बीते बुधवार यानि 22 नवम्बर को दिल्ली का एयर क्वालिटी इंडेक्स 395 था. इंडेक्स के अनुसार यह बेहद प्रदूषित (Very Poor) वातावरण है. वहीं मध्य प्रदेश के भोपाल की बात करने तो यह आँकड़ा 291 था. यानि इंडेक्स के अनुसार इस शहर का वातावरण पुअर (poor) श्रेणी का था. भोपाल में लगातार वातावरण में बढ़ते प्रदूषण के बाद ट्रैफिक पुलिस तैनात कर दी गई हैं. पुलिस द्वारा लोगों के हेलमेट तो चेक किए ही जा रहे हैं साथ ही प्रदूषण न करने के मानकों पर यहाँ के नागरिकों की गाड़ियाँ कितनी खरी उतरती हैं यह भी जांचा जा रहा है. ऐसे में यह सवाल मन में आता है कि यह वाहन पर्यावरण और हमें किस तरह से प्रभावित कर रहे हैं.
वाहनों का पर्यावरण पर असर
बीते दिनों वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (CQAM) ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल को बताया कि दिल्ली-एनसीआर में होने वाले प्रदूषण में पराली के अलावा वाहनों का भी अहम योगदान है. एक अनुमान के मुताबिक भारत में वाहनों की संख्या 5 प्रतिशत की डर से बढ़ रही है. साल 2014 के एक आँकड़े के अनुसार भारत में हर साल 7 से 8 मिलियन वाहन बनाए जा रहे हैं. इनमें से 72 प्रतिशत दो-पहियाँ वाहन हैं. वाहनों के ईधन के जलने से कार्बन मोनोऑक्साइड, नाइट्रस ऑक्साइड फ़ोटोकेमिकल ऑक्सिडेंट और एल्डीहाइट्स (journal of Advanced Laboratory Research in Biology, Volume 5, Issue 3, July 2014) जैसे कैमिकल पदार्थ गैस के रूप में निकलते हैं. यह गैसें ग्रीन हाउस गैसें हैं. आंकड़ों के अनुसार भारत में परिवहन क्षेत्र से 60 प्रतिशत ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन होता है. जिसमें 261 टन (सालाना) कार्बन डाई ऑक्साइड शामिल है. यह गैसें सीधे तौर पर वातावरण को गर्म करती हैं जिससे ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ावा मिलता है.
वाहनों का मानव पर असर
प्रदूषित होती हवा से मानव जीवन संकट में पड़ सकता है. लांसेट प्लेनेटरी हेल्थ जर्नल के मुताबिक वाहनों के कारण प्रदूषित होने वाली हवा से साल 2000 के बाद हर साल मौत का आँकड़ा 55 प्रतिशत तक बढ़ जा रहा है. वाहनों से निकलने वाली सल्फर डाई ऑक्साइड और कार्बन मोनो ऑक्साइड का सीधा असर श्वसन और हृदय पर (Journal of Advanced Laboratory Research in Biology, Volume 5, Issue 3, July 2014) पड़ता है. यह तत्व कैंसर कारक होते हैं. केवल कार्बन मोनो ऑक्साइड की ही बात करें तो इसके कारण रक्त द्वारा टिशु में जाने वाली ऑक्सिजन बाधित होती है जिससे साँस लेने में तकलीफ और बाद में हार्ट अटैक की सम्भावना भी निर्मित होती है. वहीँ वाहनों के धुंए में मौजूद लेड के कारण ऑर्गन फेलियर की समस्या हो सकती है.
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