भोपाल की भदभदा बस्ती में चारो ओर मलबे का ढेर लगा हुआ है। मलबे को हटाकर बनाई गई थोड़ी सी जगह पर साहिल खान अपने बच्चों के साथ बैठे हुए हैं। उनकी पत्नी रुखसार और अम्मी मलबे के बीच से गृहस्थी के सामान निकाल रही हैं। यह मलबे का ढेर कभी साहिल का घर हुआ करता था, मगर बुधवार 21 फ़रवरी को साहिल सहित भोपाल की भदभदा बस्ती के क़रीब 386 मकानों पर भोपाल नगर निगम (BMC) द्वारा बुलडोज़र चला दिया गया।
दरअसल नैशनल ग्रीन ट्राईब्यूनल (एनजीटी) ने कानून की छात्रा आर्या श्रीवास्तव की याचिका पर जिला प्रशासन और बीएमसी से भदभदा पुल के पास भोज वेटलैंड पर अतिक्रमण की पहचान करने को कहा था। बीएमसी ने 16 फ़रवरी 2022 को सुनवाई में अतिक्रमण करने वाले 227 स्ट्रक्चर्स की लिस्ट एनजीटी को सौंपी थी, जिन्हें हटाने का आदेश एनजीटी द्वारा जुलाई 2023 को दिया गया था। नगर निगम द्वारा की गई यह कार्रवाई नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) द्वारा दिए गए फैसले का पालन करते हुए ही की गई है।
यहाँ यह ध्यान रखना ज़रूरी है कि ट्रिब्यूनल के समक्ष प्रस्तुत इस मामले का दूसरा पक्ष झीलों में सीवेज और अन्य कारणों से होने वाला प्रदूषण भी है। ऐसे में केवल कब्ज़ा हटाने से जलाशयों का संरक्षण हो जाएगा यह कहना उचित नहीं है।
10 जून 2021 को हुई सुनवाई में ट्रिब्यूनल द्वारा 2 अलग-अलग कमिटियों के गठन का आदेश दिया गया था। पहली कमिटी को लेक का डीमार्केशन और कब्ज़ों की पहचान करना था और दूसरी कमिटी का उद्देश्य भोपाल के जलाशयों को प्रदूषित करने वाले स्त्रोत को चिन्हित करना था। साथ ही नगर निगम को सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट की कुल संख्या, शहर द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले पानी की मात्रा, कुल ट्रीटेड पानी की मात्रा सहित जलाशयों के संरक्षण से सम्बंधित कुल 8 बिन्दुओं पर रिपोर्ट तैयार करने का आदेश दिया गया था। लेकिन सीवेज को लेकर बीएमसी की भूमिका खुद संदेह में नज़र आ रही है।
भोपाल नगर निगम की खुद को क्लीनचिट
प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट में कहा गया कि भोपाल नगर निगम द्वारा शहर के नवाब सिद्धिकी हसन तालाब में अनट्रीटेट पानी छोड़ा जा रहा है। अतः निगम पर इस हेतु 155.55 लाख का पर्यावरणीय मुआवज़ा प्रस्तावित किया गया था। इस सन्दर्भ में प्रदेश के प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा बीएमसी को शोकॉज़ नोटिस भी दिया गया था। इस नोटिस का जवाब देते हुए निगम ने ट्रिब्यूनल द्वारा बनाई गई उपर्युक्त कमिटी (जिसमें बीएमसी कमिश्नर भी सदस्य थे) की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि उनके द्वारा तालाब में कोई भी अनट्रीटेड पानी नहीं छोड़ा जा रहा है।
एक अनुमान के अनुसार भोपाल के अपर लेक में 14 नालों से हर रोज़ 15 मिलियन लीटर सीवेज दाखिल होता है। यह ना सिर्फ इसे प्रदूषित करता है बल्कि यहाँ की बायोलॉजिकल डाइवर्सिटी को भी प्रभावित करता है। ऐसे में लेक के संरक्षण के लिए एक व्यवस्थित प्लान का बनना और उसका प्रभावी तरीके से लागू करना बहुत ज़रूरी है। भदभदा कॉलोनी की बस्ती के लोगों के पास अभी रहने और खाने से सम्बंधित कई परेशानियाँ हैं, ऐसे में ट्रिब्यूनल के आदेश पर दिखावे के लिए कार्यवाही करने के बजाय सरकार को एक रिहैबिलिटेशन प्लान बनाकर इनका पुनर्वास करना चाहिए।
भदभदा बस्ती के विस्थापितों के लिए इंतज़ाम
बुधवार से शनिवार तक चले अभियान में बीएमसी ने एक मस्जिद और मंदिर को छोड़कर सभी घर गिरा दिए. अपने घर के मलबे पर खड़े साहिल कहते हैं कि बीते शुक्रवार उन्हें अपने परिवार के साथ टूटे घर के मलबे के बीच ही रात गुज़ारनी पड़ी थी। स्थानीय प्रशासन द्वारा इन विस्थापित परिवारों के लिए भदभदा बस्ती से क़रीब 4.5 किमी दूर जवाहर चौक के पास बने पुनर्वास केंद्र पर इंतज़ाम किया गया था। मगर साहिल के अनुसार वहां हालात इतने ख़राब हैं कि ऐसी जगह पर छोटे बच्चों के साथ नहीं रहा जा सकता।
भदभदा बस्ती में बीते 45 साल से रह रहे असलम के दादा भी यहीं रहे थे। मगर अब नगर निगम द्वारा सहायता के लिए दी गई ट्राली वाहनों में वह अपने घर का सामान भर रहे हैं। हमने उनसे पूछा कि वह अब कहाँ रहेंगे? इस पर बेहद गुस्से में वो जवाब देते हैं,
“अब फुटपाथ में रहेंगे और कहाँ रहेंगे?”
वहीं टीटी नगर के सब-डिविज़नल मजिस्ट्रेट (SDM) मुनव्वर खान कहते हैं,
“स्थानीय लोगों को पुनर्वास के लिए 3 विकल्प दिए गए हैं। ज़्यादातर लोगों को 1 लाख रूपए की सहायता राशि दी गई है। इसके अलावा चाँदपुर में प्लॉट देने का विकल्प है और शेष लोगों को पीएम आवास के तहत मालीखेड़ी और कल खेड़ा में आवास दिया जाएगा।”
भदभदा बस्ती: पुनर्वास की वर्तमान स्थिति
यहाँ 386 मकानों को गिराया गया है, मगर स्थानीय एसडीएम के अनुसार बताई गई जगह पर कुल 146 पीएम आवास ही तैयार अवस्था मे हैं। जबकि बीते रविवार को यहाँ के 214 परिवारों द्वारा पीएम आवास के लिए आवेदन फॉर्म लिए गए हैं। हालाँकि इनमें से कितने परिवार द्वारा यह फॉर्म जमा किए गए हैं इसका कोई आँकड़ा यह रिपोर्ट लिखे जाने तक नहीं आया है।
प्रशासन द्वारा तत्काल राहत के लिए कॉलोनी के लोगों को एक लाख रूपए के चेक दिए गए हैं। मगर स्थानीय लोग बताते हैं कि प्रशासन द्वारा उन्हें जो चेक दिए गए हैं उनमें स्पेलिंग सम्बन्धी कुछ गलतियाँ हैं जिसके चलते वह चेक बैंक से लौटा दिए जा रहे हैं। इस पर एसडीएम खान कहते हैं,
“आज (शनिवार) 55 नए चेक बनाकर दिए गए हैं। जिन चेक्स में ग़लती है उन्हें अगले वर्किंग डेज़ में सुधार कर दिए जाएंगे। ”
हालाँकि आमना (40) कहती हैं कि उनके ज़रूरी दस्तावेज़ मलबे में दब गए हैं। ऐसे में चेक सुधरवाने के लिए ज़रूरी दस्तावेज़ प्रस्तुत करने में उन्हें दिक्कत आ रही है। वहीँ यहाँ मौजूद काफी लोग एक लाख की राशि को ना काफी बताते हैं। वहीँ कॉलोनी से करीब 18 किलोमीटर दूर स्थित चाँदपुर में प्लाट देने की बात पर फ़रहान (35) कहते हैं,
“हम मज़दूरी करते हैं अगर वहां प्लाट ले भी लिया तो बनवाएँगे कैसे? ऊपर से वहां से मज़दूरी के लिए शहर आने में ही हमारी बचत चुक जाएगी”
'क्या झुग्गियां हटाना ही संरक्षण है?'
साल 2022 में स्थानीय सामाजिक कार्यकर्त्ता राशिद नूर द्वारा एक अन्य याचिका लगाई गई। इस याचिका में भोपाल नगर निगम द्वारा वेटलैंड (कंज़र्वेशन एंड मैनेजमेंट) रुल 2017 के उल्लंघन की बात कही गई थी। याचिकाकर्ता राशिद नूर कहते हैं,
“जब एनजीटी दवाब डालता है तब प्रशासन झुग्गियों को तोड़कर खानापूर्ति कर देता है। केवल ग़रीबों की झुग्गियाँ हटाना ही संरक्षण नहीं है।”
उनका मानना है कि सरकार को संरक्षण के लिए प्लान तैयार करते हुए यह बताना चाहिए कि झुग्गी में रहने वाले लोगों के लिए क्या व्यवस्था की जाएगी. वह हाल ही में कलियासोत नदी के कैचमेंट एरिया में हुए अवैध निर्माण के सन्दर्भ में दिए गए एनजीटी के फैसले का सन्दर्भ देते हुए कहते हैं,
“जो बड़े लोग कब्ज़ा करके बैठे हैं उन्हें हटाने की हिम्मत सरकार नहीं दिखाती है। केवल झुग्गियाँ ही निशाना बनती हैं।”
रशीद नूर की बातों से सहमत, नेशनल सेंटर फॉर ह्यूमन सेटलमेंट एंड एनवायरनमेंट (NCHSE) के डायरेक्टर जनरल डॉ. प्रदीप नंदी कहते हैं,
“झुग्गियों में लोग आकर बसते हैं फिर बाद में उनको पट्टा दिया जाता है। मगर बड़ी-बड़ी बिल्डिंग को बनाने के से पहले बीएमसी और कंट्री टाउनप्लानिंग की मंज़ूरी लगती है। तब सवाल अधिकारियों से होना चाहिए कि उन्होंने कैचमेंट एरिया में निर्माण की अनुमति कैसे दी?”
गौरतलब है कि जुलाई 2023 को ट्रिब्यूनल द्वारा बीएमसी पर भोज वेटलैंड पर फ्लोटिंग रेस्टोरेंट बनाने की अनुमति देने के लिए 1 करोड़ का जुर्माना लगाया गया था. केस के अनुसार भोज वेटलैंड के कैचमेंट एरिया में 22 कंक्रीट पिलर्स का निर्माण फ्लोटिंग रेस्टोरेंट के लिए किया गया था.
झीलों के संरक्षण का हाल
मध्यप्रदेश सरकार द्वारा झीलों के संरक्षण के लिए साल 1989 में ‘सरोवर हमारी धरोहर’ के माध्यम से झीलों से खरपतवार हटाने से शुरूआत की गई थी। झीलों के संरक्षण और व्यवस्था के लिए मध्यप्रदेश सरकार ने एक इंटिग्रेटेड प्लान भी बनाया था। साल 1989 से 1992 तक सरकार ने अनुदान के रूप में (grants in aid) इसमें 16.5 मिलियन रूपए भी खर्च किए। बाद में एक्सटर्नल फंडिंग के रूप में जापान बैंक फॉर इंटरनेशनल कॉर्पोरेशन (JBIC) द्वारा 7.055 बिलियन येन का सॉफ्ट लोन भी लिया गया।
मगर स्टेट वेटलैंड से जुड़े हुए एक पूर्व सदस्य इस प्रोजेक्ट को याद करते हुए कहते हैं कि प्रशासन द्वारा संरक्षण के नाम पर केवल ‘आईवाश’ किया गया था। वह कहते हैं,
“इस प्रोजेक्ट में डी-सिल्टिंग, डी-वीडिंग, सीवेज मैनेजमेंट, डिमार्केशन और कैचमेंट एरिया प्रोटेक्शन जैसी चीजें शामिल थीं। मगर इनमें से कुछ भी अच्छे से नहीं किया गया। साथ ही इनका पोस्ट-प्रोजेक्ट मैनेजमेंट ख़राब था जिसके चलते आज भी यह समस्या बनी हुई है।”
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