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Guna Bus Accident: लम्बी होती देश की सड़कें, मगर कितनी सुरक्षित?

बीते बुधवार मध्य प्रदेश के गुना में (Guna Bus Accident) एक डम्फर से टकराने के बाद यात्री से भरी हुई बस में आग लग गई. इस हादसे में अब तक 13 लोगों के जिंदा जलकर मरने की खबर है.

By Shishir Agrawal
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Guna Bus Accident

बीते बुधवार मध्य प्रदेश के गुना में (Guna Bus Accident) एक डम्फर से टकराने के बाद यात्री से भरी हुई बस में आग लग गई. इस हादसे में अब तक 13 लोगों के जिंदा जलकर मरने की खबर है. वहीँ करीब 16 लोगों के झुलस जाने की खबर है. बताया जा रहा है कि यह बस गुना से आरोन की ओर जा रही थी. इसी दौरान सामने से आ रहे डम्फर से इसकी टक्कर के बाद बस पलट गई और उसमें आग लग गई. इस दौरान बस में कुल 30 लोग सवार बताए जा रहे हैं. मीडिया की ख़बरों के अनुसार इस बस का फिटनेस सर्टिफिकेट एक्सपायर हो चुका था. यानि बस सड़क पर दौड़ने के लिए फिट नहीं थी.

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भारत में सड़कों का जाल तेज़ी से फैलता जा रहा है. नेशनल हाइवे की बढ़ती लम्बाई और उस पर चलने वाली गाड़ियों की रफ़्तार तेज़ी से बढ़ रही है. मगर इसी के साथ ही इन सड़कों पर होने वाले हादसे भी बढ़ते जा रहे हैं. भारत रोड हादसों के चलते होने वाली मौत के मामले में पहले नंबर पर है. इसके अलावा हादसों के चलते होने वाली मौत के 11 प्रतिशत मामले भारत में दर्ज होते हैं. हालाँकि उपरोक्त मामले (Guna Bus Accident) में प्रथम दृष्टया मामला ट्राफिक नियमों का उल्लंघन का दिखाई दे रहा है. मगर यह समय है जब यह सवाल किया जाना चाहिए कि हमारी लम्बी होती सड़कें कितनी सुरक्षित हैं और इन्हें सुरक्षित बनाने के लिए क्या करना ज़रूरी है. 

क्या सुरक्षित हैं हमारे नेशनल हाइवे?

साल 2019 तक के एक आँकड़ें के अनुसार नेशनल हाइवे देश की कुल सड़क का 2.03 प्रतिशत भाग कवर करते हैं. मगर देश भर में होने वाले कुल सड़क हादसों में 35.7 प्रतिशत हादसे नेशनल हाइवे में होते हैं. वहीँ स्टेट हाइवे की बात करें तो यह देश में बिछी कुल सड़क का 3.01 प्रतिशत हिस्सा कवर करते हैं. मगर इनमें होने वाले सड़क हादसों के चलते होने वाली मौत देश में इस वजह से होने वाली कुल मौत का 24.8 प्रतिशत हिस्सा हैं. साल 2014 के बाद देश भर में राष्ट्रिय राजमार्गों के बनने में तेज़ी आई है. मई 2014 तक देश में नेशनल हाइवे की कुल लम्बाई 90 हज़ार किमी थी. जो साल 2018 तक 1 लाख 29 हज़ार किमी तक हो गई. 

मगर बढ़ती हुई लम्बाई के बाद भी हमारे देश के राष्ट्रिय राजमार्ग सुरक्षा के लिहाज़ से फेल साबित होते हैं. भारत में हर 76 सेकेण्ड में एक सड़क हादसा होता है. वहीँ हर 1 घंटें में करीब 17 लोग इसके चलते मारे जाते हैं. आँकड़ों के अनुसार इन हादसों में मारे जाने वाले 84 प्रतिशत लोग 18 से 60 साल के बीच की उम्र के होते हैं.

सरकारें क्या कर सकती हैं?

अब तक देश के ज़्यादातर राष्ट्रिय राजमार्ग में लम्बे हिस्से ऐसे होते हैं जिनके किनारे किसी भी ऐसी सुविधाओं का आभाव होता है जहाँ वाहन चालक रुक कर खुद को आराम दे सके. यह चालाक पर दबाव बढ़ाता है. ऐसे लम्बे सफ़र आम तौर पर ट्रक या लौरी ड्राइवर्स द्वारा किए जाते हैं. आँकड़ों के अनुसार साल 2021 में करीब 30 हज़ार हादसे इन बड़े वाहनों के चलते हुए हैं. ऐसे में इस स्थिति को सुधारने और वहां चालकों पर दबाव कम करने के लिए सरकार देशभर के राष्ट्रीय राजमार्गों और एक्सप्रेस वे में कुल 600 जगहों में पेट्रोल पम्प, चार्जिंग पॉइंट, मिड वे ट्रीट जैसी सुविधाएँ स्थापित करने वाली है. इसका उद्देश्य चालकों को आराम करने की सुविधा प्रदान करना और रोड पर वाहन चलाते हुए उन पर दबाव कम करना होगा. 

वर्ल्ड बैंक करेगा फंड

इसके अलावा वर्ल्ड बैंक और एशियन डेवलपमेंट बैंक भारत में 250 मिलियन डॉलर निवेश करेगा. इसका इस्तेमाल रोड में सुरक्षा को बढ़ाने के लिए किया जाएगा. इसमें भारत अपनी ओर से 1 बिलियन डॉलर का निवेश करेगा. इस फंड का 90 प्रतिशत हिस्सा उन 14 राज्यों को दिया जाएगा जहाँ देश के 85 प्रतिशत सड़क हादसे होते हैं. शेष 10 प्रतिशत हिस्सा केन्द्रीय सड़क एवं परिवहन मंत्रालय के पास होगा.

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Tags: Guna Bus Accident