Kanpur Pollution | भारत में वर्तमान समय प्रदूषण दिन-प्रतिदिन एक बड़ी समस्या का रूप लेता दिख रहा है। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली ही नहीं बल्कि देश के अलग-अलग राज्य और शहर प्रदूषण से त्रस्त हैं। मुख्यता पिछले कुछ वर्षों से चर्चा दिल्ली के प्रदूषण पर की जाती रही है। लेकिन प्रदूषण से बुरी तरह से प्रभावित कानपुर शहर (Kanpur Pollution ) चर्चा का केंद्र उस तरीक़े से नहीं बन पाता जैसे दिल्ली। जबकि कानपुर में इसका स्तर बेहद ख़तरनाक है। हालिया एक अध्यन में सामने आया है कि वायु प्रदूषण के कारण कानपुर शहर के बच्चों के फेफड़े कमज़ोर हो रहे हैं।
Kanpur Pollution : हवा में शामिल केमिकल व हानिकारक गैसें
सर्दियों की शुरूआत और मौसम की बदलती करवट के बाद कानपुर शहर में वायु प्रदूषण (Kanpur Pollution ) का स्तर भी ख़तरनाक हो गया है। कानपुर की हवा में तेज़ी से बढ़ते प्रदूषण कारक तत्व, केमिकल व हानिकारक गैसें शहर के वातावरण को बुरी तरह से प्रभावित कर रहे हैं। बदले मौसम के मिज़ाज के चलते बैक्टीरिया-वायरस बच्चों की सेहत को भारी नुक़सान पहुंचा रहे हैं। इसके साथ ही डेंगु-मलेरिया ने बच्चों सहित शहरवासियों को त्रस्त कर रखा है। ज़िला अस्पताल में भीड़ के कारण बुरे हालात हैं। एक बेड पर दो-दो मरीज़ भर्ती नज़र आ रहे हैं।
साल दर साल तेज़ी से ज़हरीली होती हवा के चलते बच्चों के फेफड़े कमज़ोर हो रहे हैं। खेल-कूद या ज़रा सी भाग-दौड़ के बाद बच्चों का दम फूलने लग रहा है। शरीर पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है। शरीर में आक्सीजन का स्तर कम होने के कारण प्रतिरोधक क्षमता कम़ज़ोर हो रही है। जिसके कारण बच्चे तेज़ी से संक्रमण की चपेट में आ रहे हैं। इसके साथ ही फेफड़ों में सूजन, श्वांस नलिकाओं में पस भरना और आंखों की समस्याएं बढ़ रही हैं।
40 प्रतिशत बच्चों की प्रतिरोधक क्षमता हुई कमज़ोर
कानपुर मेडिकल कॉलेज में बच्चों को लेकर हुए एक अध्ययन में हैरान कर देने वाली बात सामने आई है। जो हमारे लिये बड़ी चिंता का कारण बन गई है। मेडिकल कॉलेज के डॉक्टरों द्वारा बच्चों पर किए गए अध्ययन के बाद पाया कि 40 प्रतिशत बच्चों की प्रतिरोधक क्षमता कमज़ोर निकली। जिसका परिणाम ये हुआ है कि ये बच्चे बार-बार बीमार पड़ रहे हैं। साथ ही निमोनिया व अन्य संक्रमण की चपेट में जल्दी आ जा रहे हैं। जिसके कारण इनका शरीर भी कमज़ोर हो रहा है।
कानपुर के हैलट अस्पताल में बाल रोग विभाग ने भी बच्चों के स्वास्थ्य से जुड़ी कुछ अहम जानकारियां साझा की हैं। मिली जानकारी के मुताबिक, हैलट अस्पताल के बाल रोग की ओ. पी. डी. में फेफड़ों व सांस से जुड़ी बीमारियों से पीड़ित बच्चे आ रहे हैं। जिनमें सबसे अधिक संख्या उन बच्चों की है जो फेफड़ों में संक्रमण यानी निमोनिया से पीड़ित हैं। विभाग के डॉक्टर इस बात को लेकर लगातार परेशान हैं।
हैलट बाल रोग विभाग के प्रोफेसर डॉ. एके आर्या ने 5 से 10 वर्ष के 600 बच्चों को लेकर एक अध्ययन किया है। डॉ. ने इन सभी की ख़ून की जांच कराई, जिसमें आक्सीजन का स्तर सामान्य से कम पाया गया। जिसको देखकर डॉ. हैराना-परेशान हुए। डॉ. का कहना है कि बच्चों के शरीर की प्रतिरोधक क्षमता कमज़ोर होने से बार-बार सर्दी-ज़ुकाम और अन्य दूसरे संक्रमण की चपेट में आसानी से आने लगते हैं। ऐसी स्थिति में होने उनके फेफड़ों में संक्रमण होने से शरीर को ठीक से आक्सीजन नहीं मिल पाती।
खेल-कूद से लेकर पढ़ाई तक में पिछड़ रहे बच्चे
कानपुर मेडिकल कॉलेज के बाल रोग के प्रोफेसर एके आर्या का कहना है कि हमने ओ.पी.डी एवं इनडोर में इलाज के लिय आए 600 बच्चों के आंकड़े लिए। यह बेहद चिंताजनक है।(Kanpur Pollution ) प्रदूषण के कारण बच्चों के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ रहा है। साथ ही खान-पान और ख़राब जीवनशैली भी इसका एक कारण रहे। इन कारणों से बच्चों की प्रतिरोधक क्षमता घटने से फेफड़े कमज़ोर हो रहे हैं। सांस फूलने के साथ ही थकान हो रही है।
केवल स्वास्थ ही नहीं बच्चों की ज़िन्दगी पर भी इसका बुरा असर पड़ रहा है। कमज़ोर प्रतिरोधक क्षमता के चलते बच्चे पढ़ाई-लिखाई और खेल-कूद में भी पिछड़ते जा रहे हैं। चंद क़दम स्कूल बैग लेकर चलने और पैदल चलने में बुरी तरह थक जा रहे हैं। मैदान पर खेलने कूदने या दौड़-भाग करने से ही दम फूलने लग रहा है। सीढ़ियां चलने में थकान महसूस करने लग रहे हैं। इन सब कारण से उनके भविष्य पर इसका बुरा असर पड़ रहा है।
प्रदूषण के कारण 90 लाख लोगों ने गवाई जान
प्रदूषण और स्वास्थ्य को लेकर द लैंसेट प्लैनेटरी हेल्थ ने कुछ समय पहले अपनी एक रिपोर्ट जारी की थी। जिसमें बताया था कि साल 2019 में पूरी दुनिया में अलग-अलग प्रदूषण के चलते 90 लाख लोगों की जान गई थी। साल 2000 के बाद इन आंकड़ों में 55 फीसदी का इज़ाफा देखा गया। प्रदूषण के कारण सबसे अधिक 24 लाख मौतें चीन में हुई थीं। दूसरे नंबर पर भारत है, यहां 22 लाख लोगों की जान गई।
द लैंसेट प्लैनेटरी की रिपोर्ट के अनुसार, वैश्विक स्तर पर अकेले वायु प्रदूषण से 66.7 लाख लोगों ने अपनी जान गंवाई। इसमें 17 लाख लोगों की जान ख़तरनाक केमिकल के इस्तेमाल से गई। वहीं भारत में 16.7 लाख लोगों की मौत केवल वायु प्रदूषण से हुई। भारत में वायु प्रदूषण से संबंधित 16.7 लाख मौतों में से अधिकांश- 9.8 लाख – PM2.5 प्रदूषण के कारण हुईं।
अब ऐसे में सवाल खड़ा होता है कि आने वाले कुछ सालों में प्रदूषण एक सबसे बड़ी समस्याओं में से एक होगा। भारत जैसा ग़रीब देश जहां आज भी लाखों-करोड़ों लोगों के पास न तो बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं हैं और न उन तक पहुंचने के लिय पैसा। तब ऐसे में ज़ाहिर है प्रदूषण के कारण अलाज के अभाव में जान गंवाने वाले सबसे अधिक ग़रीब ही होंगे। जैसा की हमने कोरोना के समय देखा है।
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