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महँगे ज़री लहँगों के पीछे के कारीगरों के हाथ ख़ाली हैं

Bhopal Zari Work: पुराने भोपाल की एक तंग गली के भीतर एक छोटे से कमरे में फ़िरोज़ अहमद कपड़े पर बारीक सुई से कारीगरी कर रहे हैं.

By Shishir Agrawal
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Bhopal Zari and Dabka Work

पुराने भोपाल की एक तंग गली के भीतर एक छोटे से कमरे में फ़िरोज़ अहमद कपड़े पर बारीक सुई से कारीगरी कर रहे हैं. फ़िरोज़ द्वारा ज़री ज़रदोज़ी के काम को अंजाम देने के बाद यह कपड़ा एक महँगे सूट में बदल जाएगा. पुराने भोपाल के इस तंग कमरे में फ़िरोज़ अपने एक और साथी के साथ रोज़ाना सूट और लहंगों में ज़री ज़रदोज़ी का काम करते हैं. बाज़ार में इन सूटों (Bhopal Zari Work) की कीमत 2 से 3 हज़ार रूपए तक है मगर फ़िरोज़ को एक सूट के 600 रूपए भी मुश्किल से ही मिलते हैं. 

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नवाबों के दौर से होता आ रहा है ज़री का काम 

भोपाल के ही श्यामला हिल्स में रहने वाली रिदा और उनकी अम्मी सितारा बी भी यही काम करती हैं. सितारा बी इस काम (Bhopal Zari Work) को बीते 40 सालों से कर रही हैं. उन्होंने ही रिदा को इसकी ट्रेनिंग दी है. रिदा इस काम के इतिहास के बारे में बताती हैं,

“अगर आप भोपाल की बेगमों की पुरानी तस्वीर देखेंगे तो उनके कपड़ों में भी आपको यही काम दिखेगा.”

वह कहती हैं कि इस काम के ज़रिए बनने वाले लहंगों, कुर्तियों और बटुओं का चलन आज भी है.यूँ तो “बाज़ार में नग के लहंगे भी हैं मगर सबसे ज़्यादा डिमांड ज़री के लहंगों की ही है.” (Bhopal Zari Work) लहंगों के साथ लगने वाला मैचिंग का बटुआ भोपाल की ख़ास पहचान है.

महिलाओं से पुरुषों की ओर जाता बाज़ार

सितारा बी ने जब ज़री का काम सीखना शुरू किया था तब महिलाएँ ही यह काम किया करती थीं. उन्होंने 40 सालों में कई लड़कियों को भी यह काम सिखाया है. मगर धीरे-धीरे यह काम घरों से बाज़ार में जाता गया. अब इस काम में महिलाओं से ज़्यादा पुरुष कारीगर हैं.

“यह काम घरेलू महिलाओं के लिए आमदनी का ज़रिया था. जो महिलाएँ परिवार के वजह से बाहर नहीं जा सकती थीं उनको घर बैठे यह काम मिल जाता था मगर अब बाज़ार में ही सब मिल जाता है तो महिलाओं के पास कोई आता ही नहीं है.” रिदा कहती हैं. 

Sitara Bi of Bhopal
सितारा बी अब दबके की कढ़ाई सिखाने की जगह सिलाई सेंटर चलाती हैं

बढ़ते बाज़ार से प्रभावित हुई हैं महिलाएँ 

सितारा बी भी पहले कढ़ाई ट्रेनिंग सेंटर चलाती थीं. उनके घर 2 बैचों में कई लड़कियां यह सीखने आती थीं मगर अब उन्होंने सिलाई का काम सिखाना शुरू कर दिया है, ट्रेनिंग सेंटर अब बंद हो चुका है.

“मेरे पास ऐसी लड़कियां आती थीं जिनको पैसे की सख्त ज़रूरत होती थी. मैने उनको मुफ़्त में सिखाया है और फिर उनको काम करने के पैसे भी दिए हैं.”

बाज़ार के विस्तार के चलते हुए घाटे के बारे में वह कहती हैं, “अब महिलाओं के पास काम नहीं है.” रिदा बताती हैं कि कारखानों में काम करने वाले पुरुष कारीगर कम पैसे में भी काम करते हैं साथ ही उन्हें घर से बाहर जाने की छूट है मगर महिलाओं के पास यह नहीं है.

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"यह मेहनत का काम है जिसमें घंटों बैठना पड़ता है"

हमारे बाद की पीढ़ी यह काम नहीं करना चाहती 

ज़री के काम वाले कुर्ते बाज़ार में महँगे दरों पर भले ही उपलब्ध हों मगर इन्हें बनाने का उचित दाम न पुरुष कारीगरों को मिलता है और ना ही महिलाओं को. “बाज़ार में जो ड्रेस 3 हज़ार की है वही हमसे ग्राहक 15 सौ में ले जाना चाहता है.” रिदा कहती हैं. वहीँ फ़िरोज़ बताते हैं,

“इस काम में पर्याप्त मज़दूरी नहीं मिलती है. यह मेहनत का काम है जिसमें घंटों बैठना पड़ता है इसलिए यह काम अब अगली पीढ़ी नहीं करना चाहती है.” 

फ़िरोज़ उत्तर प्रदेश से ताल्लुक रखते हैं. उनके अनुसार यहाँ (Bhopal Zari Work) काम करने वाले ज़्यादातर पुरुष उत्तर प्रदेश से ही आते हैं. निदा कहती हैं कि सरकार को योजनाओं के ज़रिए इस काम को करने वाली महिलाओं को आगे बढ़ाना चाहिए. इस तरह कारीगर और कला दोनों बची रहेंगी.

कला को बचाने के लिए हुए सरकारी प्रयास

भोपाल में फिलहाल साल भर में 15 करोड़ रूपए का कारोबार होता है. वहीँ केवल बटुए की बात करें तो 13 से 15 लाख रूपए का व्यापार होता है. साल 2016 में भारत सरकार के कपड़ा मंत्रालय द्वारा इस काम को बढ़ावा देने के लिए भोपाल के करोंध इलाके में एक मॉडल क्लस्टर डेवलप किया गया था. एक अनुमान के मुताबिक क़रीब इस कल से 15 हज़ार कारीगर जुड़े हुए हैं जिनमें से 850 कारीगर सीधे तौर पर इस क्लस्टर से ताल्लुक रखते हैं. इसके अलावा साल 2020 में इसे केंद्र सरकार की एक ज़िला एक उत्पाद (ODOP) योजना में शामिल किया गया था. साल 2023 में प्रदेश में आयोजित गाँधी शिल्प बाज़ार में इसे शामिल किया गया था.

देखिए वीडियो रिपोर्ट

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Tags: MP Elections 2023 Bhopal Zari Work Artists in Bhopal Rida Ali Sitara Bi Dabka Art Embroidary