Powered by

Advertisment
Home ग्राउंड रिपोर्ट हिंदी

जलवायु परिवर्तन से प्रभावित हो रही है बुधनी के मछुआरों की जीविका

प्रशासन की नीतियों में केवट और मांझी-केवट समुदाय के प्रति बेरुखी ने भी आनंद मांझी जैसे मछुआरों की रोज़ी रोटी को संकट में डाला है।

By Pallav Jain
New Update
fishermen of Budhni and climate change

सुबह के 10 बजे हैं आनंद मांझी बुधनी घाट से मछलियां पकड़कर लौट रहे हैं, हमारी नज़र उनके झोले पर पड़ती है जिसमें सभी मछलियां एक ही प्रजाति की नज़र आती हैं, आनंद कहते हैं

Advertisment

"यह मिल रही है वही बड़ी बात है,पता नहीं आने वाले समय में यह भी नसीब होगी या नहीं"

मध्यप्रदेश के सीहोर जिले का बुधनी शहर नर्मदा नदी के किनारे बसा है। नर्मदा नदी से मिलने वाली मछलियों को बेचकर यहां के 30-35 मछुआरा परिवार अपना जीवन यापन करते हैं। आनंद मांझी का परिवार इन्हीं में से एक है। पीढ़ियों से उनका परिवार मछलीपालन का काम कर रहा है। आनंद ने मछली पकड़ने का काम अपने पिता पूरण मांझी से सीखा और इसी काम के ज़रिए उनके घर का खर्च चलता है। आनंद के दो भाई और हैं जो बुधनी की फैक्ट्री में काम करते हैं, वे लोग मछली पकड़ने का काम नहीं करना चाहते क्योंकि इसमें उतनी आमदनी नहीं है जिससे परिवार के जीवन स्तर में सुधार आ सके।

anand manjhi fisherman of Budhni
आनंद मांझी मछली पकड़कर लौटे हैं और हमें अपनी समस्याएं बता रहे हैं, फोटो ग्राउंड रिपोर्ट

आनंद बताते हैं

"हम मांझी समुदाय से आते हैं, पीढ़ियों से मछली पकड़ने का काम कर रहे हैं, मैं बचपन से पिता के साथ मछली पकड़ने जाता रहा हूं, नर्मदा नदी ही हमारा दूसरा घर है, लेकिन पिछले कुछ सालों में मां नर्मदा का पानी प्रदूषित हो गया है। रात के अंधेरे में कैमिकल वाला पानी नदी में छोड़ा जाता है। हम सुबह-सुबह जब नांव से मछली पकड़ने जाते हैं तो यह सब देखते हैं।"

आनंद के पिता पूरन मांझी इस बात से सहमत हैं वो बताते हैं कि पहले नर्मदा का पानी इतना प्रदूषित नहीं था जितना आज है,

"हम जब नदी में डुबकी लगा कर निकलते हैं तो आंखे लाल हो जाती हैं, ऐसा पहले नहीं होता था"। प्रशासन की लापरवाही को ज़िम्मेदार ठहराते हुए पूरन मांझी कहते हैं कि इसी वजह से अब नदी में बहुत कम मछली बची है, बीज भी इतना नहीं होता।"

प्रदूषण के अलावा नर्मदा नदी में हो रहा अवैध रेत खनन, जलवायु परिवर्तन की वजह से बारिश के पैटर्न में हुआ बदलाव और प्रशासन की नीतियों में केवट और मांझी-केवट समुदाय के प्रति बेरुखी ने भी आनंद मांझी जैसे मछुआरों की रोज़ी रोटी को संकट में डाला है।

budhni fishermen story
बुधनी घाट से अपने घर की ओर लौटते पूरन मांझी, फोटो ग्राउंड रिपोर्ट

मॉनसून में देरी से घटती मछलियां

आमतौर पर पहले मध्यप्रदेश में मॉनसून 15 जून तक आ जाता था, लेकिन इस वर्ष जून के अंत तक मॉनसून नदारद रहा। मॉनसून की बारिश मछलियों की ब्रीडिंग के लिए महत्वपूर्ण मानी जाती है, बारिश के पैटर्न में बदलाव की वजह से ब्रीडिंग कम होती है जिससे कम मछलियां पैदा होती हैं। छोटे-छोटे नदी नालों से मछलियां बारिश के पानी के साथ बहकर नर्मदा नदी तक आती हैं, लेकिन बारिश का सही से न होना इन नदी नालों को सूखा रखता है जिससे भी मछलियों की कम आवक होती है।

प्रशासन की ओर से मछलीपालकों को जलवायु परिवर्तन के खतरे से आगाह न किया जाना आने वाले समय में बड़ी समस्या पैदा कर सकता है।

fishermen of budhni
आनंद मांझी द्वारा पकड़ी गई मछलियों को झोले से निकालती उनकी पत्नी, फोटो ग्राउंड रिपोर्ट

एक समय पर बहुतायत में पाई जानी वाली महशीर मछली जिसे मध्यप्रदेश की राज्य मछली का भी दर्जा प्राप्त है, विलुप्ती की कगार पर पहुंच चुकी है। रायकवार मछुआ समिति के मिलिंद रायकवार के अनुसार वर्ष 2010 के बाद से महशीर मछली बाज़ार में बहुत कम दिखाई दे रही है। बुधनी और नसरुल्लागंज में होने वाले अवैध रेत खनन, नदियों के किनारे हो रहे अवैध निर्माण और प्रशासन की ओर से मछलियों की प्रजाति के संरक्षण के लिए कोई काम न होना इसकी वजह माना जा रहा है। हालांकि सीहोर जिले के मछलीपालन अधिकारी का मानना है कि "अगर सही ढंग से महशीर मछली का पालन किया जाए तो इसे बचाया जा सकता है, प्रशासन की ओर से इसके लिए कोई विशेष योजना नहीं है।"

"जलाशयों के पट्टे दूसरी जातियों को दिए जा रहे हैं"

नदी और तालाबों में मछुआरा समुदाय की समितियों को 10 साल के लिए पट्टे आवंटित किये जाते हैं, लेकिन आनंद मांझी कहते हैं कि

"अब यह पट्टे पारंपरिक रुप से मछलीपालन कर रहे केवट और मांझी समुदाय के लोगों को न देकर अन्य जातियों के लोगों को भी दिए जा रहे हैं। दूसरी जगह हम अगह मछली पकड़ने जाते हैं तो हमें रोक दिया जाता है, अगर जलाशय ही नहीं होगा तो हम कैसे अपना जीवनयापन करेंगे?"

budhni ghat madhya pradesh
बुधनी घाट जहां मछुआरे मछली पकड़ते हैं, फोटो ग्राउंड रिपोर्ट

पूरन मांझी कहते हैं कि "सरकार ने बुधनी के विकास के लिए कई काम किये हैं लेकिन मछुआरा समुदाय की समस्याओं की ओर ज्यादा ध्यान नहीं दिया है। हम दिनभर में 10 किलो मछली पकड़ लें तो हमारे परिवार का भरण पोषण हो जाता है, लेकिन महंगाई के साथ अतिरिक्त खर्चों के दौर में हमें काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।"

सरकारी योजनओं का लाभ सभी को नहीं मिला

मई 2022 में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने बुधनी में ही मछुआरा समुदाय के लिए कई घोषणाएं की थी ताकि उनके जीवन स्तर में बदलाव लाया जा सके। इन घोषणाओं में लोकल स्तर पर स्मार्ट फिश पार्लर स्थापित करने की बात कही गई, जिसका उद्देश्य है मछलीपालकों को एक बाज़ार उपलब्ध करवाना। लेकिन इसको लेकर अभी काम शुरु नहीं हुआ है। इस कार्यक्रम में 400 लाभार्थियों को फिशिंग किट बांटी गई और 50 मछुआरों को मोटरसाईकिल दी गई , जिसमें एक बेसिक फिशिंट किट लगी हुई है। 443 मछुआरों के मछुआ क्रेडिट कार्ड भी अप्रूव किए गए।

आनंद मांझी कहते हैं कि हां कुछ लोगों को मोटरसाईकिल बांटी गई है, लेकिन हमें इस योजना के बारे में पता नहीं था इसलिए हमें इसका लाभ नहीं मिल सका है।

वीडियो रिपोर्ट

Keep Reading

Follow Ground Report for Climate Change and Under-Reported issues in India. Connect with us on FacebookTwitterKoo AppInstagramWhatsapp and YouTube. Write us at [email protected].