रेगिस्तान में अक्षय ऊर्जा अर्थात सौर और विंड एनर्जी निर्माण की अपार संभावनाएं हैं। यहां साल के अधिकांश दिनों में सूर्य दर्शन होता है तथा तेज हवाएं भी चलती रहती हैं। अक्षय ऊर्जा की संभावनाओं को देखते हुए सरकारी एवं गैर सरकारी स्तर पर ऊर्जा उत्पादन और वितरण पर कार्य चल रहा है। जैसलमेर, बाड़मेर और बीकानेर के कुछ क्षेत्रों में सोलर प्लांट और पवन चक्कियां दिख जाती हैं जो इन संभावनाओं के विस्तार की पुष्टि करती है। इस संबंध में राज्य के ऊर्जा मंत्री डाॅ. बी.डी. कल्ला भी तीसरे वैश्विक रैन्यूएबल एनर्जी इन्वेस्ट के स्टेट सेशन में राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय निजी निवेशकों को अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में राजस्थान में निवेश करने का आह्वान कर चुके हैं। उन्होंने जानकारी देते हुए बताया कि राज्य में 10 हजार मेगावाट से अधिक क्षमता के अक्षय ऊर्जा के सयंत्र स्थापित किए जा चुके हैं। जिनमें सौर ऊर्जा से 5552 मेगावाट, 4338 मेगावाट पवन द्वारा तथा 120 मेगावाट बायोमास ऊर्जा सयंत्र शामिल है। जाहिर सी बात है कि पश्चिमी राजस्थान में अक्षय ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए प्राकृतिक संभावनाएं और भौतिक संसाधन विशेषकर भूमि की उपलब्धता निवेशकों का स्वागत करने के लिए काफी है। लेकिन इसके दूसरे पहलू को भी ध्यान में रखना जरूरी है। यहां की जलवायु, पर्यावरण, जैव विविधता और पारिस्थितिक तंत्र का बिगाड़ हुए बिना यह कैसे संभव हो सकता है, इस पर सरकार एवं थार के बाशिंदों को विचार करना चाहिए।
हालांकि अक्षय ऊर्जा को जलवायु परिवर्तन एडेप्टेशन के रूप में मान्यता दी जाती है और यह सही भी है। ताप, परमाणु एवं अन्य पारंपरिक तकनीक से उत्पादन की जाने वाली ऊर्जा से पर्यावरण पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। गैस उत्सर्जन ज्यादा होता है। यही कारण है कि पूरी दुनिया ऊर्जा के उन विकल्पों को ज्यादा प्रोत्साहित कर रही है जो पर्यावरण के लिए बेहतर हों। वैश्विक स्तर पर संकल्पित सतत विकास लक्ष्य सात में सभी देशों ने 2030 तक सभी के लिए किफायती, भरोसेमंद ऊर्जा की उपलब्धता का लक्ष्य रखा है, जो जलवायु परिवर्तन को स्थिर रखने से जुड़ा है। रेगिस्तान में अक्षय ऊर्जा की असीम संभावनाएं इस लक्ष्य को प्राप्त करने में मददगार साबित हो रही हैं। लेकिन थार के पर्यावरण, जैव विविधता और जलवायु पर पड़ने वाले प्रभाव को ध्यान में रखते हुए सुरक्षा की गारंटी भी जरूरी है। निवेशकों को अक्षय ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए उपलब्ध कराये गये भौतिक संसाधनों के साथ-साथ रेगिस्तान के पारिस्थिकी तंत्र की सुरक्षा की गारंटी प्राप्त करना भी जरूरी है।
रेगिस्तान में बुजुर्ग सूर्य के सामने शीशा करने को बुरा मानते थे। पूछे जाने पर जवाब देते थे कि इससे सूर्य पर भार बढ़ता है। सौर ऊर्जा प्रोत्साहन के लिए प्रारंभ में जब गांवों में सोलर पैनल लगाने शुरू हुए थे, तो बुजुर्गों ने अपने मन से इसे खारिज कर दिया था। रेगिस्तान के दूर दराज के गांवों में उस समय विद्युत सेवा पहुंची नहीं थी। विद्यालयों एवं सेवा स्थलों पर सोलर पैनल लगाकर लाइट की व्यवस्था की जाती थी, लेकिन बुजुर्गों को यह बात जंचती नहीं थी। बुजुर्गों का सूरज के सामने कांच नहीं करने और भार बढ़ने का अर्थ शायद यही हो कि सूर्य की किरणें कांच पर पड़ने से धरती पर गर्मी बढ़ती है। रेगिस्तान में गर्मियों में तापमान 50 डिग्री सैल्सियस तक पहुंच जाता है। ऐसे में सूरज को आईना दिखा कर धरती को और गर्म करना आग में घी डालने समान ही है।
यह सही है कि रेगिस्तान में अक्षय ऊर्जा की असीम संभावनाएं हैं। तेज हवा के कारण यहां विंड एनर्जी का उत्पादन बड़े पैमाने पर हो सकता है। वहीं सूर्य अन्य क्षेत्रों के मुकाबले पूरे वर्ष अपना प्रकाश मरूधरा पर लुटाता है और सौर ऊर्जा के उत्पादन का अवसर देता है। लेकिन अनुभव यह भी रहा है कि रेगिस्तान में अक्षय ऊर्जा तथा अन्य प्रस्तावित विकास कार्यों में यहां के पारिस्थितिक तंत्र को नज़रअंदाज़ किया गया है। रेगिस्तान अपने आप में एक अनूठा प्राकृतिक स्वरूप है। यहां की प्राकृतिक परिस्थितियां पूरे विश्व की जलवायु को प्रभावित करती है। यहां की अनूठी जैव विविधता और जन-जीवन के विकसित तौर तरीके सदैव पर्यावरण, जैव विविधता और पारिस्थितिकतंत्र के पोषक रहे हैं। लेकिन विकास के लक्ष्यों को प्राप्त कर जिन आर्थिक और भौतिक सुख-सुविधाओं की पूर्ति को देखा जा रहा है, उसमें इन विशेषताओं को नज़रअंदाज़ किया गया है। मसलन रेगिस्तान का तापमान और मरूस्थलीकरण बढ़ रहा है। परिणामस्वरूप जैव विविधता का भारी नुकसान हुआ है और लगातार हो रहा है। समुदाय द्वारा संरक्षित एवं सुरक्षित किए गये पारंपरिक चारागाहों, जल स्रोतों, जो यहां की पर्यावरण, जैव विविधता और पारिस्थितिक तंत्र के संतुलन के महत्वपूर्ण स्रोत रहे हैं, अब धीरे-धीरे नष्ट और समाप्त हो रहे हैं। सरकारी स्तर पर पर्यावरण एवं जैव विविधता संरक्षण के लिए विभाग और बोर्ड बनाये गये हैं, जो रेगिस्तान के मामले में उदासीन ही दिखे हैं। चारागाह विकास बोर्ड, जैव विविधता बोर्ड और प्रदूषण नियंत्रण विभाग द्वारा क्षेत्र के विकास कार्यों की क्रियान्विति से पूर्व स्वीकृति जैसी औपचारिकताओं को उदासीनता के चलते पूरा नहीं किया जाता है। कई मामलों में ग्राम पंचायत और ग्रामसभा की राय को भी नज़रअंदाज़ कर विकास कार्य चालू कर दिए जाते हैं।
रेगिस्तान में पचपदरा रिफ़ाइनरी, भारतमाला प्रोजेक्ट, सौर और विंड एनर्जी, जिप्सम, क्ले, कोयला, गैस एवं तेल खनन का कार्य प्रगति पर है। निवेशकों को प्रोत्साहित करने के लिए सरकार द्वारा कई प्रकार की रियायतें दी जाती हैं। रेगिस्तान की भूमि को बेकार और गैर उपजाऊ बताकर निवेशकों को सस्ती दर में उपलब्ध करा दी जाती है। यह समझ आज तक नहीं बनी है कि रेगिस्तान की एक इंच जमीन भी बेकार और अनुपजाऊ नहीं है। दरअसल जिसे बेकार और अनुपजाऊ कहा जा रहा है, वह पारिस्थितिक तंत्र को परोक्ष व अपरोक्ष रूप से सहयोग देती है। लेकिन निवेशकों के चक्कर में समुदाय के अधिकारों के साथ-साथ प्राकृतिक अधिकारों को भी नज़रअंदाज़ कर दिया जा रहा है। निवेशक यहां के संसाधनों को निचोड़ कर करोड़ों कमाते हैं और यहां के पर्यावरण, जैव विविधता तथा सामुदायिक संसाधनों को बर्बाद करते हैं, जिसका कोई लेखा जोखा नहीं होता। विकास की प्रगति उत्पादन के आंकड़ों से नापी जाती है। पारिस्थितिक तंत्र की बर्बादी के अवशेष गौण कर दिए जाते हैं। इसका ख़ामियाज़ा स्थानीय समुदाय को ही झेलना पड़ता है।
जरूरत इस बात की है कि रेगिस्तान में ऊर्जा, खनन एवं अन्य सभी प्रकार के विकास कार्यों की प्लानिंग के साथ साथ पर्यावरण, जैव विविधता, समुदाय की आजीविका और पारिस्थितिक तंत्र पर पड़ने वाले प्रभाव का उचित आंकलन और विपरीत प्रभाव की भरपाई के लिए किए जाने वाले ठोस कार्यों का सामाजिक अंकेक्षण व नियोजन हो तथा उद्योगों, व्यवसायों, निवेशकों पर सेस कर जैसी व्यवस्था बनाई जाए। इसके साथ ही जवाबदेही के साथ उसके क्रियान्वयन की भी व्यवस्था हो जिससे रेगिस्तान का पारिस्थितिक तंत्र भी बना रहे और सतत विकास का लक्ष्य भी प्राप्त हो सके।
यह आलेख बाड़मेर, राजस्थान से दिलीप बीदावत ने चरखा फीचर के लिए लिखा है
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