Biggest Environmental Issues in India : हमारा देश वर्तमान समय में पर्यावरण से जुड़ी कई समस्याओं से जूझ रहा है। आमतौर पर लोग पर्यावण की समस्या को गंभीर रूप से लेते ही नहीं। लेकिन अब समय आ गया है कि देश में पर्यावरण से जुड़ी समस्याओं को गंभीरता से लिया जाए। सरकार को कुछ सख़्त क़दम उठाने की ज़रूरत है। सरकार के साथ-साथ देश के नागरिकों को भी पर्यावरण से जुड़े मुद्दों पर ध्यान देना होगा। जागरुकता की कमी के चलते हर कोई किसी न किसी रूप में ख़राब होते पर्यावरण का शिकार है।
हालही में ‘Intergovernmental Panel on Climate Change’ (IPCC) ने अप्रैल, 2022 को जारी एक रिपोर्ट में पर्यावरण को लेकर चेतावनी जारी की थी। रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर अब नहीं जागे तो फिर कभी नहीं। ग्लोबल वार्मिंग 1.5°C पर है। रिपोर्ट बताती है कि जलवायु संकट जिस तेज़ी से बढ़ रहा है। इससे पहले ऐसे कभी नहीं बढ़ा है। दुनियाभर में जंगलों की बेतहाशा कटाई,सूखा,प्लास्टिक से लेकर वायु प्रदूषण जैसे मामलों ने पर्यावरण को नुकसान पहुंचाया है, जिसके परिणाम दुनिया को समय-समय पर देखने को मिलते रहे हैं।
Biggest Environmental Issues in India
वायु प्रदुषण
इस बात पर किसी को कोई संदेह नहीं है कि भारत में पर्यावरण की समस्याओं में से वायु प्रदूशष सबसे बड़ी समस्याओं में से एक है। विश्व वायु गुणवत्ता रिपोर्ट 2021 (World Air Quality Report ) के अनुसार दुनियाभर में 100 सबसे प्रदूषित शहरों में से 63 शहर भारत के हैं। वहीं, राजधानी दिल्ली को दुनिया की सबसे प्रदूषित राजधानी बताया गया है। इसके साथ ही रिपोर्ट बताती है कि देश के 48 प्रतिशत शहरों में विश्व स्वास्थय संगठन की बेसलाइन से PM 2.5 दस गुना अधिक है।
शायद आपको यह बात सामान्य लगे, लेकिन यह कोई मामूली बात नहीं है। रिपोर्ट कहती है कि भारत में वायु प्रदूषण के कारण साल 2019 में 116,168 से अधिक नवजात बच्चों ने जान गंवा दी। वे वायु प्रदूषण के कारण 7 दिन भी ज़िंदा नहीं रह सके।
अमेरिका स्थित Health Effects Institute (HEI) की रिपोर्ट में डेटा के आधार पर यह बताया गया है कि दुनियाभर में साल 2019 में 4.76 लाख से अधिक नवजात बच्चों ने वायु प्रदूषण के कारण अपनी जान गंवा दी। ये आंकड़े बेहद हैरान करने वाले हैं। किसी चेतावनी से कम नहीं।
जल प्रदूषण
बीते कुछ वर्षों में भारत ने आर्थिक मोर्चो और शहरी विकास के कार्यों में अभूतपूर्व तरक्की हासिल की है। हालांकि इसके लिय भारत के पर्यावरण को भारी क़ीमत चुकाना पड़ी है। वायु प्रदूषण के साथ-साथ जल भी प्रदूषण के कारण ज़हर में परिवर्तित होता जा रहा है। देश में 70 प्रतिशत सतही जल प्रयोग के लायक नहीं बचा है, पीना तो दूर की बात है।
वर्तमान समय में ग्राउंड वॉटर को दूषित होने से बचाना सबसे बड़ी एक चुनौतियों में से एक है। सभी तरह का कचरा, फैक्ट्रियों का ज़हरीला पानी, रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों और इंसानी वेस्ट के कारण सतह का पानी दिन प्रतिदिन अधिक दूषित होता चला जा रहा है। जिसके कारण अनेक बीमारियों ने हमें घेरना शुरू कर दिया है।
पानी की क्वालिटी को दोबारा से उसकी सही अवस्था में लाना एक बड़ा चैनेंज है,लेकिन कड़ी मेहनत और लगन से ऐसा किया जा सकता है। वर्तमान समय में इस विषय पर गहन अध्ययन की ज़रूरत है कि कैसे पानी तो दूषित होने से बचाया जाए और दूषित पानी को दोबारा से प्रदूषण से मुक्त किया जाए।
अवैध तरीक़े से सीवरों का दूषित पानी, सिल्ट और अन्य तरह के कचरे ने नदियों-तालाबों को बुरी तरह से प्रदूषित किया है। इस तरह के पानी की निकासी का कोई रोड मैप न होना और एक सिस्टम के बिना जल प्रदूषण में तेज़ी से बढ़ोत्तरी हुई है। रिपोर्ट बताती है कि 40 मिलियन कचरा रोज़ाना नदियों में बहाया जा रहा है। सरकार ने अगर जल्द ही इसको लेकर कोई समाधान नहीं निकाला तो भविष्य में जल प्रदूषण के सबसे बड़ी समस्या बनकर सामने होगी।
ग़रीबी और बढ़ती जनसंख्या
आने वाले दिनों में पर्यावरण परिवर्तन के कारण भारत को भारी नुकसान का सामना करना पड़ सकता है। हालही में आपने देखा होगा बैंगलूरु की बारिश समेत देश के कई राज्य बाढ़ में डूब गए थे। अधिक बारिश, जंगलों की आग, भीषण गर्मी और गर्म हवा जैसी चीज़ें अधिक भयानक रूप ले सकती हैं। सूखे के कारण फैसलें चौपट हो सकती हैं। अनाज की किल्लत का सामना करना पड़ सकता है।
देश की बढ़ती जनसंख्या ने नेचर द्वारा प्राप्त चीज़ों पर अधिक दबाव डाल रखा है। तेज़ी से इनका इस्तमाल किया जा रहा है। 2.22 प्रतिशत की रफ्तार से हर साल देश पर आबादी का दबाव बढ़ रहा है। बढ़ती जनसख्या पर काबू पाना भी हमारे लिय एक बढ़ी चुनौतियों में से एक है। बढ़ती जनसंख्या पर काबू पाना भी विकास का एक अहम हिस्सा है। इस पर विचार की अधिक ज़रूरी है।
देश में ग़राबी इसका एक बड़ा कारण है। ग़राबी और पर्यावरण का एक दूसरे से गहरा संबंध है। क्यों एक बड़ी आबादी प्राकृतिक चीज़ों पर ही निर्भर है। हमारे देश में आज भी 40 प्रतिशत आबादी ग़रीबी रेखा के नीचे जीवन जीने को मजबूर है। ग़रीबी में लगातार इज़ाफा भी देखा जा रहा है। जो चिंता का विषय बना हुआ है।
जंगल की आग
पिछले कुछ वर्षों से जंगलों में लगने वाली आग ने पर्यावरण को अधिक नुकसान पहुंचाया है। तेज़ी से बढ़ती गर्मी और घटती वर्षा जंगलों में आग का कारण बनती जा रही है। एक रिपोर्ट कहती है कि मई, 2022 के महीने में 433,881 बार जंगल में आग घटनाओं को रिकॉर्ड किया गया है। यह बहुत बड़ी संख्या है। यह नंबर अधिक चिंता का विषय है। हालही में दुनिया के कुछ प्रमुख जंगलों में लगी आग ने क्या कहर बरपा किया था यह सबने देखा है।
भारत में जंगल में बढ़ती आग की घटनाएं अधिकारियों और नागरिकों के लिए चिंता का एक प्रमुख कारण हैं, विशेष रूप से जंगल न केवल राज्य के पर्यावरण को मेंटेन रखने में बल्कि आर्थिक रूप से मज़बूती प्रदान करने में और अन्य राज्यों के में पर्यावरण को बैलेंस रखने में बड़ा योगदान देते हैं। अगर सरकार ने जंगलों को बचाने में ध्यान नहीं दिया तो बड़े पैमाने पर नुकसान का सामना करना पड़ेगा।
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