Powered by

Advertisment
Home हिंदी

सुख़नन ने मोटरसाइकिल पर लगाई आटा चक्की और होने लगी कमाई

बिहार के छपरा जिले के डोरीगंज थानान्तर्गत 22 वर्षीय युवा सुखनन महतो ने जातिगत व्यवसाय छोड़कर स्वरोजगार का दूसरा रास्ता अपनाया.

By Charkha Feature
New Update
सुख़नन ने मोटरसाइकिल पर लगाई आटा चक्की और होने लगी कमाई

फूलदेव पटेल | मुज़फ़्फ़रपुर, बिहार | देश में बेरोजगारों की संख्या दिनों दिन बढ़ती जा रही हैं. चारों तरफ रोजगार के लिए मारामारी है. प्राइवेट सेक्टर से लेकर सरकारी विभाग तक शिक्षित बेरोजगारों की बड़ी तदाद नौकरी के लिए भटक रही है. बावजूद इसके उन्हें नौकरी तो नहीं मिलती उलटे निराशा, अवसाद, कुंठा, हीनता के शिकार ज़रूर  हैं. कोरोना के बाद बहुत सी कंपनियों ने आर्थिक संकट के कारण बड़े पैमाने पर कर्मचारियों की छटनी कर दी है. ऐसे में नौकरी ढूंढना मुश्किल का काम हो गया है. रोज़गार छिनने के बाद प्रदेश लौटे कुछ युवाओं ने अपने आसपास ही रोजगार करने का निश्चय किया है. उन्होंने हिम्मत और हौसले से व्यापार की नींव डाली और शुरू हो गया रोजगार का नया अध्याय. जबकि कुछ पढ़े-लिखे युवा खेती व मजदूरी की ओर लौट रहे हैं.

Advertisment
sukhnan mahto motercycle flour mill

कोरोना की भयावहता के बाद बहुत से युवा अपने प्रांत में ही रोजगार की तलाश में जुटे हुए हैं. ग्रामीण क्षेत्र के युवा रोजगार के नए-नए तरीकों को अपना कर जीवन को नई दशा और दिशा देने में मशगूल हैं. दूसरी ओर ग्रामीण क्षेत्रों के बाज़ारों में देखा जा रहा है कि युवा स्वरोजगार तो कर रहे हैं, पर ग्राहकों की कमी होती जा रही है. करोना काल के पूर्व चौक चौराहे पर बहुत कम ही युवा दुकानदारी करते थे. लेकिन हाल के वर्षों में नौजवान पान, किराना, सब्जी, अण्डे, कपड़े, स्टेशनरी, फल, श्रृंगार, मांस, मछली आदि की दुकानें चलाने लगे हैं. वहीं कुछ ऐसे युवा भी है, जिन्होंने जुगाड़ तकनीक का सहारा लेकर घर-गृहस्थी चलाने की नई तरकीब सोंची है.

बिहार के छपरा जिले के डोरीगंज थानान्तर्गत 22 वर्षीय युवा सुखनन महतो ने जातिगत व्यवसाय छोड़कर स्वरोजगार का दूसरा रास्ता अपनाया. युवा सुखनन ने मोटरसाइकिल के केरियर पर पेट्रोल से चलने वाली मिनी 3 एचपी (होंडा) मशीन लगाई, जिसके माध्यम से सत्तू और चना पीसने का काम किया जाता है. इसमें लगभग 18 हजार का खर्च आया और प्रतिदिन 500-1000 रुपए आसानी से कमाई हो रही है. वह प्रतिदिन सुबह अपनी मोटरसाइकिल लेकर निकल पड़ता है. सूखनन ने स्थानीय तकनीक से मसाला पीसने वाली मशीन लगाकर रोजी-रोटी का नायाब तरीका अपनाया है. अब उसका कारोबार पूरी गति के साथ चल रहा है. गली मोहल्ले में उसकी पहचान बन चुकी है. उसके मोटरसाइकिल की आवाज़ से महिलाएं सत्तू और चना पिसवाने के लिए घर से बाहर निकल आती हैं.

सुखनन अपनी इसी कमाई से अपनी तीन बेटियों और एक बेटे को अच्छी शिक्षा दिला रहे हैं. वह बताते हैं कि उनके पैतृक संपत्ति के नाम पर मात्र 2.5कट्ठा जमीन है. जो सभी भाइयों के लिए आय के रूप में नाममात्र साधन है. कोरोना काल में जब सबकुछ थम गया था और लोगों की आय का माध्यम लगभग समाप्त हो गए थे, ऐसे समय में भी सुखनन महतो का काम चल रहा था. हालांकि वह बताते हैं कि इसके बाद से उनकी आय भी काफी घट गई है, लेकिन फिर भी प्रतिदिन कुछ न कुछ आय हो जाती थी, जिससे घर परिवार चल सके.

वह बताते हैं कि अब 2021 से आमदनी कम होने लगी है. पहले हम 100 रुपए की दर से सवा किलो से डेढ़ किलो सत्तू बेचते थे. इधर पेट्रोल के दाम बढ़ जाने से कमाई और भी कम हो गई है. पहले की अपेक्षा अभी बचत भी कम हो रही है और खर्च अधिक हो रहा है. फिर भी परिवार की खातिर रोजगार तो करनी है. वह बताते हैं कि घर परिवार एवं बच्चों को भी पढाई, लिखाई, कपड़ा, किताब-काॅपी, स्कूल फीस एवं टूशन फी, स्लेट-पेन्सिल की कीमत भी चुकानी है. कुल मिलकर खर्चें बढ़ते जा रहे हैं और आमदनी सीमित होती जा रही है.

सुखनन महतो के पिता मछली का व्यापार करते थे. उनकी की मृत्यु के बाद सुखनन ने पारिवारिक व्यापार से कुछ अलग सोंचा और निकल पड़ा गांव, मुहल्ले और गली, गली जहां उसकी मशीन से पिसे गए सत्तू, भूंजा और मसाले की खूब मांग है. उसके बाकी भाई अभी भी पारिवारिक व्यापार मछली पालन में व्यस्त हैं. हालांकि वह इसके काम में भी मदद करते हैं. सुखनन अपने मोटरसाइकिल से केवल मुजफ्फरपुर ही नहीं, बल्कि सीवान और गोपालगंज आदि ज़िलों के विभिन्न गांवों में जाकर सतू और चना पीसने का काम करते हैं. उनका यह कारोबार प्रत्येक जिले में साल के बारह महीनों चलता है.

वह बताते हैं कि हम चारों भाई किराया का घर लेकर चना का सतूई (सत्तू) बनाते हैं. मछली व्यापर के अतिरिक्त दो भाई घर पर ही रह कर सत्तू और भूजा तैयार करते हैं, वहीं दो भाई अपने गाड़ी (बाईक) पर ही सत्तू-भूजा को गांव गांव जाकर बेचने और मशीन के माध्यम से पीसने का काम करते हैं. उन्होंने बताया कि घर में तीन मोटरसाइकिल है. जिसमें दो में सत्तू पीसने की मशीन फिट कर रखी है. अभी वर्तमान में वह 70 से 80 रुपए प्रति किलो की दर से सत्तू बेचते हैं. ग्राहकों की भीड़ देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि उनका यह व्यापार बहुत ही लाभकारी है.

ख़ास बात यह है कि बिहार के ग्रामीण क्षेत्रों में सत्तू को बिहारी हाॅर्लिक्स के रूप में जाना जाता है. सत्तू के खरीदार विनोद जयसवाल बताते हैं कि बिहार के लगभग सभी ज़िलों के ग्रामीण क्षेत्रों में सत्तू की सदाबहार मांग रहती है. जहां शहर से लेकर गांव तक रोड के दोनों किनारे बड़ी संख्या में सत्तू की दुकान सजी रहती है. हर समय मजदूरों और किसानों की भीड़ लगी रहती है. इन क्षेत्रों के लोग सुबह के नाश्ते के रूप में सत्तू का ही सेवन करते हैं. उनके लिए यह पौष्टिक पेय और सुपाच्य भोजन है. सुखनन महतो एक दिन में हज़ार से 1200 रुपए तक कमा लेते हैं. एक क्विंटल चना को भूनने में जलावन एवं मजदूरी के रूप में पंद्रह रुपये प्रति किलो के हिसाब से खर्चें आते हैं. इस प्रकार महीने के 30 से 32 हजार रुपए की कमाई होती है.

सुखनन ने इस रोजगार को शुरू करने के लिए किसी बैंक से ऋण नहीं लिया है. साक्षर नहीं होने के कारण वह बैंक से ऋण लेने की प्रक्रिया को समझ नहीं पाते हैं. इसीलिए उन्होंने गांव के साहूकार से ऋण लेकर अपना रोजगार शुरू किया है. आज उनके रोज़गार से प्रेरित होकर आसपास के कई बेरोजगार युवाओं ने भी सैकेंड हैंड बाइक खरीदकर इसी प्रकार सत्तू और भूंजा का रोजगार शुरू करके अच्छी आमदनी कर रहे हैं. मोटरसाइकिल पर सस्ते और स्थानीय तकनीक के माधयम से रोज़गार का साधन ढूंढ कर सुखनन न केवल स्वयं रोज़गार प्राप्त कर रहे हैं बल्कि वह कई बेरोज़गार नौजवानों को रास्ता भी दिखा रहे हैं.

वास्तव में हमारे देश के युवा शक्ति में आइडिया की कमी नहीं हैं. ऐसे में उनके इस प्रकार की सोच को आर्थिक मदद देने की आवश्यकता है ताकि इससे न केवल उन्हें रोज़गार मिल सके बल्कि देश की अर्थव्यवस्था को भी उड़ान मिल सके. केंद्र सरकार द्वारा युवाओं के लिए शुरू की गई स्टार्टअप योजना ऐसे युवाओं की सोच को पंख दे रहा है. ज़रूरत इस बात की है कि इस प्रकार की योजनाओं से सुखनन जैसे कम साक्षर युवाओं को भी जोड़ा जाए ताकि स्थानीय स्तर पर सस्ते तकनीक का उचित इस्तेमाल हो सके.(चरखा फीचर)

Tags: sukhnan mahto Flour Mill Mobile Aata Chakki Chapra bihar