वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने गुरुवार 1 फ़रवरी को अंतरिम बजट पेश करते हुए बताया कि प्रधानमंत्री फ़सल बीमा योजना के तहत 4 करोड़ किसानों को लाभ दिया गया है. यह योजना किसानों को प्राकृतिक आपदाओं के ज़रिए फ़सल तबाह होने या फिर बीज के फेल होने की दशा में हुए घाटे की भरपाई के लिए बनाई गई है. वित्त मंत्री ने इस आँकड़े को सदन में सरकार की कृषि के क्षेत्र में हासिल की गई उपलब्धि के रूप में रखा. वित्त मंत्री के अनुसार,
"किसान का कल्याण हमारी सरकार की सबसे पहली प्राथमिकता है."
मगर सरकार कृषि को लेकर इतनी संजीदा है कि इसने ने बजट में कृषि मंत्रालय को मात्र 1.27 लाख करोड़ का बजट प्रदान किया है. अगर बीते साल के बजट में कृषि मंत्रालय के लिए आवंटित राशि को बस देखें तो यह राशि साल 2023 के बजट से ज़्यादा है. मगर इस बजट में बाकी मंत्रालयों को आवंटित राशि का आकलन करने पर मालुम होता है कि यह राशि सभी मंत्रालयों में सबसे कम है. हालाँकि किसानों पर बजट से पड़ने वाले असर को समझने के लिए कृषि मंत्रालय के साथ ही खाद एवं रासायन मंत्रालय पर भी ध्यान देना होगा. खाद एवं रसायन मंत्रालय के लिए इस साल 168379.81 करोड़ रूपए आवंटित किए गए हैं.
लगातार कम होता Agriculture Budget
भारत के कुल कृषि क्षेत्र का 60 प्रतिशत भाग पूरी तरह से बारिश पर निर्भर है. साथ ही यह हिस्सा जैविक और अजैविक तनावों से भी जूझता है. ऐसे में जलवायु परिवर्तन के दौर में कृषि क्षेत्र सबसे ज़्यादा प्रभावित माना जाता है. मगर सरकार द्वारा इस क्षेत्र पर सबसे कम ध्यान दिया गया है. इस बात का सीधा सम्बन्ध वार्षिक बजट से है. बीते 5 सालों में कृषि मंत्रालय को आवंटित कुल राशि में भी उतार-चढ़ाव देखने को मिलता है. वित्त वर्ष 2020-21 में मंत्रालय के लिए 1.42 लाख करोड़ रूपए आवंटित किए गए थे. जो बीते 5 साल में सबसे ज़्यादा थे.
बीते तीन साल के आँकड़ें के अनुसार हर साल कृषि मंत्रालय को आवंटित बजट कुल बजट के हिसाब से कम हुआ है. वित्त वर्ष 2021-22 में कृषि के लिए आवंटित बजट (Agriculture Budget) कुल बजट का 3.78 प्रतिशत था. यह अगले साल घटकर 3.36 प्रतिशत हो गया. वित्त वर्ष 2023-24 में यह 2.78 प्रतिशत (1.25 लाख करोड़) ही रह गया.
बजट का कृषि पर असर
केन्द्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के अंतर्गत 2 विभाग आते हैं. पहला विभाग कृषि, सहकारिता और किसान कल्याण है जो योजनाओं के संचालन, किसान कल्याण के कार्यक्रम और ऑपरेशन से सम्बंधित चीजें देखता है. वहीँ दूसरा कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा विभाग कृषि से सम्बंधित शोध कार्य देखता है.
बजट का कृषि पर सीधे असर को ऐसे समझिए कि सरकार इस मद में जो बजट आवंटित करती है उसका एक हिस्सा कृषि संकटों से निपटने के लिए होने वाली रिसर्च और डेवलपमेंट (R&D) में खर्च करती है. सरकार ने इस साल के बजट में कृषि शोध के लिए 9 हज़ार 941.09 करोड़ रूपए आवंटित किए हैं. बीते बजट में कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा विभाग को 9 हज़ार 504 करोड़ रूपए आवंटित किए गए थे. अतः कृषि बजट में शोध के लिए इस साल कुछ बीते बजट की तुलना में सुधार देखने को मिलता है.
इस विषय पर ग्राउंड रिपोर्ट से बात करते हुए कृषि विशेषज्ञ डॉ प्रदीप नन्दी कहते हैं कि
"सरकार किसानों को कई तरह से फायदा देती है. पहला उन्हें डायरेक्ट मॉनेटरी बेनिफिट दिया जाता है. इसे ऐसे समझें कि सरकार ने बीते अंतरिम बजट (2019) में किसान सम्मान निधि स्कीम लॉन्च की थी. इसके तहत 2 हेक्टेयर से कम ज़मीन वाले किसानों के बैंक खाते में 6 हज़ार रूपए की रकम जमा की जाती है"
डॉ नन्दी बताते हैं कि "इसके अलावा फ़सल बीमा योजना के तहत दिया जाना वाला पैसा भी इसी बजट (Agriculture Budget) से दिया जाता है." वह फ़सल बीमा योजना का ज़िक्र करते हुए यह भी कहते हैं कि
"जब जलवायु परिवर्तन की वजह से हो रही चरम मौसम घटनाएं फसल बर्बाद करती हैं तो फसल बीमा आर्थिक नुकसान की भरपाई कर किसानों के लिए 'शील्ड' का काम करता है।"
नैनो यूरिया को बढ़ावा देगी सरकार
वित्त मंत्री के अनुसार सरकार नैनो डीएपी (Diammonium Phosphate) को आगामी दिनों में देश के सभी एग्रो क्लाइमेटिक ज़ोन तक विस्तारित करेगी. इसके पहले द हिन्दू को दिए एक साक्षात्कार में सरकार के मंत्री मनसुख मान्डवीय ने कहा कि सरकार साल 2025 तक यूरिया के आयात पर निर्भरता को ख़त्म करना चाहती है. सरकार इस मांग को नैनो यूरिया और अन्य वैकल्पिक साधनों के ज़रिए पूरा करने पर काम कर रही है. गौरतलब है कि सरकार ने जुलाई 2023 में किसानों के लिए 3 लाख 70 हज़ार करोड़ रूपए की योजनाओं के पैकेज का ऐलान किया था. इसमें से 3 लाख 68 हज़ार करोड़ रूपए अकेले यूरिया सब्सिडी के लिए आवंटित किए गए थे.
हालाँकि इफ्को (IFFCO) द्वारा लॉन्च किए गए नैनो लिक्विड यूरिया की वैज्ञानिक वैधता पर कई सवाल उठे हैं. पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों द्वारा साल 2020 से 2022 के बीच की गई रिसर्च के अनुसार नैनो यूरिया के चलते गेहूं की फ़सल 21.6 प्रतिशत और धान की फ़सल 13 प्रतिशत तक कम हुई है. हालाँकि डॉ नंदी के अनुसार सामान्य यूरिया से नैनो यूरिया अपेक्षाकृत अच्छा होता है.
Agriculture Budget: पोस्ट हार्वेस्टिंग में बढ़ेगा निजी दखल
बजट के अनुसार सरकार पोस्ट हार्वेस्ट एक्टिविटीज़ में निजी निवेश को बढ़ावा देगी. पोस्ट हार्वेस्ट एक्टिविटी से तात्पर्य फ़सल के कटने से लेकर हमारे खाने की प्लेट तक पहुँचने के बीच की प्रक्रिया है. इसमें सरकारी दखल बीते कुछ सालों में वैसे भी कम हुआ है. हमने सरकारी गोदामों में आनाजों को सड़ते हुए देखा है. ऐसे में उम्मीद की जाती है कि सरकार सरकारी गोदामों को और उन्नत करेगी. मगर इसके विपरीत इस क्षेत्र में सरकारी दखल कम होने और निजी निवेश बढ़ने से फ़ूड मार्किट पर निजी क्षेत्र का प्रभुत्त्व और बढ़ जाएगा.
संसद में दिए एक जवाब के अनुसार सरकार ने साल 2001 से 2021 के बीच कुल 40 हज़ार 985 गोदाम बनवाए हैं. इनकी कुल क्षमता 708.67 लाख मीट्रिक टन है. सरकार इस क्षमता को बढ़ावा देने के लिए 2 योजनाएँ संचालित कर रही है. पहली है प्राइवेट आन्त्रेप्रेन्योर गारंटी स्कीम (Private Entrepreneurs Guarantee scheme). इसमें भडारण क्षमता का विकास प्राइवेट पार्टी, सेन्ट्रल वेयरहाउसिंग कॉर्पोरेशन और स्टेट गवर्नमेंट एजेंसी द्वारा किया जाता है. इसके अलावा सेंट्रल सेक्टर स्कीम (Central Sector Scheme) के तहत केंद्र सरकार नॉर्थ ईस्ट के राज्यों में गोदाम बनवाने के लिए फ़ूड कॉर्पोरेशन ऑफ़ इंडिया और राज्य सरकारों को वित्तीय सहायता देती है.
यदि केवल भण्डारण हो ही उदहारण के तौर पर लें तो प्राइवेट सेक्टर के गोदामों के बढ़ने पर बाज़ार में किसी भी खाद्य पदार्थ जैसे टमाटर, प्याज़ से लेकर आनाज़ तक के दामों को तय करना प्राइवेट हाथों में चला जाएगा. डॉ. नंदी कहते हैं कि
"इससे प्राइवेट सेक्टर किसानों से कम दाम पर फ़सल ख़रीदकर उसका भण्डारण कर सकेगा और समय आने पर महंगे दाम में उसे बेंच सकेगा."
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