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भोज वेटलैंड का कैचमेंट चुरा रहे हैं रसूखदार, एनजीटी ने जारी किया नोटिस

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भोज वेटलैंड का कैचमेंट चुरा रहे हैं रसूखदार, एनजीटी ने जारी किया नोटिस
भोज वेटलैंड का कैचमेंट चुरा रहे हैं रसूखदार, एनजीटी ने जारी किया नोटिस

भोपाल के भोज वेटलैंड के किनारे हो रहे अतिक्रमण और अवैध निर्माण के खिलाफ पर्यावरण कार्यकर्ता राशिद नूर ने नैशनल ग्रीन ट्राईब्यूनल में याचिका दायर की थी, जिसपर मंगलवार 11 फरवरी को सुनवाई हुई और कोर्ट ने बुधवार 12 फरवरी को प्रशासन को नोटिस जारी किया है। 

इस याचिका में बड़े तालाब के FTL (फुल टैंक लेवल) से 50 मीटर के दायरे में किये जा रहे घरों, फार्महाउस और रिसॉर्ट्स के निर्माण पर रोक लगाने की मांग की गई है। 

पर्यावरण कार्यकर्ता राशिद नूर के मुताबिक बड़ी झील के चारों ओर यह निर्माण कार्य तेज़ी से किया जा रहा है।  इसमें सबसे अधिक अ‍तिक्रमण सूरज नगर, बैरागढ़ और खूजरी सड़क इलाकों में हो रहा है। 

एनजीटी ने याचिका पर सुनवाई करते हुए जिला कलेक्‍टर, भोपाल नगर निगम कमिश्‍नर, स्‍टेट वेटलैंड ऑथरिटी, MOEF&CC, सेंट्रल पॉल्‍यूशन बोर्ड, मप्र पॉल्‍यूशन बोर्ड, टॉउन एंड कंट्री प्‍लानिंग डिपार्टमेंट आदि के अधिकारियों को नोटिस जारी किए हैं।

एनजीटी ने अपने ऑर्डर में कहा,

”बड़ी झील की चारों दिशा में नो कंस्‍ट्रक्शन ज़ोन और एफटीएल से 50 मीटर के दायरे में जितने भी निर्माण कार्य, अतिक्रमण, कचरे की डंपिंग और लैंडफिलिंग के अवैध कार्य हो रहे हैं, इनपर कार्रवाई की जाए। झील किनारे नियमों का उल्‍लंघन करने वालों की पहचान कर न्‍यायालय को सूचित करें।” 

एनजीटी ने संबंधित विभाग को छह सप्‍ताह का समय दिया है। इस मामले में अगली सुनवाई 2 मई को होगी। 

प्रभावित हो रही रामसर साइट

Bhoj Wetland Encroachment
नीलजी ब्रिज नाथू बरखेड़ा रोड पर अवैध निर्माण Photograph: (राशिद नूर, याचिकाकर्ता)

 याचिकाकर्ता राशिद नूर खान कहते हैं

”भोज वेटलैंड, जो एक रामसर साइट है, वह अतिक्रमण, अवैध निर्माण, वनों की कटाई और कचरा डंपिंग से प्रभावित हो रही है। यह पर्यावरण संरक्षण कानून और संविधान का उल्‍लंघन है।” 

वे प्रशासन की निष्क्रियता पर चिंता जताते हुए कहते हैं कि ”नियमों के बावूजद, निजी और सरकारी लोग संरक्षित क्षेत्रों में निर्माण कर रहे हैं, जबकि इस क्षेत्र में कई प्रभावशाली लोगों ने भी अतिक्रमण कर बंगले, फार्म हाउस और रिसाॅर्ट बना लिए है।” 

Bhopal Upper Lake Encroachment
गोरा गांव भोपाल में अवैध निर्माण Photograph: (राशिद नूर, याचिकाकर्ता)

आपको बता दें कि भोज वेटलैंड अंतर्राष्ट्रीय महत्व की रामसर साईट है, जिसमें ऊपरी और निचली झीलें शामिल हैं। यह वेटलैंड जलवायु और जैव विविधता के लिए महत्‍वपूर्ण है। यहां 266 पक्षी प्रजातियां और 700 पेड़-पौधों का घर है। झील का पारिस्थितिकी तंत्र सीवेज, फ्लाई ऐश और वनों की कटाई से निरंतर बिगड़ता जा रहा है। यह रामसर कन्‍वेंशन के नियमों का भी उल्‍लंघन है।

रसूखदारों का कब्‍ज़ा

बड़ी झील में पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम-1986, वेटलैंड (संरक्षण और प्रबंधन) नियम, 2017 और संविधान के अनुच्‍छेद 21 और 48-A के नियमों का उल्‍लंघन किया जा रहा है। 

इन नियमों के मुताबिक शहरी इलाकों में एफटीएल से 50 मीटर और ग्रामीण इलाकों में 250 मीटर के अंदर निर्माण पर रोक है। इसके बावजूद प्राइवेट बिल्‍डर और सरकारी अधिकारी द्वारा संरक्षित क्षेत्रों में अवैध रूप से ज़मीनों पर कब्‍जे किए जा रहे हैं। यहां मिट्टी और मुरम से गड्डे़ भर कर सड़कें बनाई गई और हा‍उसिंग सोसाइटियां काटी जा रही हैं। 

Waste Dumping Near Bhoj Wetland
भोज वेटलैंड के करीब कचरे की डंपिंग Photograph: (राशिद नूर, याचिकाकर्ता)

 याचिकाकर्ता राशिद के वकील हर्षवर्धन तिवारी कहते हैं 

”झील के फुल टैंक लेवल (एफटीएल) से 50 मीटर के अंदर पक्‍के घर, फार्महाउस, रिसॉर्ट और सड़कें बना दी गई हैं। प्रशासन इस मामले में कोई कार्रवाई नहीं कर रहा है।”  

वे आगे कहते हैं कि ” ऐसा शायद इस लिए हो रहा है, क्‍योंकि कई रिटायर्ड व वर्तमान अफसरों, नेता और दूसरे प्रभावशाली लोगों द्वारा यहां अतिक्रमण किया गया है।” 

Deforestation in Bhopal
भोजवेटलैंड के कैचमेंट में काटे जा रहे पेड़ Photograph: (राशिद नूर, याचिकाकर्ता)

एनजीटी ने बड़े तालाब के एफटीएल के 50 मीटर के दायरे में आने वाले सभी अतिक्रमण हटाने का आदेश नौ साल पहले दिया था। इस आदेश पर आज तक कार्रवाई नहीं की गई। उस समय भी जिला प्रशासन पर रसूखदार हावी दिखाई दिए थे। कार्रवाई की प्रक्रिया कुछ समय चली तो थी, वो भी कागजों तक ही सीमित‍ि‍ थी। 

ऐसे में यह देखना होगा कि एनजीटी के नए आदेश पर प्रशासन सख्त होगा या एक बार फिर प्रभावशाली लोगों के आगे झुक जाएगा? 

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  • Based in Bhopal, this independent rural journalist traverses India, immersing himself in tribal and rural communities. His reporting spans the intersections of health, climate, agriculture, and gender in rural India, offering authentic perspectives on pressing issues affecting these often-overlooked regions.

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