साल 2018 से 2022 के बीच बाघ द्वारा लोगों पर हमले से होने वाली मौत में इजाफ़ा हुआ है. केवल 2021 से 2022 के बीच ही यह घटनाएँ लगभग दोगुनी हो गई हैं. यह निष्कर्ष पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंदर यादव द्वारा मौजूदा शीतकालीन संसद सत्र के दौरान दिए गए एक जवाब से निकल कर आए हैं. 18 दिसंबर को दिए जवाब के अनुसार साल 2021 में 59 लोगों की मौत बाघ के हमले के चलते हुई थी वहीँ 2022 में यह आँकड़ा बढ़कर 112 हो गया.
5 सालों में बढ़ते आँकड़े
साल 2018 में देश भर के 18 राज्यों में बाघ द्वारा किए गए हमलों के चलते कुल 31 मौतें हुई थीं. इसके अगले ही साल यह बढ़कर 49 हो गईं. इसके बाद साल 2020 से लेकर 2022 तक यह संख्या क्रमशः 51, 59, 112 हो गई. वहीँ अगर राज्य वार यह आँकड़ें देखे जाएँ तो 2018 को छोड़कर हर साल बाघ द्वारा सबसे ज़्यादा मानव शिकार महाराष्ट्र में किए गए हैं. 2019 में यहाँ यह आँकड़ा 26 था जो बढ़ते हुए 85 तक पहुँच गया.
वनों में बढ़ता अतिक्रमण
वन विहार नेशनल पार्क के पूर्व डिप्टी डायरेक्टर सुदेश वाघमारे इसका कारण टाइगर रिज़र्व के आस-पास बढ़ती आबादी को मानते हैं. वह कहते हैं,
“टाइगर रिज़र्व के आस-पास अतिक्रमण बढ़ा है. आस-पास के गाँव अपना विस्तार करके वनों के और अन्दर जा रहे हैं जिससे ह्ययूमन-एनिमल कंफ्लिक्ट बढ़ा है.”
संसद में पेश आंकड़ों के अनुसार बीते एक साल में वनों में होने वाला अतिक्रमण 146 प्रतिशत तक बढ़ा है. साल 2022 में 3 लाख 3 हज़ार 324.18 हेक्टेयर वन भूमि पर अतिक्रमण था जो 2023 में बढ़कर 7 लाख 45 हज़ार 591 हेक्टेयर हो गया.
विकास के आभाव से उपजता संघर्ष
वहीँ वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट अजय दुबे इसे थोड़ा अलग नज़रिए से देखते हैं. वह कहते हैं कि प्रशासन की ओर से वनों के आस-पास के गाँवों में मूलभूत सुविधाओं का आभाव है जिसके चलते यहाँ रहने वाले लोगों को वनोपज की चोरी और अतिक्रमण के लिए मजबूर होना पड़ता है. दुबे इसे और विस्तार से समझाते हुए कहते हैं,
“संघर्ष आभाव में पनपता है. यदि आप जंगलों में रहने वाले समुदाय की मूलभूत सुविधाओं और रोज़गार के साधन को बढ़ावा नहीं देंगे तो वो लोग जंगल को काटकर खेती करने, लकड़ी बेंचने के लिए उसे काटने और वनोपज के लिए जंगल के अन्दर जाएँगे.”
जंगलों में बढ़ने वाला यह इंसानी दखल इस टकराव को और बढ़ावा देगा.
महाराष्ट्र में इस संख्या के सबसे ज़्यादा होने के कारण पर प्रकाश डालते हुए दुबे कहते हैं, “संभवतः वहां ऐसा इसलिए भी होगा क्योंकि वहां इन घटनाओं की रिपोर्टिंग अच्छी होती होगी.” हालाँकि मीडिया की ख़बरें और अन्य एक्सपर्ट इसके पीछे बाघों की संख्या में वृद्धि को भी ज़िम्मेदार मानते हैं. मोंगाबे की एक रिपोर्ट के अनुसार महाराष्ट्र के चंद्रपुर में साल 2022 में जंगली जानवरों के हमले के चलते 51 लोगों की मौत हुई है. वहीँ स्टेटस ऑफ़ टाइगर 2022 रिपोर्ट के अनुसार चन्द्रपुर में बाघों की संख्या 248 हो गई जो साल 2018 में 175 थी. सुदेश वाघमारे इसे समझाते हुए कहते हैं,
“बाघों की संख्या के साथ-साथ जंगल में अतिक्रमण बढ़ा है. जिससे उनके रहने और शिकार के लिए जगह सीमित होती जा रही है. ऐसे में बाघ जंगल से बाहर आकर भी शिकार करता है.”
क्या इन मौतों का कोई क्लाइमेट कनेक्शन भी है?
यह सवाल हमारे दिमाग में आता है. इसका जवाब देते हुए वाघमारे कहते हैं,
“अचानक और बहुत ज़्यादा बारिश होने पर बाघ जंगलों से निकल कर बाहर आते हैं. इस दौरान पास के गाँवों में जाने पर कभी बाघ इंसान को तो कभी इंसान बाघ को मार देता है.”
वहीँ सूखा पड़ने पर आदिवासी इलाकों में पानी के स्त्रोत सीमित हो जाते हैं. हैण्डपम्प सूखने या न होने के स्थिती में उन्हें भी वहीँ से पानी लाना पड़ता है जहाँ यह जंगली जानवर पानी पीने जाते हैं. वहीँ हाल ही में प्रकाशित स्टेटस ऑफ़ टाइगर कोप्रीडिएटर रिपोर्ट 2023 के अनुसार देश के सभी टाइगर स्टेट्स में कुल 5 लाख 83 हज़ार 278 वर्ग किमी में से केवल एक तिहाई हिस्सा ही बाघों के लिहाज से स्वस्थ्य है.
सरकार इसे कम करने के लिए क्या कर रही है?
मंत्रालय ने संसद में दिए अपने जवाब में बताया कि सरकार द्वारा राज्यों को प्रोजेक्ट टाइगर एंड एलीफैंट के तहत फंड दिया जाता है ताकि वह वनों और संरक्षित जगहों में ऐसे इंतज़ाम (material and logistical support) किए जा सकें कि बाघों को उनके संरक्षित स्थान से बाहर निकलने से रोका जा सके. मगर साल 2023-24 के बजट में प्रोजेक्ट टाइगर एंड एलीफैंट के लिए 331 करोड़ रूपए आवंटित किए गए हैं. जो साल 2022-23 के मुकाबले (335 करोड़) कम है. गौरतलब है कि साल 2023 में प्रोजेक्ट टाइगर और एलीफैंट को एक कर दिया गया था.
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