अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में भारत की अग्रणी भूमिका का दुनिया ने लोहा मानना शुरू कर दिया है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जिस प्रकार से भारत से सौर ऊर्जा में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है, उसकी चहुं ओर प्रशंसा हो रही है। अब इसका प्रभाव भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में भी नज़र आने लगा है। इसका ताज़ा उदाहरण राजस्थान का करौली ज़िला है। राजधानी जयपुर से करीब 160 किमी दूर इस ज़िला के कैलादेवी अभयारण के मध्य स्थित ग्राम बंधन का पुरा पंचायत के निभेरा गांव के लोग सोलर पंप के माध्यम से वर्षा जल का संरक्षण कर रहे हैं। उद्योगिनी संस्था द्वारा क्षेत्र में सोलर पम्प की नई तकनीकी एवं वर्षा जल के संरक्षण के लिए पोखर के निर्माण से ग्रामीणों में विकास के प्रति एक नई सोच जाग चुकी है। इससे न केवल ग्रामीण खुश है बल्कि अपने क्षेत्र के विकास के बारे में कुछ नया करने की योजना भी बना रहे हैं। इसके साथ साथ नई तकनीक के अन्य विकास कार्य जो उनकी रोजमर्रा की दिक्कतें दूर कर सकें, को भी अपनाने का प्रयास कर रहे हैं। अब जरूरत है सरकार द्वारा ग्रामीणों के लिए किये जा रहे इन प्रयासों को अधिक से अधिक बढ़ावा देने की, ताकि इससे प्रेरित होकर देश के अन्य गांव भी इसे अपना सकें।
इस संबंध में उद्योगिनी के परियोजना समन्वयक गोपाल जाधव ने विस्तार से जानकारी देते हुए बताया कि ग्राम बंधन के पूरा में संस्था ने एचडीएफसी बैंक के सहयोग से पिछले वर्ष काम शुरू किया था और इसके लिए सबसे पहले गांव में एक बड़ी तलाई (तालाब) का निर्माण कराया गया, जिसकी क्षमता 60000 क्यूबिक मीटर वर्षा जल को एकत्र करने की थी। इसके निर्माण से 23 परिवार के 200 व्यक्ति लाभान्वित हुए और उनकी 93 एकड़ भूमि में धानी, गेहूं एवं सरसों को सिंचाई का फायदा हुआ। इस तालाब के बनने के बाद उनकी 40% फसल व चारा पहले साल में ही बढ़ गया जिससे उन्हें प्रति परिवार 25000 की आय में इजाफा हुआ। यह देखकर ग्रामीणों ने संस्था से मांग की और बताया कि इस पानी को अपने खेतों तक ले जाने के लिए उन्हें डीजल पंपसेट लगाने पड़ते हैं जिसमें डीजल एवं पम्प सेट के किराये का बहुत खर्चा आता है तथा इससे फसल उगाने का खर्चा बढ़ जाता है। संस्था इसके बारे में उनकी कुछ मदद करें। इसके बाद संस्था ने गांव में तालाब के पास 4 सोलर पंप लगाए जिससे तकरीबन 200 बीघा में पानी से सिंचाई हो सके और किसानों को डीजल व किराए का खर्चा नहीं करना पड़े।
ग्रामीणों से बातचीत के दौरान बताया कि इसके लिए गाँव में एक पंचायत की गई और निर्णय लिया गया कि कुछ राशि गांव वाले भी खर्च करेंगे। तकनीकी जानकारी के लिए सोलर पंप लगाने वाली कंपनी के प्रतिनिधि को बुलाया गया और उसने बताया कि 4 पंप से ग्रामीणों की 1000 मीटर दूरी तक की जमीन की सिंचाई हो सकती है। ग्रामीणों के अनुरोध पर उद्योगिनी ने भी इस परियोजना में सहयोग करने का आश्वासन दिया और इसके लिए तैयारी शुरू की गई। गांव के 16 परिवारों की जमीन जो कि 1000 मीटर की सीमा में आती थी, के ग्रामीणों ने 20% सहयोग राशि और पानी ले जाने के लिए अपनी ओर से पाइप का सहयोग देने का निर्णय किया, बाकी सहयोग उध्योगिनी संस्था के माध्यम से कराने का निर्णय किया गया। इस संबंध में ग्राम विकास समिति के अध्यक्ष राजाराम गुर्जर ने बताया कि इस सोलर पंप से उनके क्षेत्र में हरियाली छा गई है, फसल भी अच्छी हुई है, और उनके खर्चे भी स्थाई रूप से कम हो गए हैं। इसका प्रत्यक्ष रूप से फायदा उन परिवारों को होगा जो कम फसल और अधिक लागत के कारण खेती छोड़कर काम की तलाश में पलायन कर जाया करते थे। गांव के लखपत गुर्जर ने बताया कि पानी खेत पर पहुंचने से उन्होंने इस बार सब्जी लगाई है, जिसमें उन्हें अच्छा फायदा होगा। उन्होंने मांग की कि इस तरह के सोलर पंप गाँव के अन्य तालाबों के पास भी लगाए जाएं, ताकि ग्रामीणों का डीजल पर किया जाने वाला खर्चा बच सके और वह गेहूं सरसों के साथ- साथ सब्जियां भी लगा सकें। जिससे उन्हें दोहरा लाभ हो सके और उनकी आय में भी इज़ाफ़ा हो सके।
गांव के ही बृजलाल गुर्जर ने बताया कि पहले डीजल लाने के लिए दूर करनपुर अथवा कैलादेवी जाना पड़ता था और इसमें किराए भाड़े का खर्चा भी होता था। कई बार घर में पुरुषों के नहीं होने के कारण महिलाऐं डीजल नहीं ला पाती थी जिससे समय पर फसलों को पानी नहीं मिल पाता था और वह सूख जाया करती थीं। अब गेहूं और सरसों के साथ-साथ धान की फसल के सूखने की भी संभावना खत्म हो गई हैं। उन्होंने बताया कि गांव में अधिकतर गरीब किसान हैं, जो अपनी फसल वर्षा के भरोसे करते हैं, कई बार समय पर वर्षा नहीं होने पर उन्हें किराये से डीजल पम्प लेने पड़ते हैं। लेकिन कभी कभी पैसों की कमी के कारण उन्हें डीज़ल पंप नहीं मिल पाता है, जिससे उनकी फसल सूख जाया करती है। उल्लेखनीय है कि इस क्षेत्र में भूजल काफी नीचे होने के कारण पीने के पानी व सिंचाई के लिए सभी वर्षा जल पर ही निर्भर रहते हैं। लेकिन अब ग्रामीणों ने नई तकनीक अपनाकर अपने जीवन यापन का नया रास्ता खोज लिया है। अब इस सोलर पंप को देखने के लिए आसपास के ग्रामीण भी गांव में आते हैं, और उनका कहना है कि सरकार या संस्था उनके क्षेत्र में भी इस तरह के सोलर पंप लगाए ताकि खेती को पानी मिल सके और खर्चा कम हो सके।
इस संबंध में परियोजना के राज्य समन्वयक वैभव सिंह ने बताया कि कैलादेवी अभयारण के सभी गांवों में कुसुम योजना के अंतर्गत सोलर पंप लगाने तथा सोलर लाइट से सूक्ष्म और लघु उद्योग शुरू करने की संभावना हैं, यदि राज्य का विद्युत् विभाग सही तरीके से विचार कर योजना बनाएं तो अभयारण्य के चारों तरफ एवं अंदर के गांव में सोलर विद्युत पहुंच सकती है और ग्रामीणों को पलायन की जगह अपनी खेती व स्वरोजगार का बड़ा फायदा हो सकता है। इसका सीधा प्रभाव गांव के विकास में देखने को मिल सकता है।
बहरहाल ग्राम बंधन के पूरा के लोगों ने सौर ऊर्जा का उचित इस्तेमाल करके न केवल अपने गांव के विकास को गति प्रदान की है बल्कि अन्य ग्रामीणों के लिए भी एक सर्वश्रेष्ठ उदाहरण प्रस्तुत किया है। ज़रूरत है इस प्रकार की योजनाओं का अधिक से अधिक प्रचार और प्रसार करने की। इसके लिए केंद्र के साथ साथ राज्य सरकारों को भी आगे आना होगा, ताकि देश के अन्य ग्रामीण क्षेत्र भी अक्षय ऊर्जा का अधिक से अधिक उपयोग कर पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाले कोयला और डीज़ल पर निर्भरता को समाप्त कर सकें। यदि ऐसा संभव हुआ तो आने वाले दशकों में भारत सौर ऊर्जा के क्षेत्र में विश्व गुरु बन सकता है।
यह आलेख जयपुर, राजस्थान से अरुण जिंदल ने चरखा फीचर के लिए लिखा है
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