केंद्र सरकार ने 2016 में ऋिषिकेश से केदरनाथ, बरदीनाथ, यमनोत्री और गंगोत्री तक की हिंदू तीर्थयात्रियों की यात्रा सुगम बनाने के लिए हिमालयन रीजन में 889 किलोमीटर की करीब 10 मीटर चौड़ी 2 लेन रोड बनाने की योजना बनाई थी। जो अब यात्रियों के लिए खुल चुकी है। इस रोड (Char Dham all weather Road) पर कई पर्यावरणविदों ने आपत्ती दर्ज करवाई थी।
उनका कहना था कि हिमालयन रीजन में पहाड़ों को काटकर रोड चौड़ा करना आने वाले समय में बहुत बड़ा संकट पैदा कर सकता है। इससे स्थानीय लोग, पर्यटक और बायोडावर्सिटी को बहुत ज्यादा नुकसान होगा। इससे प्राकृतिक आपदाएं बढ़ेंगी। उनका आंकलन ठीक था, चार धाम रोड (Char Dham all weather Road) पर आपदा की आशंकाओं को बल दे रही हैं चट्टानों में आ रही बड़ी-बड़ी दरारें।
हिंदू वोटरों पर नज़र जमाए बैठी सरकार ने वैज्ञानिकों की चेतावनियों को दरकिनार कर अपना सपना पूरा कर लिया और एक बहुत बड़े पहाड़ी क्षेत्र को संकट में डाल दिया है। सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में इसे चारधाम से ज्यादा डिफेंस के लिए ज़रुरी प्रोजेक्ट बताकर यह केस जीत लिया लेकिन इसके परिणाम दिखने लगे हैं, वैज्ञानिकों ने एक बार फिर से समय पर कदम उठाने की चेतावनी दी है।
Char Dham all weather Road में दब गए प्राकृतिक जल स्त्रोत
दरअसल रोड चौड़ा करते समय कई गलतियां कर दी गई हैं। इसे अगर समय रहते नहीं सुधारा गया तो हमेशा बड़े हादसों की आशंका बनी रहेगी। चौड़ीकरण के समय कई जगह पानी के प्राकृतिक स्त्रोत मलबे में दब गए हैं। अब पानी इन चट्टानों के बीच जमा हो रहा है। इससे चट्टानें गीली होकर कमज़ोर हो रही हैं। साथ ही तीव्र ढलान वाली जगहों पर चट्टानों में दरार देखने को मिल रही हैं। हिमालयी क्षेत्रों में रोज़ 10-20 छोटे भूकंप आते हैं। रिक्टर स्केल पर इनकी तीव्रता 3 के आसपास होती है, इससे यह महसूस नहीं होते। इन भूकंपों की वजह से पहाड़ों में कंपन होता है। भूकंप की वजह से कमज़ोर चट्टानें गिरकर सड़क पर आ सकती हैं जिससे हादसा हो सकता है।
वैज्ञानिकों ने कहा है कि जल्द से जल्द इस तरह की चट्टानों को चिन्हित कर यहां पर चेतावनी लिखनी होगी और जो चट्टानें कमज़ोर हो गई हैं उनको गिराना होगा।
उत्तराखंड में चार धाम यात्रा शुरु हो चुकी है, इस बार बड़ी संख्या में लोग इस यात्रा के लिए पहुंचे हैं। वैज्ञानिकों ने कहा था कि इन चट्टानों को चार धाम यात्रा शुरु होने से पहले ही गिरा देना चाहिए था।
जैसे ही मॉनसून शुरु होगा चार धाम रोड की असलियत और सामने आने लगेगी। यह स्थानीय लोग और पर्यटकों के लिए जोखिम भरा हो जाएगा।
क्या हैं जोखिम?
पहाड़ के कमज़ोर हो जाने की वजह से लैंडस्लाईड जैसी घटनाएं बढ़ेंगी। प्राकृतिक जलस्त्रोतें के दब जाने से प्रेशर क्रिएट होगा, छोटी-छोटी झीलें पहाड़ में बन जाएंगी जो तेज़ बारिश होने पर टूटेंगी और मलबे के साथ बाढ़ लेकर आएंगे। पेड़ गिरने की घटनाएं बढ़ सकती हैं।
क्यों हो रहा था Char Dham all weather Road प्रोजेक्ट का विरोध?
पर्यावरण एक्टीविस्ट्स का कहना था कि पहाड़ी सेंस्टिव क्षेत्रों में सरकार केवल 5 मीटर चौड़ा रोड बनाने की इजाज़त देती है। लेकिन चारधाम के लिए 10 मीटर चोड़ा रोड बनाना चाहती है। इसकी वजह से इस क्षेत्र की बायोडावर्सिटी को खतरा होगा। हज़ारों पेड़ काटे जाएंगे जिससे नैचुरल हैबिटेट को नुकसान होगा। प्रकृति के साथ खिलवाड़ का नतीज़ा बाद में इस रोड का फायदा उठा रहे लोगों को ही उठाना पड़ेगा।
लेकिन सुप्रीम कोर्ट में सरकार ने कहा कि यह रोड (Char Dham all weather Road) सिर्फ तीर्थयात्रियों को ही नहीं सेना के लिए भी मददगार साबित होगा। इससे देश पर संकट के समय असला बारुद सीमा तक ले जाने और सेना के मूवमेंट में फायदा होगा। सीमा पर चीन के आक्रामक तेवर देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सभी पर्यावरणीय चिंताओं को दरकिनार कर सरकार के पक्ष में फैसला सुना दिया।
दुर्घटानओं से बचने के लिए क्या किया जाना चाहिए?
सरकार पहले ही सेंसिटिव ज़ोन की पहचान कर वहां चेतावनियां लगाए और किसी भी आपदा के लिए तैयार रहे। जो चट्टानें गिर सकती हैं उन्हें पहले ही गिरा दिया जाए। साथ ही बायोइंजीनियरिंग मैथड जैसे हाईड्रो सीडिंग की मदद से यहां के फ्रैजाईल स्लोप पर पेड़ पौधे लगाने का काम शुरु करे ताकि चट्टानों को खिसकने से रोका जा सके। पहाड़ को केवल पेड़ों की जड़े हीं बांधे रख सकती हैं। पुरानी जड़ों के नष्ट हो जाने पर नए पेड़ लगाना ही एक मात्र उपाय है।
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