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अंतरिक्ष पार्श्वनाथ के लिए जैन धर्म के दो पंथों में खूनी संघर्ष

महाराष्ट्र के सिरपुर में स्थित अंतरिक्ष पार्श्वनाथ मंदिर में जैन धर्म के दो पंथ श्वेतांबर और दिगंबर के बीच का विवाद 20 मार्च 2023 को खून खराबे पर उतर आया।

By Ground report
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antariksha parshwanath temple controversy

जैन धर्म को दुनिया का सबसे शांति प्रिय धर्म माना जाता है, मन वचन और कर्म से हिंसा करना जैन धर्म में पाप माना जाता है। लेकिन जब मंदिर और मूर्तियों की बात आती है तो यह धर्म भी बाकियों की ही तरह हिंसा पर उतर आता है। महाराष्ट्र के सिरपुर में स्थित अंतरिक्ष पार्श्वनाथ मंदिर में जैन धर्म के दो पंथ श्वेतांबर और दिगंबर के बीच का विवाद 20 मार्च 2023 को खून खराबे पर उतर आया। झगड़े में दोनों पंथ के लोगों ने एक दूसरें पर रॉड और ईंटो से हमला किया।

दरअसल इस मंदिर को लेकर दोनों पंथ के बीच विवाद सदियों पुराना है। दोनों ही पंथ मंदिर पर अपना अधिकार चाहते हैं।

क्या है अंतरिक्ष पार्श्वनाथ को लेकर विवाद?

महाराष्ट्र के कोलापुर से 37 किलोमीटर दूर सिरपुर में स्थित अंतरिक्ष पार्श्वनाथ तीर्थ के दरवाज़े पिछले 42 सालों से जैन धर्म के श्वेतांबर और दिगंबर पंथ के बीच विवाद के चलते बंद थे। यहां श्रद्धालु केवल एक खिड़की से ही जैन धर्म के 23वे तीरथंकर भगवान पार्श्वनाथ की प्राचीन मूर्ती के दर्शन कर पाते थे। साल 1905 में दोनों पंथ के बीच एक समझौता हुआ था, जिसके तहत बारी-बारी से दोनों समुदाय के लोग यहां पूजा अर्चना कर सकते थे।

17 जुलाई 1918 में श्वेतांबर जैन समाज इस मंदिर पर पूर्ण अधिकार के लिए अपील डालता है। जिसका फैसला श्वेतांबर पंथ के पक्ष में आता है।

इसके बाद 1923 में दिगंबर जैन समुदाय ऊपरी कोर्ट में इस फैसले के खिलाफ अपील करता है।

साल 1948 में नागपुर हाई कोर्ट भी श्वेतांबर पंथ के ही पक्ष में फैसला देता है।

साल 1959 तक दोनों समुदाय के लोग शांतिपूर्ण ढंग से पूजा अर्चना करते हैं लेकिन उसके बाद फिर से मामला न्यायालय में पहुंच जाता है।

सुप्रीम कोर्ट का अंतरिम आदेश

22 फरवरी 2023 को सुप्रीम कोर्ट ने दोनों पंथ के बीच के विवाद को सुलझाने हेतु एक अंतरिम आदेश दिया है, जिसके अनुसार मंदिर का मैनैजमेंट और मूर्ती पर श्वेतांबर जैन समाज का अधिकार है, जबतक इस केस पर अंतिम फैसला नहीं आता।

दिगंबर जैन समाज 1905 में दोनों पंथ के बीच हुए समझौते के अनुसार मंदिर में पूजा पाठ कर सकता है। लेकिन मूर्ती का स्वरूप बदले बिना।

श्वेतांबर जैन समाज के लोगों को मूर्ती पर लेप-प्लास्टर चढ़ाने की इजाज़त दी गई है, ताकि मूर्ती को खराब होने से बचाया जा सके।

11 मार्च 2023 को अंतरिक्ष पार्श्वनाथ मंदिर की चाबियां श्वेतांबर जैन समाज के 98 वर्षीय श्री सकरचंद भाई को पुलिस द्वारा सौंपी गई। 12 बजकर 39 मिनट पर मंदिर के दरवाज़े 42 साल बाद खोले गए।

मंदिर के ट्रस्ट और मैनेजमेंट ने मूर्ती पर प्लास्टर के लिए अगले 50-60 दिन तक के लिए मंदिर को बंद रखने की घोषणा की है, इसका अधिकार उन्हें सुप्रीम कोर्ट से प्राप्त हुआ है।

कोर्ट के आदेश का उल्लंघन

कोर्ट के आदेश की अवहेलना करते हुए दिगंबर जैन समुदाय के लोग 14 मार्च 2023 को मंदिर में घुस गए। इस वजह से मूर्ती पर प्लास्टर चढ़ाने की प्रक्रिया शुरु नहीं हो सकी।

दिगंबर जैन समुदाय के लोगों का आरोप है कि श्वेतांबर जैन समुदाय के लोग लेप के बहाने मूर्ती के मूल स्वरुप को बदलना चाहते हैं। और इसे जबरन श्वेतांबर मूर्ती बनाना चाहते हैं।

दिगंबर समुदाय ने सुप्रीम कोर्ट से इस मामले पर जल्द फैसला सुनाने की अपील की है।

18 और 19 मार्च को दोनों समुदाय के बीच झड़प हुई है, इसमें लोहे की रॉड और ईंटो से हमला किया गया।

फिर समझौता

20 मार्च को दोनों समुदायों के बीच समझौता हुआ है जिसके तहत अब प्लास्टर 23 मार्च को शुरु होगा। श्रद्धालु इस दौरान मूर्ती के दर्शन कर सकेंगे।

भारत के प्लैसेस ऑफ वरशिप एक्ट 1991 के अनुसार धार्मिक जगहों की वही स्थिति बरकरार रखी जाएगी जो 15 अगस्त 1947 तक थी। किसी भी धार्मिक जगह के रिलीजियस कैरेक्टर को बदलने का अधिकार नहीं होगा। इस कानून के तहत दोनों समुदाय के लोगों को यहां पूजा अर्चना करने का अधिकार प्राप्त है। सुप्रीम कोर्ट के अंतिम फैसल में भी इसके बरकरार रहने की उम्मीद है।

श्र्वेतांबर और दिगंबर कैसे करते हैं अपनी मूर्ती की पहचान?

श्वेतांबर धर्म की मूर्तियों में कटीसूत्र और कचोटा होता है। वो अपनी मूर्तियों को नकली आंख और मुकुट पहनाते हैं, यानी श्वेतांबर मूर्तियों पर श्रंगार होता है।

दिगंबर जैन समुदाय की मुर्तियां नग्न होती हैं, उनपर कोई श्रंगार नहीं होता।

इस मूर्ती को लेकर दिगंबर जैन समुदाय दावा करता रहा है कि मूर्ती नग्न है, श्वेतांबर समुदाय ने इसे अपना बनाने के लिए लेप के बहाने कचोटा और कटीसूत्र बना दिया है।

वहीं श्वेतांबर दावा करते हैं कि यह मूर्ती गोबर और रेत की बनी है इसलिए हर 10 साल में इसपर प्लास्टर चढ़ाना ज़रुरी है, दिगंबर समुदाय कहता है कि मूर्ती ठोस पत्तथर की है।

अप्रैल के पहले हफ्ते में इस मामले की अगली सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में होगी।

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