रिंकू कुमारी | मुजफ्फरपुर, बिहार | बिहार के सरकारी स्कूलों में इन दिनों नये-नये प्रयोग हो रहे हैं. ये प्रयोग प्राथमिक व माध्यमिक शिक्षा से अधिक से अधिक बच्चों को जोड़ने के लिए किये जा रहे हैं. गुणवत्तापूर्ण शिक्षा को बढ़ावा देने, ड्राॅपआउट बच्चों को स्कूल कैंपस तक लाने तथा पूरी घंटी तक बच्चों के विद्यालय में ठहराव के लक्ष्य को पूरा करने के लिए राज्य का शिक्षा विभाग गंभीर दिख रहा है. राज्य सरकार का ध्यान भी शिक्षा प्रणाली को दुरुस्त करने में लगा है. लेकिन कुछ बुनियादी कारणों से सरकारी प्रयासों को अपेक्षित सफलता मिलना अभी बाकी है. हालांकि, पिछले दशकों की अपेक्षा वर्तमान में बिहार के सरकारी स्कूलों के इंफ्रास्ट्रकचर में काफी सुधार हुआ है, लेकिन क्वालिटी एजुकेशन में अभी बहुत काम करने की जरूरत है.
कोरोना काल में बेपटरी हुई राज्य की शिक्षा व्यवस्था को फिर से पटरी पर लाने के लिए राज्य सरकार ने ‘सब पढ़ें सब बढ़े’ का मूलमंत्र देकर बजट के दौरान अपनी मंशा व्यक्त कर दी थी. सरकार ने चालू वित्तीय वर्ष में शिक्षा बजट में 1155.94 करोड़ रुपए की बढ़ोतरी की है. नीति आयोग के इंडेक्स पर खरा उतरने के लिए शिक्षा के क्षेत्र में ई-कंटेंट लर्निंग, टीचर्स ट्रेनिंग प्रोग्राम, रिसर्च एवं इनोवेशन पर खासा ध्यान दिया जा रहा है. शिक्षा विभाग का जोर डिजिटल या फिर ऑनलाइन माध्यम से शिक्षा मुहैया कराने पर भी है. कोविड-19 महामारी के कारण पढ़ाई-लिखाई से वंचित आंगनबाड़ी एवं बेसिक स्कूलों के बच्चों में संख्या ज्ञान और मौलिक साक्षरता दर को बनाए रखने पर ध्यान दिया जा रहा है. राज्य में करीब 1.18 लाख आंगनबाड़ी केंद्र चल रहे हैं. हाल के वर्षों में आंगनबाड़ी केंद्रों को पारदर्शिता के दायरे में रखकर कुछ बदलाव किये गये हैं.
राज्य में 72 हजार से अधिक प्राइमरी स्कूलों के 1.39 करोड़ बच्चों को निपुण बिहार योजना से जोड़कर शिक्षा व्यवस्था को सुदृढ़ किया जा रहा है. इस कार्यक्रम के तहत बच्चों को पढ़ने-लिखने, अक्षर की पहचान करने, उसका अर्थ जानने, जोड़-घटाव तथा आयु-सापेक्ष अन्य संख्यात्मक कार्यकलापों को हल करने में दक्ष बनाना प्रमुख उद्देश्य है. ‘साइकिल-पोशाक योजना’ एवं ‘मध्याह्न भोजन योजना’ दो ऐसी योजनाएं हैं, जिसने बिहार के सरकारी स्कूलों में बच्चों की उपस्थिति एवं नामांकन का प्रतिशत बढ़ाया है, लेकिन क्वालिटी एजुकेशन का लक्ष्य पाना अभी भी इतना आसान नहीं है. इसी को मद्देनज़र रखते हुए राज्य सरकार ने विभिन्न कार्यक्रमों की शुरुआत की है.
चालू वित्तीय वर्ष में मिशन निपुण कार्यक्रम के तहत राज्यभर के प्राथमिक विद्यालयों में कक्षा तीन के बच्चों के बीच शुरू किये गये ‘चहक’ कार्यक्रम बुनियादी शिक्षा को सफल बनाने की दिशा में एक अच्छी पहल कही जा सकती है. छोटे-छोटे बच्चों के बीच ‘चहक’ कराने का उद्देश्य खेल-खेल में पढ़ाई, शारीरिक गतिविधियां, संख्या ज्ञान, व्यावहारिक व सामाजिक ज्ञान को बढ़ावा देना, स्कूल में शिक्षकों व सहपाठियों के बीच दोस्ताना माहौल बनाना आदि प्रमुख है. इस संबंध में शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव संजय कुमार कहते हैं कि इस योजना को धरातल पर उतारने के लिए बिहार शिक्षा परियोजना परिषद, एससीईआरटी, यूनिसेफ सहित शिक्षा के क्षेत्र में काम करने वाले कुई एनजीओ की मदद ली जा रही है. एससीईआरटी ने स्कूल रेडीनेस को लेकर शिक्षण सामग्री तैयार की है. बच्चों के लिए वर्कबुक, अन्य शिक्षण सामग्री, पोस्टर, निपुण बिहार का थीम सॉन्ग आदि इस योजना के सफल क्रियान्वयन के लिए तैयार किया है.
इसके साथ ही सरकारी स्कूलों में पढ़ाई के माहौल को बेहतर बनाने के लिए स्मार्ट क्लास, मुफ्त किताब, छात्रवृति योजना समेत तमाम तरह की योजनाएं चलायी जा रही हैं. पिछले दो साल से ‘नामांकन उत्सव’ भी मनाया जा रहा है. इसके बावजूद उदाहरण के तौर पर राज्य के एक प्रमुख जिला मुजफ्फरपुर की बात करें, तो यहां पहली कक्षा में बच्चों की संख्या नहीं बढ़ रही है. कोरोना काल में आश्चर्यजनक रूप से सरकारी स्कूलों में बच्चों की संख्या बढ़ी थी, लेकिन स्थिति सामान्य होते ही अभिभावकों ने फिर से अपने बच्चों का नाम कटवा कर प्राइवेट स्कूलों में दाखिला करवाना शुरू कर दिया है. जिले में पिछले दो साल में बच्चों के दाखिले की दर में 25 फीसदी से अधिक की कमी आयी है, जो चिंताजनक है. इस संबंध में मुजफ्फरपुर के जिला शिक्षा अधिकारी अजय कुमार बताते हैं कि सरकारी विद्यालयों में एडमिशन का रेशियों बढ़ाने का काम एवं बेहतर शैक्षणिक माहौल तैयार किया जा रहा है. नामांकन कम क्यों हुआ है, इसकी समीक्षा की जा रही है.
अभी हाल में प्राथमिक स्कूलों में ‘बैगलेस सुरक्षित शनिवार’ की शुरुआत की गयी है, जिसका थीम है- ‘हर शनिवार एक रोचक नवाचार’. यह कार्यक्रम कक्षा एक से आठवीं तक के छात्र-छात्राओं के लिए अनिवार्य है, लेकिन स्वेच्छा से चाहे तो नौवीं से बारहवीं तक के छात्र भी इन गतिविधियों में शामिल हो सकते हैं. बैगलेस सुरक्षित शनिवार को बच्चे बिना बैग और बस्ते के स्कूल आते हैं. इस दिन बच्चे अपनी-अपनी रुचि के हिसाब से रचनात्मक गतिविधियों में शामिल होते हैं, जैसे- खेल, पेंटिंग, गायन, नृत्य आदि. ‘अभिभावक-शिक्षक संगोष्ठी’ और चेतना सत्र आदि कार्यक्रम इसी दिशा में की गयी एक अच्छी पहल है. एक छात्र को वही शिक्षक बेहतर शिक्षा दे सकते हैं, जो खुद शिक्षण-कार्य में निपुण हों. शिक्षा विभाग शिक्षकों को नवाचार से जोड़ने, बच्चों के मनोविज्ञान के अनुरूप व्यवहार करने, बच्चों के बीच दोस्ताना माहौल बनाए रखने एवं खेल-खेल में पढ़ाने के लिए तैयार करने हेतु लगातार कोई न कोई प्रशिक्षण का आयोजन करता रहता है. '30 दिवसीय प्रशिक्षण, उद्भव प्रशिक्षण, विज्ञान प्रशिक्षण, भाषा प्रशिक्षण, गणित प्रशिक्षण और निष्ठा प्रशिक्षण के माध्यम से शिक्षकों को पठन-पाठन में निपुण बनाए जाने को लेकर ट्रेनिंग दी जाती रही है.
शिक्षा के अधिकार कानून 2009 के तहत प्राथमिक एवं माध्यमिक शिक्षा की गुणवत्ता सुनिश्चित करना सरकार की जिम्मेवारी है. नई शिक्षा नीति 2022 का मुख्य उद्देश्य भी है कि देश में जो अब तक शिक्षा मुहैया करायी जाती रही है, उसमें क्रांतिकारी बदलाव लाया जाए. लेकिन क्या यह बदलाव शिक्षकों की भारी कमी झेल रहे सरकारी स्कूलों के लिए संभव है? बिहार में पिछले साल छठे चरण की शिक्षक बहाली प्रक्रिया पूरी होने के बाद अब भी करीब एक लाख बाइस हजार शिक्षकों की कमी है. शिक्षा मंत्री सातवें चरण की बहाली प्रक्रिया को जल्द पूरी करने का दावा कर रहे हैं. लेकिन देखना शेष है कि बिहार में शिक्षकों की कमी कब तक पूरी होती है. प्रधानाध्यापकों को बहाल करने की कवायद भी चल रही है. अभी कई स्कूलों में प्रभारी प्रधानाध्यापकों से काम चलाया जा रहा है. यूनिफाइड डिस्ट्रिक्ट इंफॉर्मेशन सिस्टम फॉर एजुकेशन (यूडीआईएसई) की रिपोर्ट 2020-21 के मुताबिक पिछले एक साल में देशभर में सबसे अधिक बिहार में 2945 नए सरकारी स्कूल खुले हैं, लेकिन शिक्षकों की संख्या उसकी अपेक्षा कम है. इसके बावजूद सूबे के सरकारी विद्यालयों में ड्रॉपआउट की समस्या में कमी आयी है.
पूर्वी चंपारण के कल्याणपुर स्थित उत्क्रमित माध्यमिक विद्यालय शीतलपुर के शिक्षक डॉ. सतीश कुमार कहते हैं कि वर्तमान शिक्षा व्यवस्था में अभी और सुधार की गुंजाइश है. सरकार द्वारा हाल के वर्षों में जिन-जिन योजनाओं को शैक्षणिक माहौल में सुधार के लिए चलाया जा रहा है और बच्चों व शिक्षकों के लिए जिस प्रकार से प्रशिक्षण की व्यवस्था की जा रही है, वह काबिले तारीफ है. लेकिन यह प्रयास तब फलीभूत होगा जब इसके लिए शिक्षकों के साथ साथ अभिभावक भी तत्पर रहें. जबकि अभिभावक इसके लिए शिक्षकों की उदासीनता को सबसे बड़ी कमी बता रहे हैं.
मुजफ्फरपुर के मुशहरी प्रखंड स्थित प्रह्लादपुर एक मिडिल स्कूल में छठी कक्षा में पढ़नेवाली एक छात्रा की अभिभावक सुनैना देवी का कहना है कि सरकार तो ध्यान दे ही रही है, लेकिन शिक्षक ही इसे गंभीरता से नहीं लेते हैं. उनका आरोप है कि इस स्कूल के कई शिक्षक न तो समय पर स्कूल आते हैं और न ही मन से बच्चों को पढ़ाते हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि सूबे की शिक्षा व्यवस्था इस तरह मजबूत कैसे होगी? बुनियादी शिक्षा में सुधार के लिए राज्य सरकार, शिक्षा विभाग, प्रिंसिपल से लेकर शिक्षकों, स्थानीय नागरिकों एवं अभिभावकों को सम्यक प्रयास करना होगा, तभी हम सरकारी स्कूलों की व्यवस्था एवं शिक्षण के माहौल को बेहतर बना सकते हैं. (चरखा फीचर)
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