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Loksabha Election 2024: क्या भोपाल में भाजपा का विजय रथ रोक पाएगी कांग्रेस?

Loksabha Election 2024: भोपाल में 16 में से 9 बार भाजपा जीती है। इस बार भाजपा ने आलोक शर्मा और कांग्रेस ने अरुण श्रीवास्तव को उम्मीदवार बनाया है।

By Chandrapratap Tiwari
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Loksabha Election 2024: क्या भोपाल में भाजपा का विजय रथ रोक पाएगी कांग्रेस?

Loksabha Election 2024: देश में चुनाव का बिगुल बज चुका है। सभी रथी और महारथी इसकी तैयारी में जुट गए हैं। देश में लोकसभा की कुछ हॉट सीट्स हैं, इनमे से ही एक सीट है भोपाल की। भोपाल वो शहर है जिसने नवाब से लेकर प्रदेश को मुख्यमंत्री और देश को राष्ट्रपति तक दिए। आइये जानते हैं क्या है इस सीट का इतिहास और किनके बीच है।

क्या है भोपाल लोकसभा का इतिहास

भोपाल को शुरूआती दौर में कांग्रेस का गढ़ माना जाता था। यहां 1957 में जब पहली बार चुनाव हुआ तो कांग्रेस से भोपाल के आखिरी नवाब की पत्नी बेगम मैमूना सुल्तान ने जीत दर्ज की। वो 1962 का चुनाव भी जीतीं, लेकिन 1967 में उन्हें हिन्दू महासभा के जे आर जोशी ने हरा दिया।

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1971 और 1980 में यहां से शंकर दयाल शर्मा जीत कर गए जो बाद में देश के राष्ट्रपति भी बने। यहां से 1999 में उमा भारती, 2004 और 2009 में पूर्व मुख्यमंत्री कैलाश जोशी, 2014 में आलोक संजर ने जीत दर्ज की। 2019 में साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर ने यह सीट दिग्विजय सिंह को 3 लाख 64 हजार वोटों से हराकर जीती।

यहां हुए 16 लोकसभा चुनावों में से 9 भारतीय जनता पार्टी जीती है। भोपाल गैस त्रासदी से पहले यहां सबसे अधिक कांग्रेस जीती थी और इसे कांग्रेस का गढ़ माना जाता था। मगर भोपाल गैस त्रासदी के बाद से यह सीट भाजपा का गढ़ बन गई। जिसके बाद भाजपा इस सीट से कभी नहीं हारी।

क्या कहती है भोपाल की डेमोग्राफी

भोपाल में कुल 20 लाख से अधिक मतदाता हैं, जिनमे से 56 फीसदी हिन्दू है और 40 फीसद मुस्लिम। यहां की 76 फीसदी आबादी शहरों में रहती है और 24 फीसद आबादी ग्रामीण है।

भोपाल के अनुसूचित जाती के वोटर 14.83 फीसदी हैं वहीं यहां अनुसूचित जनजाति के वोटरों की की हिस्सेदारी 2.56 प्रतिशत है कुल मिलाकर यहां मुस्लिम वोट एक की-फैक्टर हैं।

यहां बैरसिया, भोपाल उत्तर,नरेला,भोपाल दक्षिण-पश्चिम,भोपाल मध्य,गोविंदपुरा, सीहोर और हुजूर को मिलाकर 8 विधानसभा सीटें हैं। इन 8 में से 6 पर भाजपा और 2 पर कांग्रेस काबिज है।

कौन हैं इस बार आमने सामने

भोपाल से भाजपा की और से उम्मीदवार आलोक शर्मा है। भाजपा ने पिछली बार रिकॉर्ड मतों से जीतने वाली प्रज्ञा सिंह का टिकट काटकर इन पर भरोसा जताया है। आलोक शर्मा वर्तमान में भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश उपाध्यक्ष और उज्जैन के संभाग प्रभारी हैं।

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आलोक शर्मा 1994 में भाजपा की और से पार्षद चुने गए थे। आलोक शर्मा 2015 में भोपाल के महापौर निर्वाचित हुए थे और भाजपा के जिला अध्यक्ष भी रह चुके हैं। हालांकि आलोक शर्मा ने भोपाल उत्तर से 2 बार 2008 और 2023 का विधानसभा चुनाव लड़ा लेकिन दोनों बार उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा। पहली बबर 2008 में उन्हें आरिफ अकील और और दूसरी बार 2023 में उन्हें आरिफ अकील के बेटे आतिफ अकील ने हराया।

आलोक शर्मा के बरक्स कांग्रेस ने अरुण श्रीवास्तव को मैदान में उतारा है। अरुण श्रीवास्तव कांग्रेस के पुराने कार्यकर्त्ता हैं। 1980 से 1985 तक वे NSUI के प्रदेश सचिव रह चुके हैं। 2008 से 2018 तक अरुण श्रीवास्तव भोपाल कांग्रेस के जिला उपाध्यक्ष रहे हैं। 2018 से टिकट से मिलने से पहले तक अरुण भोपाल ग्रामीण कांग्रेस के जिला अध्यक्ष थे, अब उनकी यह जिम्मेदारी अनोखी पटेल को दे दी गई है।

क्या हैं भोपाल की जनता के चुनावी मुद्दे

भोपाल प्रदेश की राजधानी है। अमूमन तो भोपाल को कई सौगातें दी गईं है जैसे की वन्दे भारत ट्रेन। भोपाल देश की सबसे साफ़ राजधानियों में से एक है, लेकिन कई बातें हैं जिनसे भोपाल की जनता थोड़ी निराश है।

भोपाल प्रदेश की राजधानी है, यहां सभी बड़े विभागों के कार्यालय और सरकारी संस्थाएं हैं। भोपाल की आबादी आमतौर पर शहरी है और इसका एक बड़ा हिस्सा सरकारी कर्मचारियों का है। इन के लिए पुरानी पेंशन स्कीम(OPS) एक बड़ा मुद्दा है, उनकी अपेक्षा है की सरकार इसे बहाल करे।

भोपाल एक ऐतिहासिक भूमि है। भोपाल में 240 आर्किओलॉजिकल साइट्स है, लेकिन इनमे से सिर्फ 3, कमलापति भवन, सदर मंजिल और गौहर महल का ही पर्याप्त रखरखाव हुआ। भोपाल में बांकी की 237 ऐतिहासिक धरोहरों से मुंह फेर लिया गया है। इनमे से 180 साल पुरानी ईमारत शौकत महल भी शामिल है। ये अपने बेजोड़ स्थापत्य के लिए जानी जाती थी लेकिन अब इसकी छतें गिरने लगी हैं। इसके साथ ही मोती महल और ताज महल जैसे स्थापत्य भी खस्ता हालत में हैं।

भोपाल में किसानों के लिए सिंचाई की स्थिति भी उपयुक्त नहीं है। अभी हाल में ही सीहोर के कोनाझीर रिजर्वायर से निकली 2 नहरें जो कि किसानों की सिंचाई के लिए बनाई जा रहीं थी, उन पर सड़क बना दी गई है।

भोपाल के विकास का असली चेहरा, पुराने भोपाल में दिखाई पड़ता है। यहां की जनता बताती है कि उन्होंने पांच सालों में अपने सांसद को नहीं देखा। पुराना भोपाल आए दिन अतिक्रमण की कार्रवाइयों और बढ़ते ट्रैफिक जाम से परेशान है। हालांकि भोपाल में ट्रैफिक को कंट्रोल करने के लिए कॉरिडोर हटा दिए गए हैं।

इसके अलावा शहर को विकास की बड़ी कीमतें भी चुकानी पड़ी हैं। 2022 में ही मेट्रो डिपो के निर्माण के लिए, सुभाष फाटक के करीब स्टड फार्म में 35 से 50 साल पुराने 947 पेंड़ काट डाले गए थे। इन सब के इतर झीलों के लिए मशहूर भोपाल के नाविकों की भी उम्मीद है की उनसे उनकी नाव के लिए लिया जा रहा कम किया जाए।

एक ओर जहां भाजपा मोदी की गारंटी, राम मंदिर और हिंदुत्व की बात कर रही है वहीं कांग्रेस किसान, बेरोजगारी, अग्निवीर और मजदूरों के मुद्दे उठा रही है। अब यह 7 मई को वोट पड़ने और 4 जून को गिनती होने के बाद ही पता चलेगा की जनता का फैसला क्या है।

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