Powered by

Home Hindi

प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना की राह देखता उत्तराखंड का पोथिंग गांव

पोथिंग गांव : दो दशक पूर्व 'अ रोड टू एवरी विलेज' की संकल्पना के साथ प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना की शुरआत की गई थी.

By Charkha Feature
New Update
pothing village road

सीमा मेहता | पोथिंग, उत्तराखंड  | दो दशक पूर्व 'अ रोड टू एवरी विलेज' की संकल्पना के साथ प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना की शुरआत की गई थी. कई अर्थों में इस योजना को क्रांतिकारी कहा जा सकता है, क्योंकि इसने सदियों से उपेक्षित पड़े गांवों को शहरों से जोड़ने का काम किया है. आज़ादी के बाद यह पहला अवसर था जब किसी योजना के तहत गांव की सड़कों के विकास का लक्ष्य तय किया गया था. योजना के तहत देश के सभी छोटे बड़े गांवों को एक सड़क परियोजना के माध्यम से पक्की कर उसे शहरों तक जानी वाली मुख्य सड़कों से जोड़ना है. इस योजना के अमल में आने के बाद से देश के कई ग्रामीण क्षेत्रों के सड़कों की हालत में सुधार हुआ है. सड़क की दशा सुधरने से गांव में विकास को भी पंख लगा है. चूंकि भारत एक कृषि प्रधान देश है ऐसे में उन्नत सड़क के बिना गांव के सामाजिक और आर्थिक विकास की संकल्पना अधूरी है.

वर्ष 2022 तक प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत देश में लगभग सात लाख किमी से अधिक सड़क का निर्माण कर करीब दो लाख गांवों को पक्की सड़कों से जोड़ा जा चुका है. इसमें पहाड़ी राज्य उत्तराखंड की ग्रामीण सड़कें भी शामिल हैं. लेकिन अभी भी राज्य के कई ऐसे दूर दराज़ गांव हैं जहां सड़कों की हालत सबसे अधिक खराब है. इनमें राज्य के बागेश्वर जिला स्थित कपकोट ब्लॉक का पोथिंग गांव भी शामिल है. जहां की सड़क जर्जर अवस्था में पहुंच चुकी है. यह गांव जिला बागेश्वर से करीब 45 किमी दूर हैं. सड़क की खराब हालत से गांव वाले परेशान हैं. एक तरफ जहां बुज़ुर्गों और मरीज़ों का गुज़रना दूभर है तो वहीं विद्यार्थियों का समय पर स्कूल पहुंचना मुश्किल होता है. इस संबंध में गांव की एक किशोरी पूजा गढ़िया का कहना है कि टूटी सड़क के कारण हमें स्कूल जाने में बहुत परेशानी होती हैं. मेरा स्कूल घर से 17 से किमी दूर है, जहां हमें प्रतिदिन पैदल ही आना जाना पड़ता हैं क्योंकि सड़क खराब होने के कारण कोई भी गाड़ी नहीं मिलती है. 

पूजा के अनुसार बारिश के दिनों में हमें स्कूल पहुंचना एक कठिन लक्ष्य होता है. इन दिनों हमें अपने स्कूल बैग को सर पर उठा कर और हाथ में चप्पल पकड़ कर चलना पड़ता है. जहां पर रास्ता कच्चा होता है वहां तो इतनी फिसलन होती है कि डर लगता है अगर पैर फिसला तो सड़क के दूसरी ओर सीधे खाई में गिर सकते हैं. सड़क की खस्ताहाली का अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है कि बच्चों की सुरक्षा के मद्देनज़र बारिश के दिनों में हफ़्तों स्कूल की छुट्टियां कर दी जाती हैं. सबसे ज्यादा डर तो हमें बारिश के दिनों में पहाड़ से पत्थरों के गिरने का लगता है. जो किसी भी बड़ी घटना को अंजाम दे सकते हैं. ख़राब सड़क से गुजरने से बचने के लिए बच्चे अक्सर नदी से होकर स्कूल जाने का जोखिम उठाते हैं, लेकिन बारिश के दिनों में तेज़ बहाव से जान का खतरा बना रहता है. 

गांव की एक अन्य किशोरी तनुजा जोशी का कहना है कि सड़क की स्थिति खराब होने के कारण ड्राइवरों ने गाड़ी का किराया भी बढ़ा दिया है और हमारे घर की आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी नहीं हैं कि हम हर रोज गाड़ी वाले को किराया दे पाएं. पैसों की कमी और शिक्षा प्राप्त करने की ललक के कारण गांव के कई लड़कियां जंगलों के रास्ते पैदल आने जाने को मजबूर हैं. लेकिन अक्सर उन्हें स्कूल से लौटने में रात हो जाती है. ऐसे में उन्हें जंगली जानवरों के हमले का भी डर सताता रहता है. इसी डर के कारण कई लड़कियां स्कूल की पढ़ाई बीच में ही छोड़ने पर मजबूर हैं. सड़क की खराब स्थिति के कारण लोग गांव से पलायन भी कर रहे हैं. ताकि शहर में सड़क के कारण उनके बच्चों की शिक्षा प्रभावित न हो. लेकिन उन बच्चों की कौन सुध लेगा जिनके परिवार की आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं है कि वह अपने बच्चों को शहर के स्कूलों में दाखिला दिला सकें?

गांव की एक गर्भवती महिला शांति देवी (बदला हुआ नाम) कहती हैं कि राज्य में स्वास्थ्य की स्थिति बेहतर है, आपातस्थिति में कॉल करने पर एम्बुलेंस पहुंच जाती है, लेकिन सड़क की हालत इतनी जर्जर है कि वह समय पर नहीं पहुंच पाती है. कई बार उसके ड्राइवर कॉल पर बताते हैं कि ख़राब सड़क की वजह से बीच रास्ते में एम्बुलेंस ख़राब हो गई है. गंभीर हालत में मरीज़ों को इस सड़क से लेकर गुज़रना एक चैलेंज से भरा होता है. अक्सर डॉक्टर के पास समय पर नहीं पहुंच पाते हैं. ख़राब सड़क की वजह से अक्सर निजी वाहन चालक या तो गांव आने से कतराते हैं या फिर इतनी राशि की डिमांड करते हैं कि एक गरीब परिवार के लिए उसे पूरा कर पाना असंभव होता है. शांति देवी कहती हैं कि सड़क पर इतने गढ्ढे हैं कि ज़्यादातर पहली बार इस सड़क से गुजरने वाले ड्राइवरों की गाड़ियां बीच रास्ते में ही खराब हो जाती हैं. गांव की बुजुर्ग महिला आंनदी देवी शिकायत करती हैं कि जब हमारी तबीयत खराब होती हैं तो हमें पैदल ही अस्पताल जाना पड़ता हैं क्योंकि ख़राब सड़क की वजह से यहां कोई गाड़ी नहीं मिलती है और अगर गाड़ी मिल भी जाए तो हमें उसमें बैठने से डर लगता हैं.

स्थानीय निवासी ध्यात सिंह कहते हैं कि मैं पेशे से एक ड्राइवर हूं. अपने परिवार को पालने के लिए मुझे गाड़ी चलानी पड़ती है, क्योंकि यहां रोजगार का कोई साधन नहीं हैं. लेकिन सड़क की हालत इतनी खराब हैं कि गाड़ी चलाना मुश्किल हो जाता हैं. मैं गाड़ी चला कर इतना कमा नहीं पाता हूं, जितना मेरी गाड़ी की सर्विस करवाने में खर्च हो जाता हैं. सबसे अधिक परेशानी बारिश के दिनों में होती है जब यह जर्जर सड़क पानी और फिसलन से भर जाता है. ऐसे में हम अपनी और सवारी की जान हथेली पर लेकर इस सड़क से गुज़रते हैं. ज़रा से चूक पर गाड़ी फिसल कर दूसरी ओर खाई में गिर सकती है. यदि यहां की सड़क बेहतर हो जाए तो गांव वालों की सबसे बड़ी परेशानी दूर हो जायेगी और यहां सालों भर आवागमन बेहतर हो सकता है. ध्यात सिंह कहते हैं कि जिस दिन पोथिंग की सड़क बेहतर हो जायेगी उस दिन से इस गांव में विकास की लौ जगमगा जाएगी.

इस संबंध में गांव की प्रधान पुष्पा देवी भी स्वीकार करती हैं कि गांव की सड़क न केवल जर्जर स्थिति में है बल्कि खतरनाक भी हो चुकी है. पूरी सड़क पर इतने गड्डे है कि वहां से गाड़ी निकालना मुश्किल हो जाता है. बारिश के दिनों में पहाड़ से इतने बड़े बड़े पत्थर गिरते हैं जिस कारण कई बार रास्ता भी बंद हो जाता हैं. इस दौरान अगर गाड़ी वाले एक दूसरे को पास भी देते हैं तो ये गाड़ी नीचे खाई में गिरने का भय बना रहता है. पुष्पा देवी कहती हैं कि इस संबंध में हमने कई बार तहसील में जाकर आवाज भी उठाया है, मगर आज तक किसी अधिकारी ने इसे गंभीरता से नहीं लिया है. इस जर्जर सड़क के कारण गर्भवस्था में कोई महिला कैसे अस्पताल पहुंचती होगी, कितने धक्के इस उबड़-खाबड़ सड़क से उसे लगते होगें? इसका अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है. हालांकि पोथिंग गांव के लोगों को आज भी उम्मीद है कि एक दिन प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत उनके गांव की सड़क की किस्मत भी बदलेगी. (चरखा फीचर)

Read More

Follow Ground Report for Climate Change and Under-Reported issues in India. Connect with us on FacebookTwitterKoo AppInstagramWhatsapp and YouTube. Write us at [email protected].