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झारखंड में थम नहीं रहा कालाजार का प्रकोप

By Charkha Feature
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झारखंड में थम नहीं रहा कालाजार का प्रकोप

इसमें कोई दो राय नहीं है कि इस समय देश और दुनिया में कोरोना एक महामारी का रूप लिया हुआ है। जिसके उन्मूलन के लिए अलग अलग स्तर पर टीका तैयार किया जा रहा है। लेकिन इसके साथ साथ कुछ ऐसी बीमारियां भी हैं, जो चुपके से अपना पैर पसार रही हैं और लोग असमय काल के गाल में समा रहे हैं। लेकिन कोरोना के आगे यह मीडिया में हेडलाइन नहीं बन पा रहा है। इनमें सबसे अधिक कालाज़ार की बीमारी है, जो झारखंड में तेज़ी से फ़ैल रहा है। राज्य के संताल परगना प्रमंडल में आदिवासी गांव में कालाजार के रोगी अधिक पाए जा रहे हैं। वर्ष 2013 से कालाजार के रोगी के मिलने का सिलसिला शुरू हुआ और अब तक यह सिलसिला जारी है। अब तक संताल परगना में लगभग 500 से अधिक कालाज़ार के रोगी चिन्हित किए जा चुके हैं। केंद्र और राज्य सरकार ने वर्ष 2021 तक कालाजार उन्मूलन के लिए अभियान चलाया है। झारखंड के साहेबगंज, गोड्डा, दुमका एवं पाकुड़  में कालाजार के रोगी के मिलने का सिलसिला जारी है।

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विशेषज्ञों के अनुसार कालाजार वेक्टर जनित रोग है, जो संक्रमित मादा बालू मक्खी से होता है। इस संबंध में दुमका के सिविल सर्जन डॉक्टर आनंद कुमार झा ने बताया कि ग्रामीण स्तर पर कालाजार रोगी का उपचार संभव नहीं है। मरीज को अस्पताल लाना पड़ता है। कालाजार रोगी को सहिया एवं मल्टीपर्पज हेल्थ वर्कर अस्पताल लाते हैं। रोगी को एक दिन अस्पताल में रहना पड़ता है। जहां उसे एमबी ज़ोन नामक दवा दी जाती है। सिविल सर्जन ने कालाजार रोगी के लक्षण के संबंध में बताया कि रोगी को 15 दिनों से अधिक बुखार रहता है। इस दौरान उसे भूख नहीं लगती है और लगातार वजन में कमी आती रहती है। मामले की गंभीरता को देखते हुए झारखंड के कालाजार से प्रभावित जिलों में वेक्टर बोर्न डिजीज ऑफिसर को नोडल अफसर बनाया गया है। डॉक्टर अभय कुमार बताते हैं कि बालू मक्खी के संक्रमण को रोकने के लिए प्रति 10,000 की आबादी पर इंटरनल रेसीडुएल नामक दवा का छिड़काव किया जाता है। इसके लिए 15 फरवरी से यह काम सभी गांव में किया जा रहा है। इसके लिए छिड़काव टीम को स्क्वायर ट्रेनिंग दी जाती है। प्रत्येक टीम में 6 सदस्य होते हैं। इस प्रकार प्रत्येक जिले में 38 टीमों का गठन किया गया है।

डॉक्टर अभय ने बताया कि कालाजार के रोगी दो प्रकार के होते हैं। जूनोटिक और एंथ्रोपोनोटिक कालाज़ार, जिसे संक्षेप में वीएल और पीएलडीएल की संज्ञा दी जाती है। इसमें भारत में प्रायः एंथ्रोपोनोटिक कालाज़ार के ही मरीज़ होते हैं। जिनमें पोस्ट कालाज़ार डरमल लिशमैनियसिस के लक्षण उभर कर सामने आते हैं। इसमें मरीज़ के जिगर और तिल्ली में असर के साथ साथ त्वचा पर भी प्रभाव पड़ता है। उन्होंने बताया कि झारखंड से कालाजार को समाप्त करने के लिए बड़े पैमाने पर स्वास्थ्य विभाग द्वारा प्रयास किया जा रहा है। इसके लिए दुमका प्रखंड के जड़का कुरूम पहाड़ी, मुरभांगा, कोदोखिचा, बाघदुब्बी, हेट मुर्गठल्ली, मोर्तांगा, बलाबहाल एवं रोहड़ापाड़ा में अभियान चलाकर अब तक कालाजार के 25 रोगी को चिन्हित किया जा चुका है। स्टेट कालाजार पदाधिकारी डॉक्टर एसएन झा ने बताया कि कालाजार की रोकथाम के लिए माइक्रो प्लान के तहत हर एक गांव में स्प्रे का छिड़काव किया जा रहा है। इसके लिए स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारियों को प्रशिक्षण दिया गया है। उन्होंने बताया कि नियमित अंतराल पर आदिवासी गांव की सेविका और सहायिका एक्टिव केस की खोज करती है और अस्पताल लाकर मरीज़ों का उसका उपचार कराती है।

संताल परगना के आदिवासी गांव में कालाजार के रोगी अधिकतर पाए जाते हैं। दुमका प्रखंड के स्वास्थ्य पदाधिकारी डॉ जावेद ने बताया कालाजार उन्मूलन के लिए राज्य सरकार भी गंभीर है। इसके लिए मरीज़ों के खानपान के लिए सरकार की ओर से 6600 रुपए दिए जाते हैं। जिले का गोपीकंदर काठीकुंड का क्षेत्र पूर्व से ही कालाजार के लिए प्रसिद्ध रहा है। विभाग द्वारा इस क्षेत्र को डेंजर जोन के रूप में चिन्हित किया गया है। लेकिन अब तो सदर प्रखंड दुमका में भी कालाजार ने दस्तक दे दी। दुमका प्रखंड के कुरवा पंचायत के रघुनाथगंज के आदिवासी टोला में कई लोग कालाजार से ग्रसित हो चुके हैं। रघुनाथगंज के आदिवासी टोला के बुज़ुर्ग मार्शल हेंब्रम कालाजार से पीड़ित हैं। उनके पुत्र फ्रांसिस हेंब्रम बताते हैं कि उन्हें लॉकडाउन के दौरान ही कालाजार हुआ था, जिसका हाल ही में पता चला। फ्रांसिस बताते हैं कि प्रारंभ में उन्हें तेज बुखार, सर दर्द और बदन दर्द होना शुरू हुआ। उसने जड़ी बूटी का इलाज कराया लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ। बाद में उन्हें अस्पताल ले जाया गया, जहां जांच के बाद कालाजार की पुष्टि हुई। उसे अस्पताल में स्लाइन और दवा दी गई, जिससे तबियत में सुधार होने लगा। कुरुआ गांव की 35 वर्षीय हेमलता सोरेन ने बताया कि उसे शुरू शुरू में सर दर्द, भूख न लगना, कमजोरी, चल ना पाना और शरीर में हर तरह की परेशानी होनी शुरू हो गई थी। अस्पताल जाकर जब चेकअप कराया तो वह भी कालाजार से ग्रसित निकली। हेमलता बताती है कि इससे पहले 2005 में भी उसे कालाज़ार हो चुका था।

विशेषज्ञ इस क्षेत्र में कालाजार का तेज़ी से फैलने का कारण यहां अधिकतर आदिवासी का घर कच्चे मिट्टी का होना बताते हैं। जिससे घरों में नमी होती है और अंधेरा छाया रहता है। ऐसी ही जगहों पर कालाजार की बीमारी फैलाने वाली बालू मक्खी पनपती है। इससे बचने के लिए घरों में लिक्विड का छिड़काव जरूरी होता है। जिस गांव में कालाजार के रोगी पाए जाते हैं, वह सभी घरों में कम से कम लिक्विड का छिड़काव दो बार होना चाहिए, लेकिन आदिवासी घरों में ऐसा नहीं किया जाता है। अधिकतर संथाल निवासी बीमारी के इलाज के लिए डॉक्टर के पास न तो जाते हैं और न खून की जांच कराते हैं। शहरों से दूर होने के कारण संथाल गांव में लोगों का उचित रूप से हेल्थ चेकअप भी नहीं होता है, इसी कारण कालाजार का पता नहीं चल पाता है। दुमका जिले के आदिवासी टोला में कालाजार की दवा का छिड़काव नहीं होने से कालाजार रोगी की पहचान नहीं हो पा रही है। दुमका जिले के जामा प्रखंड के 68 गांव में अब तक कालाजार के रोगियों को चिन्हित किया जा चुका है।

कालाजार उन्मूलन के लिए स्वास्थ्य विभाग लगातार काम कर रहा है। इसके लिए कालाजार प्रभावित गांवों में जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है। प्रत्येक गांव में जागरूकता कार्यक्रम के तहत दीवार लेखन का काम कर रही है। स्वास्थ्य विभाग ने अभियान के तहत लोगों को यह बताया कि किसी भी व्यक्ति को ज्यादा बुखार हो तो उन्हें अस्पताल जाकर जांच कराना चाहिए। जामा के 8 नए गांव में कालाजार का प्रसार हुआ है। दलदली, हररखा, म्हारो, लकड़ा पहाड़ी, कुरूम तांड, खिजुरिया, पिपरा, कटनिया, अगुया का सर्वे किया गया है। कालाजार उन्मूलन के लिए भारत सरकार और झारखंड सरकार ने इसे समाप्त करने के लिए अभियान चलाया है। जिसे वर्ष 2021 तक पूरी तरह से समाप्त किये जाने का लक्ष्य रखा गया है। लेकिन कोई भी उन्मूलन जागरूकता के बिना संभव नहीं है। इस दिशा में स्वयंसेवी संस्थाओं को भी आगे आने और क्षेत्र को इस बिमारी से मुक्त करने में सहयोग करने की आवश्यकता है।

यह आलेख दुमका, झारखंड से शैलेंद्र सिन्हा ने चरखा फीचर के लिए लिखा है

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