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ग्रेटर नॉएडा में पिछले 3 हफ्तों से हड़ताल कर रहे हैं सफाईकर्मी, 'भूखा मरने की नौबत आ चुकी है'

उत्तर प्रदेश के ग्रेटर नॉएडा के सफाईकर्मी तनख्वाह से लेकर मृत्यु के मुआवज़े तक आर्थिक रूप से बेहद संघर्ष कर रहे हैं.   

By Shishir Agrawal
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greater noida safai karmi strike

केन्द्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रायल के अनुसार देश के 766 जिलें में से 508 (करीब 66%) जिले मैनुअल स्केवेन्जिंग यानि हाथों से मैला ढोने से मुक्त हो गए हैं. देशभर में स्वच्छता अभियान जोरों-शोर के साथ चलाया जा रहा है. मगर सवाल है कि क्या इन सबके बीच सफाई कर्मियों की हालत में कोई सुधार हुआ है? खेतों से शहर का रूप ले रहे उत्तर प्रदेश के ग्रेटर नॉएडा के सफाईकर्मी बीते 17 दिनों से हड़ताल कर रहे हैं. इनसे बात करने पर मालूम होता है कि तनख्वाह से लेकर मृत्यु के मुआवज़े तक यह सफाईकर्मी आर्थिक रूप से बेहद संघर्ष कर रहे हैं.   

क्यों कर रहे हैं सफाईकर्मी आंदोलन?

“बीते एक साल से हम लोग अपनी तनख्वाह बढ़ाने की माँग कर रहे हैं. आज तक कोई सुनवाई नहीं हुई इसलिए अब हम लोग हड़ताल कर रहे हैं.” विनोद बसोर अपनी माँगों के बारे में बताते हुए कहते हैं.

वो आगे कहते हैं कि उनके जो साथी सफाईकर्मी अथोरिटी ऑफिस (ग्रेटर नॉयडा विकास प्राधिकरण) के अन्दर काम करते हैं उनकी तनख्वाह उनके जैसे बाहर काम करने वाले सफाईकर्मियों से ज़्यादा है. वह चाहते हैं कि दोनों ही तरह के सफाई कर्मियों को समान वेतन दिया जाए.

UP safai Karmchari sangh strike

विनोद के अनुसार, “अन्दर काम करने वाले कर्मचारियों को 20 हज़ार 604 रुपए तनख्वाह मिलती है. जबकि हमें केवल 14 हज़ार 255 रुपए ही तनख्वाह के रूप में दिए जाते हैं. हमारी माँग है कि हमारी भी तनख्वाह बढ़ाकर 20 हज़ार की जानी चाहिए.” 

'बच्चों को अच्छा खाना तक नहीं खिला पाते'

कैलाश, ग्रेटर नॉएडा के इकोटेक-12 इलाके में सफाई कर्मी हैं. वह यह काम बीते 20 साल से कर रहे हैं मगर अब इस काम से वो पूरी तरह निराश हो जाते हैं. हमने उनसे पूछा कि क्या वे अपने बच्चों को अच्छे स्कूल में पढ़ा पाते हैं? इस पर वह निराशापूर्वक कहते हैं,

“बच्चों को अच्छे स्कूल में पढ़ाना तो दूर की बात है. हम अपने बीवी-बच्चों को तीन टाइम अच्छा खाना भी नहीं खिला पाते हैं. हमारे बच्चों को कभी कभी भूखे भी रहना पड़ता है.”

वह प्राधिकरण के आलिशान भवन की ओर इशारा करते हुए पूछते हैं, “14 हज़ार 200 में होता क्या है? हम परेशान हो चुके हैं. मेरी उम्र बीत गई. हम बूढ़े हो गए काम करते-करते मगर इस प्राधिकरण में कोई सुनवाई नहीं होती.” 

कैलाश बेहद निराशा में कहते हैं कि यदि प्राधिकरण नहीं सुनता है तो वे भूख हड़ताल करेंगे. “यही हाल रहा तो आने वाले दिनों में हममें से कुछ लोग मरेंगे भी. अपने बच्चों को भूखे मारने से अच्छा है हम ही मर जाएँ.” भूख हड़ताल की बात पर यहाँ मौजूद सभी सफाईकर्मी हामी भरते हैं. ग्रेटर नॉएडा विकास प्राधिकरण में ही काम करने वाले दीपक कहते हैं कि वो अपने बच्चों को भी साथ में लेकर हड़ताल में बैठेंगे. 

मौत के बाद मुआवज़े के लिए संघर्ष

मंत्रालय द्वारा दिए गए एक आँकड़े के अनुसार साल 2017-22 के बीच देशभर में 325 सफाई कर्मियों की मौत सीवर या सेप्टिक टैंक साफ़ करते हुए हुई है. उत्तर प्रदेश में यह आँकड़ा 52 है. इनमें से 27 लोगों को 10 लाख का मुआवज़ा दिया गया है. मगर दीपक इन आँकड़ों पर सवाल उठाते हैं, “हमारे बहुत से साथी सफाई करते हुए नॉयडा और ग्रेटर नॉयडा में मरे हैं. मगर इन्हें आज तक मुआवज़ा नहीं मिला है.” 

सफाईकर्मी हमें बताते हैं कि पहले प्राधिकरण की ओर से सफाई कर्मियों की मौत (चाहे वह किसी भी कारण से हो) पर 5 लाख रूपए दिए जाते थे मगर उसे अब 10 लाख का दुर्घटना बीमा कर दिया गया है. यानि अब केवल ऑनड्यूटी दुर्घटना की स्थिति में ही 10 लाख रुपए दिए जाएँगे.

“प्राधिकरण को यदि दुर्घटना मुआवज़ा देना ही था तो जिनकी दुर्घटना से मौत होती है उनके लिए 10 लाख का प्रावधान अलग से कर देती और 5 लाख रुपए जो हर मौत पर दिए जाते हैं उसे वैसे ही चलने देती. यह बदलाव आने के बाद सफाई कर्मी की मौत के बाद मिलने वाली सरकारी आर्थिक सहायता न के बराबर हो गई है.” विनोद बसोर कहते हैं. 

तनख्वाह में देरी

उन्होंने हमें बताया कि सरकार द्वारा अंतिम क्रिया करने के लिए पहले 10 हज़ार रुपए की सहायता राशि दी जाती थी जो अब बंद कर दी गई है. प्रदर्शन कर रहे एक सफाईकर्मी गुस्से से पूछते हैं, “इतने साल सेवा करने का क्या कोई मोल नहीं है?” कैलाश के अनुसार इस नए नियम के तहत भी मुआवज़ा सही से नहीं दिया जा रहा है. “2-3 महीना पहले राहुल नाम के एक साथी सफाई कर्मचारी की एक्सीडेंट से मौत हुई थी. हम सबने उसके परिवार को मुआवज़ा दिलाने के लिए भाग-दौड़ की. हमने हर वो कागज़ लाए जो हम ला सकते थे मगर आज तक उसके परिवार को मुआवज़ा नहीं मिला है.” कैलाश बताते हैं. 

प्रदर्शन करने वाले ये सफाई कर्मी निजी एजेंसी द्वारा ठेकेदारी प्रथा के अंतर्गत काम कर रहे हैं. इसका अर्थ यह है कि इनके वेतन का भुगतान इन एजेंसियों द्वारा किया जाता है. यह कर्मी शिकायत करते हुए कहते हैं कि एजेंसियों द्वारा 3-3 महीने में तनख्वाह का भुगतान किया जाता है. साईनाथ सेल्स एण्ड सर्विस प्राइवेट लिमिटेड के अंतर्गत काम कर रहे एक सफाईकर्मी रतन (बदला हुआ नाम) कहते हैं कि उनको बीते 3 महीने से तनख्वाह नहीं दी गई है. तनख्वाह में अनियमितता की शिकायत करते हुए एक सफाईकर्मी कहते हैं,

“मुझे मई की तनख्वाह जुलाई में दी गई. जून और जुलाई की तनख्वाह रोक ली गई है. इस तरह हम लोगों को इन्होने परेशान कर रखा है.” 

'प्राधिकरण से ही पैसे मिलने मे देरी'

इस बारे में हमने साईनाथ प्राइवेट लिमिटेड के रविन्द्र सिंह से बात की. ग्राउंड रिपोर्ट से बात करते हुए वह कहते हैं, “प्राधिकरण से जब हमें पैसा मिलता है तब हम उनको भुगतान कर देते हैं. बहुत बार प्राधिकरण की ओर से पेमेंट लेट हो जाता है तब हम अपने पास से भुगतान करते हैं.” सिंह आगे बताते हैं,

“अप्रैल-मई का भुगतान प्राधिकरण की ओर से हमें अब तक प्राप्त नहीं हुआ है जबकि हमने अपने मजदूरों को इस महीने का भुगतान अपने पास से कर दिया है.”

वह कहते हैं कि प्राधिकरण से अनियमित भुगतान करने के सम्बन्ध में यदि शिकायत की जाती है तो वहां के अधिकारी सरकारी फ़ाइल क्लियर न होने का हवाला देकर बात टाल देते हैं.     

बेनतीजा हड़ताल

बीते 17 दिनों से चल रही इनकी हड़ताल पर अब तक कोई भी नतीज़ा निकलकर नहीं आया है. सफाईकर्मी कहते हैं कि जब वे इस बारे में अधिकारीयों से बात करने की कोशिश करते हैं तो वह सफाई कर्मचारी यूनियन के नेताओं की बात नहीं सुनते हैं. अधिकारी उनसे कहते हैं कि सीइओ साहब उनसे (सफाईकर्मियों से) नाराज़ हैं. इस पर सफाई कर्मी कहते हैं,

“सारी दुनियाँ की गंदगी हम अपने सर में उठाएँ और सीईओ साब भी हमसे ही नाराज़ होंगे. वो बताएँ कि हमने उनका बिगाड़ा क्या है?” 

इस पूरे मसले पर हमने ग्रेटर नॉयडा विकास प्राधिकरण के मुख्य कार्यपालन अधिकारी (CEO) रवि कुमार से बात करने की कोशिश की मगर प्राधिकरण की वेबसाईट पर दिए नंबर के माध्यम से उनसे संपर्क नहीं हो पाया है. संपर्क होने पर खबर को अपडेट कर दिया जाएगा.   

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