बीते दिनों केरल के वायनाड में एक हाथी द्वारा पनाचीयिल अजीश (Panachiyil Ajeesh) नाम के किसान की कुचल कर हत्या कर दी गई. सोशल मीडिया में वायरल हुए वीडियों में हाथी किसान का पीछा करता हुआ दिखता है. यह शख्स जब एक घर के अन्दर दरवाज़ा फाँदकर दाख़िल होता है तब उसका संतुलन बिगड़ने से वह गिर जाता है. इसी दौरान हाथी उसे कुचलते हुआ आगे बढ़ जाता है.
इस घटना के बाद स्थानीय लोगों द्वारा वन विभाग और ज़िला प्रशासन के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन किया गया. इनके द्वारा हाथी को गोली मारने की और मृतक को 50 लाख का मुआवज़ा देने की मांग करी गई. हालाँकि स्थानीय कलेक्टर द्वारा मृतक के परिवार को 10 लाख रूपए मुआवज़ा और उसकी पत्नी को नौकरी देने की बात कही गई है. वहीँ केरल की विधानसभा में एक प्रस्ताव पारित करते हुए केंद्र सरकार से वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट में बदलाव करने की मांग की गई. प्रस्ताव में ऐसे जानवरों को मारने की अनुमति देने की मांग की गई है जो इंसान के लिए ख़तरा बन रहे हैं.
बढ़ता ह्यूमन एलिफेंट कंफ्लिक्ट
भारत में हाथी द्वारा मारे गए अजीश अकेले इंसान नहीं हैं. संसद में दिए एक जवाब के अनुसार साल 2022-23 में 605 लोगों के हताहत होने की घटना ह्ययूमन एलिफेंट कंफ्लिक्ट के चलते हुई हैं. इसमें से 22 लोग केरल के हैं. वहीँ सबसे ज़्यादा हताहत ओडिशा (148) में हुए हैं. साल 2018 से 2022 के बीच के प्राप्त आँकड़ों के अनुसार हाथियों द्वारा किए गए हमले में होने वाली इंसानी मौत का आँकड़ा हर साल बढ़ा ही है. 2018 में यह आँकड़ा 457 था. जो 2022 तक बढ़कर 605 हो गया.
भारत में हाथी
भारत हाथियों के लिहाज़ से महत्वपूर्ण देश है. एशिया में ऐसी 13 रेंज हैं जो हाथियों के लिए सबसे मुफ़ीद हैं. इनमें से 60 प्रतिशत से भी अधिक हाथी अकेले भारत में ही पाए जाते हैं. बीते दशक तक इनकी हमारे देश में संख्या 30 हज़ार तक थी. मगर कम होते जंगल और बढ़ते मानव-जानवर संघर्ष ने न सिर्फ इंसानों को बल्कि हाथियों को भी प्रभावित किया है.
जंगलों पर हुए अतिक्रमण के चलते आम तौर पर यह हाथी लोगों के खेत तक आ जाते हैं. इससे न सिर्फ फ़सल को नुकसान होता है बल्कि अक्सर इससे मानव या हाथी की जान भी चली जाती है. बिजली के तारों से करंट लगकर होने वाली मौत इसमें सबसे आम है. हालाँकि सरकारी आँकड़ों में इस कारण से होने वाली मौतों में कमी आती हुई दिखती है. संसद में 2022 में दिए गए एक जवाब के अनुसार 2018-19 में करंट के कारण देश भर में 81 हाथी मरे थे. 2021 में यह संख्या घटकर 57 हो गई. हालाँकि उस दौरान सबसे ज़्यादा मौत ओडिशा में ही हुई थी. यह दिखाता है कि जानवर की मौत का सीधा सम्बन्ध मानव-जानवर संघर्ष में होने वाली इंसानी मौत से है.
एलीफैंट कॉरिडोर्स की स्थिति
भारत में कुल 150 एलीफैंट कॉरिडोर्स हैं. यह 15 एलीफैंट रेंज स्टेट में बनाए गए हैं. मानव-हाथी संघर्ष को रोकने के लिए यह कॉरिडोर्स महत्वपूर्ण माने गए हैं. बीते साल आई एक रिपोर्ट के अनुसार इनमें से 40 प्रतिशत कॉरिडोर्स ऐसे हैं जिनका इस्तेमाल बढ़ा है. लेकिन बीते संसद सत्र में पूछे गए एक सवाल के अनुसार 29 प्रतिशत कॉरिडोर्स में अतिक्रमण बढ़ा है. वाइल्ड लाइफ ट्रस्ट ऑफ़ इंडिया द्वारा साल 2017 में किए गए एक अध्ययन के अनुसार देश के 74 कॉरिडोर्स ऐसे हैं जिनकी चौड़ाई 1 किलोमीटर से भी कम है. इसके प्रभाव को समझाते हुए वन्यजीव विशेषज्ञ सुदेश वाघमारे कहते हैं,
“कॉरिडोर की चौड़ाई जितनी कम होगी हाथियों के मानवीय बस्ती में घुसने की सम्भावना उतनी ही ज़्यादा हो जाती है.”
कानून में संशोधन से क्या बदलेगा?
केरल विधानसभा में मानव और हाथियों के संघर्ष पर जो चर्चा हुई उसमें वन्यजीव संरक्षण कानून में बदलाव करने पर ज़्यादा ज़ोर है. विधानसभा द्वारा कानून की धारा 11(1)(a) में बदलाव करने का प्रस्ताव रखा गया है. हालाँकि यह अधिकार संसद यानि केंद्र सरकार के पास होता है. इस प्रस्ताव के अनुसार स्केड्यूल एक में शामिल जानवरों को मारने का अधिकार चीफ़ वाइल्डलाइफ वार्डन से लेकर चीफ़ फ़ॉरेस्ट कंज़र्वेटर को दे दिया जाना चाहिए. हालाँकि वाघमारे मानते हैं कि ऐसा करना मुमकिन नहीं है,
“स्केड्यूल एक के जानवर को मारने की अनुमति फ़ॉरेंसिक रिपोर्ट्स के आधार पर दी जाती हैं. कोई बाघ यदि आदमखोर हो जाता है या कोई हाथी पागल हो जाता है तब भी उसे बेहोश कर एक जगह से दूसरी जगह शिफ्ट करके जानवर और मानव को बचाने की कोशिश की जाती है. जब कोई रास्ता नहीं बचता तब ही मारने के लिए अनुमति दी जाती है.”
हालाँकि विशेषज्ञ कहते हैं कि सरकार को जंगल से कब्ज़े हटाने पर विचार करना चाहिए जानवरों को मारने पर नहीं. वाघमारे के अनुसार,
“जानवर गाँवों में नहीं घुसा है. आदमी जंगलों में घुस गया है.”
वहीँ अन्य वन्यजीव विशेषज्ञ अजय दुबे कहते हैं,
"सरकार हाथियों को बचाने को लेकर तब तक गंभीर नहीं होगी जब तक वह भी लुप्तप्राय नहीं हो जाते."
दुबे मानव-हाथी संघर्ष को क्लाइमेट चेंज से जोड़ते हुए यह भी कहते हैं कि जैसे-जैसे मानवीय बस्तियों में पानी के साधन घटेंगे इंसान जंगल में नदियों की ओर बढ़ेगा. संसाधनों का यह साझा उपयोग संघर्ष को बढ़ावा देगा. अतः वह मानते हैं कि सरकार को कानून में बदलाव करने के बजाय मानवीय ज़रूरतों को पूरा करने और जंगलों में बढ़ रहे कब्ज़े को कम करने की ज़रूरत है.
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