मध्यप्रदेश के बालाघाट में रह रहे वांग की (Wang Qi) पहचान के संकट से जूझ रहे हैं। दरअसल वांग की 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान चीनी फौजी थे। उन्हें अरुणांचल प्रदेश के पास से गिरफ्तार किया गया था। उन्होंने तब बताया था की वे चीनी फौज में शामिल मैकेनिकल सर्वेयर हैं।
इसके बाद भारत ने वांग की को जासूस समझ कर गिरफ्तार कर लिया था। 1969 में वांग रिहा हुए और बालाघाट के तिरोड़ी गांव में बस गए। उन्होंने एक पेपर मिल में वॉचमैन की नौकरी कर ली, और गांव वालों ने वांग को राज बहादुर का नया नाम दे दिया। उन्होंने सुशीला मोहिते नाम की स्थानीय लड़की से विवाह किया जिसके बाद उनके 5 बच्चे भी हुए।
वांग ने 2013 में अपनी बीमार मां को देखने के लिए चीन जाने की इच्छा जताई थी लेकिन वे चीन जा नहीं सके थे। 3 साल बाद उनकी मां गुजर गईं। फरवरी 2017 में वांग को चीन जाने का मौका मिला। इस दौरान वांग अपनी पत्नी और बेटियों के साथ चीन गए। वांग (Wang Qi) का उनके गांव Xiaozhainan में काफी गर्मजोशी के साथ स्वागत हुआ। वहां 3 महीने रुक कर वे वापस आ गए। इसके बाद साल 2019 में उनकी पत्नी सुशीला का भी देहांत हो गया।
पिछले वर्ष वे अपने भाई से मिलने फिर से चीन जाना चाहते थे लेकिन चीनी दूतावास ने वांग से ये साबित करने को कहा कि वांग और राज बहादुर दो अलग-अलग नहीं बल्कि एक ही आदमी हैं। फ़ॉरेनर्स रीजनल रजिस्ट्रेशन ऑफिस (FRRO) ने उनसे कागज़ात मांगे ताकि यह साबित हो सके की राज बहादुर और वांग की एक ही व्यक्ति हैं।
हाल फिलहाल जब उन्होंने अपनी सर्विस की बकाया पेंशन की रकम मांगी तो चीन दूतावास ने उनसे कहा की वे ये साबित करें कि वे 1962 के इंडो-चाइना वॉर में पीपल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) का हिस्सा थे।
उनके बेटे विष्णु ने एक अखबार को बताया की उन्होंने दूतावास को सारे जरूरी कागज, आईडी, बैज नंबर और फोटोग्राफ्स इत्यादि दे दिए हैं, लेकिन उन्हें उनकी पेंशन अब तक नहीं मिली है।
दरअसल जंग के बाद से चीन की पीएलए ने उसके सभी गायब हुए फौजियों को मृत मान लिया है। ऐसे में आधी सदी से अधिक समय भारत में गुजारने के बाद राज बहादुर यानि वांग की को अड़चनें आ रही हैं। आने वाली 2 मई को वांग की 85 साल के हो जाएंगे, लेकिन उम्र के इस पड़ाव में भी उनका अपनी जमीन से संबंध सहज न हो पाएगा।
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