भारत में चीते आए तो ग्रासलैंड यानी घांस के मैदानों के बारे में अचानक बात शुरु हुई, चीतों का नैचुरल हैबिटैट ग्रासलैंड ही होता है, एक तर्क दिया गया कि चीतों के आने से भारत के ग्रासलैंड फिर से फलने फूलने लगेंगे।
लेकिन ये ग्रासलैंड होते क्या हैं, और इनके होने का क्या फायदा है?
क्या होते हैं ग्रासलैंड?
पृथ्वी की 37 फीसदी भूमि ग्रासलैंड ही है। ग्रासलैंड जंगल और डेस्टर्ट के बीच की ज़मीन है, कम बारिश की वजह से यहां जंगल नहीं उग सकता.. लेकिन यहां इतनी कम बारिश भी नहीं होती कि डेसर्ट ही बन जाए। इसलिए छोटे वैजिटेशन और घांस ही यहां उगती है, ग्रासलैंड का इस्तेमाल ज्यादातर पशुओं को चराने के लिए होता है।
यह महत्वपूर्ण क्यों है?
यह सबसे प्रोडक्टिव इकोसिस्टम होता है क्योंकि इंसान अपने फूड, कल्चर और हैरिटेज के लिए इन्हीं ग्रासलैंड पर निर्भर है। लेकिन ग्रासलैंड को पूरी दुनिया में इग्नोर किया जाता है, इन्हें वेस्ट लैंड यानि बंजर ज़मीन समझा जाता है।
लेकिन एक स्टडी के मुताबिक ग्रासलैंड जंगलों की अपेक्षा क्लाईमेट चेंज से लड़ने में ज्यादा कारगर साबित हो सकते हैं।
कार्बन उत्सर्जन की वजह से पृथ्वी का तापमान बढ़ रहा है, जंगल कार्बन ट्रैप करके रखते हैं, इसलिए जंगलों और पेड़ों के संरक्षण की तरफ ध्यान दिया जा रहा है।
लेकिन एक्सट्रीम हीट वेव की वजह से बड़ी संख्या में जंगलों में आग लग रही है जिसकी वजह से पेड़ों की लकड़ी में स्टोर कार्बन पर्यावरण में रीलीज़ हो रहा है। जंगलों की आग ग्लोबल वॉर्मिंग को और अधिक बढ़ा रही है।
वहीं ग्रासलैंड पर एक्सट्रीम वेदर का असर नहीं होता, ये जंगलों के मुकाबले बेहतर कार्बन सिंक हैं। घांस और छोटे वैजिटेशन अपनी रुट्स की मदद से मिट्टी में बड़ी मात्रा में कार्बन स्टोर करके रखते हैं। एक स्टडी के मुताबिक ग्रासलैंड ज़मीन के भीतर 67 प्रतिशत बायोमास स्टोर करके रखते हैं, वहीं जंगल 22 फीसदी।
घांस के मैदान पानी को बांध कर रखते हैं, इससे बाढ़ और सूखे का खतरा भी कम होता है। तमाम तरह की प्रजातियों के लिए ग्रासलैंड नैचुरल हैबिटैट का काम करते हैं, इसके संरक्षण से बायोडायवर्सटी को फायदा होता है।
ग्रासलैंड खतरे में क्यों है?
भारत में अंग्रेज़ों की समय से ही खाली पड़ी ज़मीन जिससे कोई रिवेन्यू न आता हो उसे वेस्टलैंड ही समझा गया। ग्रीन रिवॉल्यूशन के बाद बड़ी मात्रा में ग्रासलैंड पर खेती शुरु हुई, बची हुई ज़मीनों को दूसरे विकास कार्य में इस्तेमाल किया गया। ग्रासलैंड तबाह होने लगे, यहां पलने वाले जानवर एक्सटिंक्ट होने लगे।
अब अगर आप कहेंगे की भारत से चीते क्यों विलुप्त हो गए थे, तो उसका एक उत्तर यह भी है कि किसी का घर तबाह कर उसकी खैरियत की उम्मीद तुम रख भी कैसे सकते हो।
चीते ग्रासलैंड को बचाने में मददगार हैं, ये घांस खाने वाले जानवरों की पॉप्यूलेशन को कंट्रोल में रखते हैं, जिससे ओवरग्रेज़िंग की सम्सया पैदा नहीं होती।
वर्ष 2019 में भारत सरकार ने यूनाईटेड नेशंस में बताया था कि साल 2005 से 2015 के बीच भारत में 31 फीसदी यानि 5.65 मिलियन हेक्टेयर ग्रासलैंड खत्म हो गए।
आज़ादी के समय तक कर्नाटक में 4 लाख एकड़ के ग्रासलैंड हुआ करते थे जिन्हें इंडियन सैवन्ना के नाम से जाना जाता था यह अब सिमटकर 60 हज़ार एकड़ ही रह गया है।
बैंग्लौर में आई बाढ़ याद होगी आपको, …ग्रासलैंड बाढ़ को नियंत्रित करते हैं, लेकिन उन्हें तो.. हमने….खैर छोड़िये।
भारत में ग्रासलैंड अब मध्यप्रदेश, गुजरात और राजस्थान में कुछ पैचेस में बचे हुए हैं।
समाधान
भारत में कार्बन स्टोरेज और क्लाईमेट चेंज से लड़ने की नीतियां ज्यादातर पेड़ लगाओ पर केंद्रित हैं। भारत ने अंतर्राष्ट्रीय कम्यूनिटी को वादा किया है कि साल 2030 तक 26 मिलियन हेक्टेयर डिफोरेस्टेड लैंड को दोबारा रीस्टोर क्या जाएगा।
ऐसे में भारत को ग्रासलैंड रीस्टोर करने की ओर भी ध्यान देना चाहिए, इसकी शुरुवात छोटे-छोटे पैचेस पर नैचुरल वैजिटेशन रीस्टोर कर हो सकती है। निजी तौर भी भारत में कई उद्योगपतियों और संस्थाओँ के पास जो खाली ज़मीनें पड़ी हैं, वहां भी ग्रासलैंड के छोट पैच डेवलप किए जा सकते हैं।
यह मुमकिन है और किया भी जा रहा है। केरल के फॉरेस्ट डिपार्टमेंट ने हाली ही में पज़ाथोट्टम में 2 हेक्टेयर के पैच पर नैटिव ग्रासलैड रिवाईव किया है, जिसके फायदे दिखने लगे हैं, यहां बायोडायवर्सिटी दोबारा रिवाईव हो रही है।
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