बिजली उपलब्ध न होने की स्थिति में आप सभी ने अपने मोबाईल फोन या इलेक्ट्रिक उपकरणों को चार्ज करने के लिए पावर बैंक का इस्तेमाल किया होगा। ऐसे ही पावर बैंक्स अब आपके घरों तक निर्बाध बिजली पहुंचाने के लिए भारत सरकार देशभर में बनवा रही है। ये पावर बैंक्स आपके घरों तक बिजली पहुंचाने वाली पावर ग्रिड से जुड़े होते हैं, जिन्हें बैटरी एनर्जी स्टोरेज सिस्टम (BESS) कहा जाता है। इस तरह के बैटरी एनर्जी स्टोरेज सिस्टम के निर्माण में तेज़ी लाने के लिए भारत सरकार ने 6 सितंबर 2023 को वायेबिलिटी गैप फंडिंग योजना की शुरुवात की है।
वायेबिलिटी गैप फंडिंग सरकार द्वारा दी जाने वाली एक वित्तीय सहायता है जो ऐसे इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट को दी जाती है जो अर्थव्यवस्था के लिहाज़ से ज़रुरी होते हैं, लेकिन मौजूदा समय में जिनमें कई वित्तीय जोखिम शामिल होते हैं।
स्वच्छ और नवीकरणीय ऊर्जा की तरफ तेज़ी से बढ़ रहे भारत के लिए यह बेहद महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। इस पर हम विस्तार से बात करें उससे पहले यह समझना बेहद ज़रुरी है कि आखिर हमें बैटरी आधारित एनर्जी स्टोरेज सिस्टम की ज़रुरत क्यों पड़ रही है?
बैटरी एनर्जी स्टोरेज सिस्टम की ज़रुरत क्यों?
भारत आज भी अपनी 56.8 फीसदी बिजली आपूर्ती जीवाश्म ईंधन जैसे कोल (49.1%) , लिग्नाईट (1.6%) , गैस (6.0%) और डीज़ल (0.1%) से पूरी करता है। ये स्त्रोत 75 फीसदी वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन और 90 फीसदी कार्बन डाइऑक्साईड उत्सर्जन के लिए ज़िम्मेदार हैं, जो जलवायु परिवर्तन का कारक है। इसीलिए अब हम जीवाश्म ईंधन से बनी बिजली को छोड़कर सौर एवं पवन जैसे नवीकरणीय ऊर्जा स्त्रोतों का विस्तार कर रहे हैं जिनसे पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचता।
14th नैशनल इलेक्ट्रिसिटी प्लान के मुताबिक भारत ने वर्ष 2030 तक 450 GW बिजली गैर जीवाश्म आधारित ऊर्जा स्त्रोतों से प्राप्त करने का लक्ष्य निर्धारित किया है, यानी हम अपनी 50 फीसदी ऊर्जा मांग सोलर और विंड जैसे नवीकरणीय ऊर्जा स्त्रोतों से हासिल करेंगे।
नवीकरणीय ऊर्जा स्त्रोत जैसे सोलर और विंड से प्राप्त बिजली परिवर्तनशील और आंतरायिक होती है, यानी यह हर समय एक समान नहीं होती। सूरज का ताप सोलर, और हवा की गति विंड एनर्जी के बनने के क्रम को घटाते बढ़ाते रहते हैं। इनका यह परिवर्तनशील व्यवहार पावर ग्रिड की स्थिरता के लिए चुनौती पैदा करता है।
सेंट्रल इलेक्ट्रिसिटी अथॉरिटी ऑफ इंडिया के पूर्व सदस्य डॉ सौमित दासगुप्ता के अनुसार
“पावर ग्रिड की स्थिरता ऊर्जा उत्पादन और उपभोग के संतुलन पर निर्भर करती है। यदि अपर्याप्त मांग के साथ उत्पन्न ऊर्जा की अधिकता है, तो ऊर्जा वृद्धि के कारण बुनियादी ढांचे को नुकसान होने का संभावित खतरा रहता है। इसके विपरीत, यदि उत्पन्न ऊर्जा की अपर्याप्त आपूर्ति होती है, तो ब्लैकआउट का खतरा होता है।”
नवीकरणीय ऊर्जा स्त्रोत जैसे सौर और पवन ऊर्जा का आंतरायिक व्यवहार उत्पादन और मांग के बीच अंतर पैदा करता है, जिससे ग्रिड में अस्थिरता (आवृत्ति और वोल्टेज में उतार-चढ़ाव) देखने को मिलती है। इस अंतर को लोड शेडिंग जैसे उपायों, वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों के उपयोग को बढ़ाकर या स्टोरेज का इस्तेमाल कर पाटा जा सकता है। सौमित कहते हैं,
“भारत अभी कोल थर्मल पावर प्लांट को रैंप-अप कर ग्रिड को स्थिर कर सकता है, लेकिन नवीकरणीय ऊर्जा को हम अपना ही इसलिए रहे हैं ताकि कार्बन उत्सर्जन घटा सकें, ऐसे में स्टोरेज प्रणाली महत्वपूर्ण हो जाती है।”
सरल भाषा में इस सवाल का जवाब एक सवाल से भी दिया जा सकता है, सौर ऊर्जा से केवल दिन में ही बिजली बनती है, इसे रात में इस्तेमाल करने के लिए आप क्या करेंगे?
दिल्ली के रोहिणी की 10 मेगावॉट बैटरी स्टोरेज प्रणाली
दिल्ली के घनी आबादी वाले रोहिणी में बना बैटरी एनर्जी स्टोरेज सिस्टम 10MW/ 10 Mwh तक ऊर्जा भंडारण कर सकता है। यह देश में स्थापित पहली ग्रिड स्केल लिथियम आयन बैटरी एनर्जी स्टोरेज प्रणाली है। इसे टाटा पावर ने एईएस और मितसुबिशी कॉर्पोरेशन के साथ मिलकर स्थापित किया है।
यह सब स्टेशन दिल्ली में मौजूद टाटा पावर दिल्ली डिस्ट्रिब्यूशन लिमिटेड के 20 लाख उपभोक्ताओं को निर्बाध बिजली पहुंचाने में मदद करता है। यह बैटरी-आधारित ऊर्जा भंडारण प्रणाली बिजली को संग्रहित कर मिलीसेकंड के भीतर वितरित करने में मदद करती है, जिससे विद्युत ग्रिड की अस्थिरता कम हो जाती है।
इसकी मदद से अधिक ऊर्जा का संग्रहण करना संभव है और ज़रुरत पड़ने पर आपूर्ती करना आसान। यह नेटवर्क ऑपरेटरों को क्षेत्र की ट्रांसमिशन प्रणाली पर दबाव कम करने और उपभोक्ताओं के लिए किफायती एवं गुणवत्तापूर्ण ऊर्जा आपूर्ती में सहायक है।
टाटा पावर डीडीएल के मुताबिक
“बैटरी आधारित एनर्जी स्टोरेज प्रणाली पीक लोड मैनेजमेंट में बहुत सहायक है। दिल्ली में शाम को जब लोग काम से घर लौटते हैं तो बिजली की खपत ज्यादा होती है। बीईएसएस कम मांग की अवधि में अतिरिक्त ऊर्जा का भंडारण करता है और उच्च मांग की अवधि के दौरान इसे ग्रिड में छोड़ा जा सकता है।”
सोलर एनर्जी कॉर्पोरेशन में एडिशनल जनरल मैनेजर रहे डॉ, भारत रेड्डी के मुताबिक
“बैटरी आधारित ऊर्जा भंडारण प्रणाली ग्रिड को स्थिर करने के साथ-साथ नवीकरणीय ऊर्जा के करटेलमेंट को घटा सकती है, इसके कुशल उपयोग में मदद कर सकती है, लंबे ट्रांस्मिशन नेटवर्क पर खर्च को 70 फीसदी घटा सकती है और भारत के ऐसे ग्रामीण इलाके जहां ट्रांस्मिशन लाईन बिछाना चुनौतीपूर्ण हैं वहां दिन और रात की बिजली की मांग नवीकरणीय स्त्रोत से पूरा कर सकती है।”
मौजूदा क्षमता और विस्तार
सेट्रल इलेक्ट्रिसिटी अथॉरिटी ऑफ इंडिया के नैशनल इलेक्ट्रिसिटी प्लान 2023 के मुताबिक वर्ष 2032 तक भारत को 74 GW/ 411 GWh की ग्रिड स्केल एनर्जी स्टोरेज कैपेसिटी की ज़रुरत होगी। इसमें 47.24 GW बैटरी आधारित स्टोरेज और 26.69 GW पंप्ड हायड्रो स्टोरेज से हासिल करने की उम्मीद है।
अगर हम वर्ष 2021 तक भारत में इंस्टॉल्ड बैटरी स्टोरेज पर नज़र डालें तो यह 1.04 GW के करीब है, वर्ष 2030 तक इसके 26.54 GW पर पहुंचने की संभावना है, यानी हम 47.24 गीगावॉट के लक्ष्य से बेहद पीछे हैं।
इसी अंतर को पाटने और बैटरी आधारित स्टोरेज परियोजनाओं के निर्माण में तेज़ी लाने के लिए भारत सरकार ने वायेबिलिटी गैप फंडिंग योजना को मंजूरी दी है।
क्या है वायेबिलिटी गैप फंडिंग योजना?
वायेबिलिटी गैप फंडिंग एक वित्तीय तंत्र है जिसका उपयोग सरकारें बुनियादी ढांचागत परियोजनाओं की लागत और उनकी आर्थिक व्यवहार्यता के बीच अंतर को पाटने के लिए करती हैं।
इसे आम तौर पर उन परियोजनाओं में नियोजित किया जाता है जो देश के विकास के लिए ज़रुरी होती है, लेकिन जिन्हें विभिन्न कारणों से निजी निवेशकों के लिए आर्थिक रूप से अव्यवहार्य या वित्तीय रूप से अनाकर्षक माना जाता है, जैसे उच्च पूंजी लागत, कम राजस्व क्षमता, या लंबी निर्माण अवधि।
बैटरी एनर्जी स्टोरेज सिस्टम के निर्माण के लिए वायेबिलिटी गैप फंडिंग योजना को मंज़ूरी देकर सरकार निवेशकों के लिए बैटरी भंडारण प्रणालियों की लागत को कम करने, उन्हें अधिक आर्थिक रूप से व्यवहार्य बनाने के साथ-साथ नागरिकों के लिए स्वच्छ, विश्वसनीय और सस्ती बिजली सुनिश्चित करना चाहती है।
भारत इस योजना के तहत अनुदान और सब्सिडी प्रदान करके वर्ष 2030-31 तक 4,000 मेगावाट की बैटरी एनर्जी स्टोरेज परियोजनाएं स्थापित करना चाहता है। यूनियन कैबिनेट ने इसके लिए 3,760 करोड़ रुपए के बजट को मंज़ूरी दी है।
सरकार इस परियाजोना से जुड़े वित्तीय जोखिमों को कवर करने के लिए व्यवहार्यता अंतर वित्तपोषण प्रोत्साहन प्रदान करने का इरादा रखती है। ये प्रोत्साहन तीन साल की अवधि में वितरित अनुदान के रूप में होंगे। इन अनुबंधों का वितरण वित्तीय वर्ष 2030-31 तक पांच किस्तों में होगा, और प्राप्तकर्ताओं का चयन प्रतिस्पर्धी प्रक्रिया पर आधारित होगा, जिसमें सबसे कम बोली को प्राथमिकता दी जाएगी।
ऊर्जा मंत्रालय, भारत सरकार से आरटीआई के ज़रिए मिली जानकारी के मुताबिक योजना के परिचालन दिशानिर्देशों को अभी अंतिम रुप नहीं दिया गया है। इन्हें जल्द जारी किया जाएगा।
बैटरी एनर्जी स्टोरेज से जुड़े वित्तीय जोखिम
बैटरी एनर्जी स्टोरेज प्रणाली स्थापित करने में आने वाली लागत को दिल्ली के रोहिणी बैटरी एनर्जी स्टोरेज युनिट के उदाहरण से समझा जा सकता है। यह परियोजना 2018 में 6.5 मिलियन अमरीकी डालर (करों के बिना) में स्थापित की गई है। इसमें कुल लागत का 30 फीसदी हिस्सा बैटरी और बाकी का हिस्सा पावर-कंडीशनिंग इकाइयां, ईएमएस, आइसोलेशन ट्रांसफार्मर, परियोजना की नींव, निर्माण, इनवर्टर और संचार उपकरणों पर खर्च हुआ है।
इंस्टीट्यूट फॉर एनर्जी इकोनॉमिक्स एंड फाईनेंशियल एनलिसिस (IEEFA) से जुड़े ऊर्जा विशेषज्ञ चरिथ कौंडा कहते हैं
“इस क्षेत्र से जुड़े ऐतिहासिक आंकड़े न होना, बैटरी के जीवनकाल, वारंटी, गारंटी, फायर सेफ्टी, रीसाईकलिंग आदि पर अनुभव की कमी, अधिक अग्रिम पूंजी लागत और रॉ मटीरियल कॉस्ट के साथ लंबा निवेश रिटर्न इसे निवेशकों के लिए जोखिमपूर्ण बनाता है।”
हालांकि रोहिणी बैटरी स्टोरेज प्रणाली में प्रौद्योगिकी प्रदाता फ्लुएंस एनर्जी के मुताबिक
“संपूर्ण सिस्टम दृष्टिकोण, लंबी अवधी के सर्विस एग्रीमेंट के साथ एक अनुभवी प्रौद्योगिकी प्रदाता के साथ काम करने से तकनीकि जटिलताएं कम हो जाती है”
वहीं वायेबिलिटी गैप फंडिंग का उद्देश्य अग्रिम पूंजी निवेश और उच्च लागत में डेवलपर्स की सहायता करना है, ऐसे में कहा जा सकता है कि बैटरी एनर्जी स्टोरेज सिस्टम स्थापित करने की राह भारत में आसान हो सकती है। इस पर चरिथ कौंडा कहते हैं
“अभी यह देखना बाकी है कि वीजीएफ परियोजनाओं के लिए निविदाओं की संरचना कैसे की जाएगी। सरकार और उद्योग के अनुमानों से संकेत मिलता है कि वीजीएफ बीईएसएस परियोजनाओं के भंडारण की स्तरीकृत लागत को 10-11/kWh से घटाकर 5.50-6.60/kWh या ~40% कम करने में मदद कर सकता है। जैसे-जैसे लागत कम होगी वित्तीय जोखिम भी कम होगा।”
एंबर इंडिया के इलेक्ट्रिसिटी पॉलिसी एनलिस्ट नेश्विन रोड्रिगेज़ कहते है कि
"भारत को वित्तीय और निवेश जोखिम होने के बावजूद नवीकरणीय ऊर्जा, भंडारण और संचरण परियोजनाओं का वित्तपोषण करते रहना होगा। यह भारत द्वारा नैशनल इलेक्ट्रिसिटी प्लान 14 में तय किये गए लक्ष्यों को प्राप्त करने में मददगार होगा। साथ ही यह नई कोयला क्षमता के निर्माण से बचने के लिए भी ज़रुरी है।"
सार्वजनिक धन का उपयोग निजी कंपनियों के वित्त पोषण में करना कितना सही?
द ग्लोबल एनर्जी अलायंस फॉर पीपल एंड प्लैनेट (जीईएपीपी) के निदेशक, सॉल्यूशन डिप्लॉयमेंट डायरेक्टर, उमंग माहेश्वरी का मानना है कि देश में बैटरी स्टोरेज समाधान शुरू करने के लिए वायेबिलिटी गैप फंडिंग बहुत अच्छी है। वह कहते हैं, कि
"सरकार को एनर्जी ट्रांसिशन के लिए ऐसे भंडारण समाधानों को बढ़ाने के लिए निजी कंपनियों के साथ राजस्व-साझाकरण मॉडल, निजी निवेश को प्रोत्साहित करने आदि जैसे अन्य समाधान खोजने की जरूरत है।"
यह उल्लेख करना महत्वपूर्ण है कि सार्वजनिक धन का उपयोग निजी कंपनियों के माध्यम से भारत के एनर्जी ट्रांसिशन को आगे बढ़ाने के लिए किया जा रहा है। ऐतिहासिक रूप से, ऐसी व्यवस्थाओं ने भारत में विभिन्न स्तरों तक पहुँचने वाली बिजली की गुणवत्ता में अंतर पैदा किया है।
अपर्याप्त बुनियादी ढांचे, परिवर्तनीय वोल्टेज और बिजली कटौती का ग्रामीण भारत में बिजली की गुणवत्ता पर प्रभाव पड़ा। हाल ही में, सरकारी योजनाओं ने हर घर तक पहुंचने के लिए ट्रांसमिशन बुनियादी ढांचे का निर्माण किया है। इसके बावजूद, सभी के लिए 24X7 बिजली अभी भी एक दूर की वास्तविकता है, हालांकि, आपूर्ति में सुधार हुआ है।
इधर, उमंग का मानना है कि बिजली की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए हमें प्रभावी नियम बनाने की जरूरत है। निजी कंपनियाँ ग्रामीण या उप-शहरी क्षेत्रों में बिजली उपलब्ध कराने में बहुत महत्वपूर्ण हैं। उमंग कहते हैं,
"हम निजी कंपनियों को खलनायक के रूप में चित्रित नहीं कर सकते… वे मुनाफा कमाना चाहेंगे… यह एक पूंजीवादी व्यवस्था है।"
वर्तमान में, नवीकरणीय स्रोतों के माध्यम से बिजली का उत्पादन आर्थिक रूप से प्रतिस्पर्धी है। इस परिवर्तन के माध्यम से प्रत्येक नागरिक को उपलब्ध कराई जाने वाली बिजली की गुणवत्ता एक समान होनी चाहिए। हम आशा कर सकते हैं कि पहले की गई गलतियों को दोहराया नहीं जाएगा और नियमों को उसी प्रभाव से लागू किया जाएगा।
भारत को बैटरी आधारित ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने की कोशिश
पिछले कुछ वर्षों में लिथियम आयन बैटरीज़ के मार्केट में हुए भारी निवेश और टेक्नीकल एडवांसमेंट ने इसे दूसरे स्टोरेज विकल्पों की तुलना में अधिक कुशल और सस्ता बनाया है। लेकिन भारत अभी भी लिथियम आयन बैटरी के लिए दूसरे देशों पर निर्भर है। अप्रैल 2022 से जनवरी 2023 के बीच भारत ने 18,763 करोड़ रुपये मूल्य के लिथियम और लिथियम-आयन का आयात किया है।
इस क्षेत्र में निवेश को बढ़ावा देकर सरकार की लिथियम बैटरी मैन्यूफैक्चरिंग में भारत को मज़बूती देने की भी मंशा नज़र आती है। साथ ही जम्मू कश्मीर के रियासी और अन्य जगहों पर मिले लिथियम के भंडार भविष्य में भारत को इस क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने में सहायक हो सकते हैं।
मोरडोर इंटेलिजेंस इंडस्ट्री की रिपोर्ट 2022 के मुताबिक अगले 5 वर्षों में भारत का बैटरी एनर्जी स्टोरेज बाज़ार 5.27 बिलियन अमेरिकी डॉलर का हो सकता है। यह बताता है कि भारत में इस क्षेत्र में निवेश की असीम संभावनाएं मौजूद हैं।
लिथियम बैटरी का अलावा भी हैं ऊर्जा भंडारण विकल्प
सेंट्रल इलेक्ट्रिसिटी अथॉरिटी के नैशनल इलेक्ट्रिसिटी प्लान में एनर्जी स्टोरेज के लिए लिथियम आयन बैटरी और पंप्ड हायड्रो स्टोरेज को ही वरीयता दी गई है। लेकिन इन दोनों ही तकनीकों के अपने पर्यावरणीय जोखिम हैं। पंप्ड हायड्रो स्टोरेज के साथ लंबी निर्माण अवधि, आवश्यक स्थलाकृति के साथ उपयुक्त साइटों की कमी, विस्थापन और पारिस्थितिक क्षति जैसी पर्यावरणीय चिंताएं जुड़ी हैं। वहीं लिथियम को दूसरा कोल कहकर संबोधित किया जा रहा है क्योंकि इसके खनन के साथ वायु और जल प्रदूषण, भूमि क्षरण, और भूजल प्रदूषण जैसी समस्याएं जुड़ी हुई हैं।
भारत समेत पूरी दुनिया में ऊर्जा भंडारण के क्षेत्र में नवाचार हो रहे हैं, लिथिमय के अलावा भी ऐसे कई विकल्प मौजूद हैं जो पर्यावरण को नुकसान पहुंचाए बिना ऊर्जा संग्रहित कर सकते हैं।
सोडियम आयन बैटरी एक ऐसा ही विकल्प है जो लिथियम की तुलना में अधिक सस्ता, सुरक्षित और ईको फ्रेंडली माना जा रहा है। भारत में चेन्नई स्थित AATRAL ESP सोडियम आयन बैटरीज़ का निर्माण कर रहा है। AATRAL की सीईओ सुभद्रा राजेंद्रन के मुताबिक
“सोडियम को सॉल्ट बैटरी भी कहा जाता है, क्योंकि यह हमारे आसपास प्रचुर मात्रा में उपलब्ध नमक से बनाई जाती हैं, इसका रॉ मटीरियल पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचाता और यह लिथियम की तुलना में सस्ती होने के साथ-साथ फायर सेफ भी होती है”
सोडियम बैटरी की एक कमी है कि लिथियम की तुलना में इनका आकार बड़ा होता है, इसीलिए ग्रिड स्केल बैटरी स्टोरेज में इनका उपयोग किया जा सकता है, जहां हमारे पास बड़ी बैटरीज़ लगाने की जगह होती है। सुभद्रा कहती हैं कि उन्हें सरकार की तऱफ से अभी तक रीसर्च, डेवलपमेंट और वित्तीय तौर पर कोई मदद नहीं मिली है। वो चाहती हैं कि सरकार सोडियम आयन बैटरीज़ की तरफ भी ध्यान दे क्योंकि जब इस क्षेत्र में निवेश बढ़ेगा तो इस तकनीक को विकसित होने में मदद मिलेगी। सुभद्रा कहती हैं
“अगर हम सच में पर्यावरण को बचाना चाहते हैं तो हम लिथिमय के रीसाईकलिंग और माईनिंग जैसे पर्यावरणीय जोखिमों को नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते।”
This article is published as a part of the Smitu Kothari Fellowship 2023 of the Centre for Financial Accountability, Delhi.