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अपने एशियाटिक लायंस को बचाने की जगह दूसरे देश से चीते क्यों ला रहा है भारत?

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एशियाटिक शेरों (Asiatic Lions) की दहाड़ 20वी सदी के पहले तक मध्य, पूर्व और उत्तरी भारत में भी सुनी जाती थी। लेकिन अब ये केवल गुजरात के गिर फॉरेस्ट में ही सिमट कर रह गए हैं। भारत में कुल 600 एशियाटिक लायंस ही बचे हैं।

जेनेटिक डायवर्सिटी नहीं होने की वजह से गिर के शेर जल्दी दम तोड़ देते हैं। इनको बचाने का केवल एक ही तरीका है कि एक जैसे जींस वाले शेरों को सेपरेट कर दिया जाए। और शेरों में जेनेटिक डायवर्सिटी को बढ़ाया जाए।

साल 1995 से गिर के शेरों को दूसरे राज्यों में भेजने की मांग जारी है, लेकिन गुजरात सरकार इसके लिए तैयार नहीं है, वो कहते हैं कि एशियाटिक लायंस (Asiatic Lions) गुजरात के परिवार का हिस्सा है और परिवार के सदस्य को दूर नहीं भेजा जाता। 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार को एशियाटिक लायंस 6 महीने के अंदर मध्यप्रदेश के कूनों अभ्यारण भेजने को कहा था।

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मध्यप्रदेश के कूनो अभ्यारण को एशियाटिक लायंस (Asiatic Lions) के लिए तैयार किया गया, इसके लिए आसपास के गांव भी खाली करवाए गए। शेरों को मध्यप्रदेश न भेजना पड़े इसके लिए केंद्र सरकार ने नमीबिया से अफ्रीकी चीते इंपोर्ट करने का प्लान बनया ताकि एशियाटिक लायंस के मुद्दे से ध्यान भटकाया जा सके।

एक्सपर्ट्स का मानना है कि चीतों के आने से कूनो अभ्यारण में टॉप प्रीडेटर की कमी तो पूरी हो जाएगी लेकिन दूसरे महाद्वीप से लाए गए चीते यहां कितने दिन ज़िंदा रहेंगे कहा नहीं जा सकता। इससे पहले अफ्रीकी चीतों को मालावी भी ट्रांस्फर किया गया था, वहां 20 फीसदी चीतों की मौत हो गई थी। चीते नए पर्यावरण में इतनी आसानी से नहीं ढलते। कूनों फॉरेस्ट को एशियाटिक लायंस (Asiatic Lions) के हिसाब से तैयार किया गया, इसका मकसद भारत के शेरों को बचाना था। अब सरकार करोड़ों रुपए और खर्च कर चीते लेकर आ रही है। इसके लिए कम से कम 30 चीते ज़रुरी माने गए हैं, जिन्हें सरकार समयबद्ध तरीके से इंपोर्ट करेगी। मध्यप्रदेश सरकार के पास पहले से ही फंड्स की कमी है। चीतों का मैनैजमेंट भी महंगा पड़ने वाला है।

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इन्हें नमीबिया से ग्वालियर एयरपोर्ट लाया जाएगा, फिर यहां से इन्हें खास वैन में रखकर कूनो लाया जाएगा। यहां इन्हें कुछ महीने पहले क्लोज़्ड फेंस में रखा जाएगा। क्योंकि चीते हमेशा अपने घर लौटने की कोशिश करते हैं। जब वे यहां के एनवायरमेंट के हिसाब से खुद को ढाल लेंगे उसके बाद इन्हें जंगल में छोड़ा जाएगा। यहां उन्हें शिकार के लिए जंगल में मौजूद चीतल का सामना करना होगा जो उनके पुराने घर में नहीं पाए जाते थे। कूनो अभ्यारण में पहले से लेपर्ड मौजूद हैं जिन्हें दूसरे जंगल ले जाना होगा वरना चीते और लेपर्ड के बीच शिकार के लिए प्रतिस्पर्धा पैदा हो जाएगी।

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दुनिया में पहली बार चीतों को एक महाद्वीप से दूसरे महाद्वीप लाया जा रहा है, इस प्रोजेक्ट पर पूरी दुनिया की नज़र होगी। सबसे बड़ा सवाल है कि सरकार जो पैसा पहले से खतरे का सामना कर रहे वाईल्ड एनीमल्स को बचाने में कर सकती थी, उसे एक नए जानवर पर खर्च कर रही जो ज्यादा चुनौतीपूर्ण कार्य है।

कूनों को एशियाटिक लायंस (Asiatic Lions) को बचाने के लिए तैयार किया गया था, लेकिन ऐसा लगता है कि गुजरात सरकार को शेरों के संरक्षण से ज्यादा इंट्रेस्ट अपनी शान बढ़ाने में हैं।

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Author

  • Pallav Jain is co-founder of Ground Report and an independent journalist and visual storyteller based in Madhya Pradesh. He did his PG Diploma in Radio and TV journalism from IIMC 2015-16.

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