करीब 3 एकड़ में फैला 100 टीपीडी क्षमता वाला सीएंडडी वेस्ट प्रोसेसिंग प्लांट
ग्राउंड रिपोर्ट की टीम ने भोपाल नगर निगम के कचरा ट्रीटमेंट रीसाइकल प्लांटों में से एक सीएंडडी वेस्ट प्लांट का निरीक्षण किया। यह भोपाल शहर के धुंआखेड़ा में स्थित 100 टीपीडी क्षमता वाला करीब 3 एकड़ में फैला सीएंडडी वेस्ट प्रोसेसिंग प्लांट है। साल 2019 में लीज़ की 3 एकड़ जमीन पर करीब 4 करोड़ रूपये की लगात से निर्मित इस प्लांट का संचालन नगर निगम से 15 साल के अनुबंध पर न्यू डिस्टिंक्ट सर्विसेज़ भोपाल प्राइवेट लिमिटेड कंपनी द्वारा किया जा रहा है।
'प्लांट के संचालन के लिए निगम से 15 साल का अनुबंध'
प्लांट मैनेजर अंकित श्रीवास्तव ने बताया कि "प्लांट के निर्माण के लिए सरकार से करीब 1 करोड़ रूपये अनुदान मिला था और प्लांट के संचालन के लिए निगम से हमारा 15 साल का अनुबंध है। इस अनुबंध के अनुसार निगम प्लांट को सीएंडडी वेस्ट उपलब्ध कराएगा और हम उस वेस्ट को रिसाइकल कर रीयूज़ के लायक उत्पाद तैयार करेंगे। नगर निगम हमें जीएसटी के साथ 104 रूपये प्रति टन सीएंडडी वेस्ट का भुगतान करता है।"
क्या होता है सीएंडडी वेस्ट?
निर्माणधीन बिल्डिंग या घरों से और तोड़फोड़ के दौरान निकलने वाले मलबे को ही कंस्ट्रक्शन एंड डिमॉलिशन (सीएंडडी) वेस्ट कहते हैं। यहीं मलबा सीएंडी वेस्ट प्रोसेसिंग प्लांट में पहुंचकर कमाई का ज़रिया बन जाता है। प्लांट में रोजाना कर्मचारी सेफ्टी गियर पहनकर कड़ी मशक्कत से मलबे को नया आकार देते हैं और उसे वेस्ट टू वेल्थ का साधन बना देते हैं।
मलबे से प्रोडक्ट
भोपाल सीएंडडी वेस्ट प्लांट में ग्राउंड रिपोर्ट की टीम ने देखा कि प्लांट में विभिन्न आकार में निर्माण कार्यों और तोड़फोड़ से निकला मलबा आता है। प्लांट मैनेजर अंकित श्रीवास्तव कहते हैं "प्लांट में मलबा नगर निगम के छह कचरा ट्रांसफर स्टेशन ( ईदगाह हिल्स जाटखेड़ी कोलार रोड ट्रांसपोर्ट नगर यादगार-ए-शाहजहानी पार्क और कजलीखेड़ा ट्रांसफर स्टेशन) से आता है। प्लांट पर 350 एमएम साइज तक का मलबा लिया जाता है। अगर इससे बड़े साइज में मलबा आता है तो सीधे मशीनों में छंटाई के लिए नहीं लिया जा सकता है। बड़े साइज के मलबे को स्टोर करके रखा जाता है और हर 15 दिन में उसे रॉक ब्रेकर मशीन से तोड़कर छोटे साइज में तब्दील किया जाता है।" वे आगे बताते हैं कि "आमतौर पर प्लांट में 200 से 2500 एमएम साइज वाला मलबा आता है, इसे क्रशर मशीन में भेजकर उसका साइज 140 एमएम तक किया जाता है। छंटाई होने पर अंत में मिट्टी जैसे बारीक साइज का मलबा निकलता है। इन सभी को सीमेंट में मिलाकर सीमेंटेड ईंटे, कलरफुल पेवर ब्लॉक्स, और टाइल्स आदि जैसे उत्पादों में तब्दील कर बाजार में बेचते हैं।" इस तरह मलबे को रीसाइकल करके दोबारा उपयोग करने योग्य प्रोडक्ट बनाए जा रहे हैं जोकि बाजार में मिलने वाले दूसरे उत्पादों से सस्ते और टिकाऊ होते हैं क्योंकि इनमें कोई मिलावट नहीं होती है।
धूल के दुष्प्रभाव से बचाने के लिए
श्रीवास्तव समझाते हुए कहते है कि "गीले मलबे की छंटाई से धूल नाम मात्र निकलती है मगर उसका भी प्रभाव प्लांट कर्मचारियों पर न पड़े इसके लिए दिनभर ऐसे पानी का छिड़काव करते रहते है जो पहले इस्तेमाल किया जा चुका होता है। जहां ज्यादा छिड़काव की जरूरत है वहां पर हाई प्रेशर स्प्रिंकलर्स की व्यवस्था की गई है।" वे आगे कहते है कि "एक पांइट ऐसा बनाया गया है जहां पर पूरे मलबे को गीला किया जाता है। वाहनों के टायरों में भी यूज्ड वॉटर का प्रेशर मारा जाता है। प्लांट पर सफाई बनाए रखने के लिए दो कर्मचारी को तैनात किया गया है जो लगातार सफाई करते हैं। फॉग गन की मदद से प्लांट और उसके आसपास विकसित किए पार्क और पेड़-पौधों पर फॉगिंग करके उनपर जमी धूल हटाते हैं। वहीं समय-समय पर प्लांट के आसपास के इलाकों के लोगों को वेस्ट मलबे को लेकर जागरूक करने के उद्देश्य से जागरूकता अभियान भी चलाते है।"
काम और दिनचर्या
प्लांट के कर्मचारी दु्र्गेश बताते है कि "सुबह हाजिरी लगाने के बाद सेफ्टी ड्रेस कर्मचारियों को पहनना अनिवार्य है। कंपनी द्वारा कर्मचारियों को सेफ्टी पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट (पीपीई) किट दी गई है। इस किट में जैकेट हेलमेट आदि सुरक्षा उपकरण शामिल हैं।" वे आगे कहते हैं "हूटर बजने के बाद मलबे को छोटे-बड़े आकार में छांटने वाली मशीनें चालू की जाती हैं। एक ऑपरेटर मलबा लाने वाले वाहन का वजन करता है। इसके बाद उसे गीला करके उतरवाया जाता है। एक इंडिकेटर हॉर्न बजने के बाद मलबा मशीन में डाला जाता है दूसरे हॉर्न के बाद कोई मलबा उसमें नहीं डाला जाता है। शाम के साढ़े चार बजे प्लांट पर काम बंद कर दिया जाता है। फिर प्लांट में मशीनों के नीचे साफ-सफाई और उनकी ग्रीसिंग की जाती है।"