स्ट्रीट लाईट के खम्भों पर सोलर पैनल के ज़रिए बिजली उत्पादन के बाद इंदौर रिन्यूवल एनर्जी जनरेशन की दिशा में नया कदम बढ़ा रहा है. इंदौर नगर निगम द्वारा पाइलेट प्रोजेक्ट के तहत यहाँ सडकों के किनारे मौजूद बिजली के खम्बों में वर्टिकल विंड मील लगाया जाएगा. 500 वॉट से 5 किलो वॉट तक की वर्टिकल विंड मील ऐसे 25 सौ खम्बों पर लगाई जाएगी. यह प्रोजेक्ट अभी पाइलट किया जाएगा जिसके सफल होने पर ऐसे मील शहर के सभी खम्बों पर लगाए जाएँगे. तब शहर में इसके जारी 450 मेगा वाट बिजली का उत्पादन हो सकेगा.
क्या होती है वर्टिकल विंड मील
आम तौर पर भारत में विंड मील के नाम पर हमने जो पवन चक्कियां देखी हैं वह हॉरिज़ोन्टल विंड मील हैं. वर्टिकल विंड मील इससे अलग और ‘घरेलू’ होती हैं. हॉरिज़ोन्टल पवन चक्कियों की तरह ही इसमें भी 2 से 3 ब्लेड्स और एक रोटर शाफ़्ट होता है. अंतर केवल इतना होता है कि इसमें यह शाफ़्ट वर्टिकल दिशा में घूमता है.
वर्टिकल विंड टर्बाइन को सबसे पहले एक फ्रेंच इंजिनियर जॉर्ज डैरियस (Georges Darrieus) ने डिज़ाइन किया था. यह साल 1926 था जब उन्होंने इस डिज़ाइन को अपने नाम से पेटेन्ट करवाया था. हालाँकि तब इसका आकार बेहद बड़ा था. मगर अब इसके छोटे डिज़ाइन उपलब्ध हैं. वर्टिकल विंड मील का सबसे बड़ा फायदा यह है कि इस पर हवा की दिशा का असर नहीं होता है. इसका टर्बाइन जनरेटर ओमनीडायरेक्शनल होता है जो किसी भी दिशा में हवा चलने पर बिजली पैदा करता है.
भारत में विंड मील
भारत ने सबसे पहले साल 2009 में विंड मिल्स के ज़रिए अक्षय ऊर्जा पैदा करने का उपक्रम शुरू किया था. इस दौरान 11 हज़ार 806 मेगावाट की विंड मील यूनिट स्थापित की गई थी जो उस दौरान दुनिया की पाँचवीं सबसे बड़ी यूनिट थी. अभी इस तरीके से भारत में सबसे ज़्यादा बिजली तमिलनाडू (4900.765MW) में पैदा होती है. वहीँ मध्य प्रदेश में विंड मील्स के ज़रिए मात्र 212.8 मेगावाट बिजली ही उत्पन्न होती है. हालाँकि यह आँकड़े हॉरिज़ोन्टल विंड मील्स से उपजने वाली बिजली के हैं.
इंदौर नगर निगम के महापौर पुष्यमित्र भार्गव के अनुसार उनका लक्ष्य शहर की बिजली की आवश्यकता को पूरा करना और कोयला आधारित बिजली पर उनकी निर्भरता कम करना है. भार्गव कहते हैं,
“इंदौर हमेशा से देश के बाकी शहरों से आगे सोचता है. यह प्रयास भी देश के अन्य शहरों के लिए मिसाल बनेगा.”
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