने वाली है.
साल 2013-14 से साल 2022-23 के आंकड़ों को सदन में प्रस्तुत करते हुए मंत्रालय ने बताया कि बीते 9 सालों में कोयले का उत्पादन 58 प्रतिशत तक बढ़ गया है. साल 2013-14 में भारत 565.77 MT कोयले का उत्पादन कर रहा था. वहीँ 2022-23 में यह बढ़ते हुए 893.19 MT तक पहुँच चुका है.
बिजली के लिए कोयले पर निर्भरता
भारत अपनी बिजली की आपूर्ति के लिए मुख्य रूप से कोयले पर निर्भर है. आंकड़ों के अनुसार भारत में अभी लगभग 73 प्रतिशत बिजली का उत्पादन कोयले से किया जा रहा है. यह आँकड़ा पर्यावरण के लिए चिंता जनक है. ऐसा इसलिए क्योंकि कोयला सबसे ज़्यादा ग्रीन हाउस गैस (GHG) उत्सर्जित करने वाला कारक भी है. भारत द्वारा उत्पादित कुल कार्बन डाई ऑक्साइड का 64 प्रतिशत उत्सर्जन जीवाश्म ईधन और सीमेंट कारखानों के चलते होता है. ऐसे में भारत के नेट ज़ीरो के लक्ष्य तक पहुँचने के रास्ते में ऊर्जा के लिए कोयले पर निर्भर रहना एक बड़ी रुकावट के तौर पर देखा जा रहा है.
ऐसे में सवाल यह है कि क्या कोयले के उत्पादन में यह वृद्धि और नेट ज़ीरो का लक्ष्य, दोनों साथ-साथ पूरे किए जा सकते हैं? इस सवाल का जवाब देते हुए साउथ एशियन पीपल्स एक्शन ऑन क्लाइमेट क्राइसिस (SAPACC) के को-कन्वीनर सौम्या दत्ता कहते हैं कि यह दोनों बातें एक साथ किसी भी तरह से संभव नहीं हैं. दत्ता कोयले से बिजली के निर्माण और कार्बन एमिशन को सीधे तौर पर जोड़ते हुए बताते हैं,
“कोयले की कुल इनहेरिटेंस कैमिकल एनर्जी का केवल 30 से 32 प्रतिशत ही बिजली के रूप में परिवर्तित होता है. बाकि को पानी और हवा में छोड़ दिया जाता है. इसीलिए भारत में 1 किलोवाट बिजली उत्पादन के दौरान लगभग 0.9 किलो ग्राम कार्बन-डाई-ऑक्साइड निकलता है.”
उनके अनुसार आने वाले दिनों में बिजली के लिए कोयले पर निर्भरता कम होगी इसके कोई आसार नहीं दिखाई दे रहे हैं. ऐसे में नेट ज़ीरो के सभी वादे झूठे हैं.
अगले 4 साल में 30 खदान बंद करने का वादा
इस साल मई में मुंबई में एनर्जी ट्रांजिशन वर्किंग ग्रुप की तीसरी बैठक में बोलते हुए कोल मंत्रालय के सचिव अमृतलाल मीणा ने कहा कि सरकार आने वाले 3-4 सालों में लगभग 30 खदानों को बंद करेगी. सरकार इन खदानों के बंद होने पर ख़ाली हुई लगभग 2 लाख हेक्टेयर भूमि का उपयोग कृषि, वाटर बॉडी, वन निर्मित करने और अन्य पर्यावरणीय परियोजनाओं के लिए इस्तेमाल करेगी. दत्ता इस सरकारी दावे को भी कटघरे में खड़ा करते हैं. वह सरकार से सवाल पूछते हुए कहते हैं कि सरकार को यह बताना चाहिए कि क्या किसी बंद पड़ी कोयले की खदान में ऐसे जंगल का निर्माण हुआ है? वह आगे बताते हैं,
“किसी भी बंद हो चुकी कोयले की खदान में राख को ठिकाने लगाने वाली जगह (Ash Pond) और अत्यधिक मात्रा में होने वाली डंपिंग (Overflow Dumping) के कारण ज़मीन इतनी ज़हरीली हो जाती है कि वहां कोई भी पौधा बहुत साल तक नहीं उग सकता.”
भारत जलवायु परिवर्तन के गंभीर परिणाम देख रहा है. हाल ही में देश के अलग-अलग हिस्सों में आई बाढ़ और अन्य प्राकृतिक आपदाएँ इसके सबसे ताज़ा उदाहरण हैं. देश में कोयले के उत्पादन में वृद्धि के कारण कार्बन उत्सर्जन का बढ़ना इन आपदाओं को और बढ़ावा देगा. ऐसे में COP26 में भारत के दावे और उसकी औद्योगिक नीति एक दुसरे के विपरीत खड़े हुए नज़र आते हैं. तब यह सवाल मन में रह जाता है कि क्या नेट ज़ीरो को लेकर सरकार झूठ बोल रही है?
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