भोपाल की आदमपुर लैंडफिल साईट तीन दिनों से जल रही है, दम घोंट रहा धुंआ

भोपाल की आदमपुर छावनी लैंडफिल साईट पिछले तीन दिनों से जल रही है। कूड़े के पहाड़ पर लगी यह आग 7 एकड़ क्षेत्र में फैल चुकी है। 5 लाख टन कूड़ा आग में जल रहा है जिससे ज़हरीली गैस फैल रही है, चार किलोमीटर दूर से ही धुंआ देखा जा सकता है, आस पास के गांवों के लोगों ने आंखों में जलन, सांस लेने में तकलीफ की शिकायत की है। इस मामले में भोपाल मुनिसिपल कॉर्पोरेशन पर भ्रष्टाचार के आरोप भी लग रहे हैं। क्या है पूरा मामला समझते हैं…

भानपुर से आदमपुर पहुंचा भोपाल का कचरा लेकिन हालात वैसे के वैसे

पहले भोपाल के भानपुर इलाके में भोपाल शहर का कचरा इकट्ठा होता था। क्योंकि यह रिहाईशी ईलाका था और आसपास के लोगों के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ रहा था, एनजीटी ने इसे बंद करने का आदेश दिया था। इसके बाद शहर से 12 किलोमीटर दूर आदमपुर छावनी के पास कचरा इकट्ठा किया जाने लगा।

दो साल की देरी के बाद 11 दिसंबर 2019 को नई लैंडफिल साईट शुरु हुई। इसकी क्षमता 1200 टन वेस्ट को प्रोसेस कर डिस्पोज़ करने की है। इस काम का ठेका एक प्राईवेट फर्म मेसर्स ग्रीन रीसोर्सेस सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट कंपनी को दिया गया।

आदमपुर लैंडफिल साईट से लगातार आग लगने के मामले सामने आते रहे।

आसपास के गांव के लोग शहर के कचरे का निपटान आदमपुर छावनी में करने के खिलाफ रहे हैं। लेकिन उनकी आवाज़ों को दबा दिया गया ।

आदमपुर लैंडफिल साईट के करीबी गांवों में बढ़ रही बीमारियां

एक अध्ययन के मुताबिक आदमपुर छावनी के आसपास रह रहे लोगों में टायफॉयड, कोलेरा, डायरिया, मलेरिया, स्किन इंफेक्शन और चेस्ट संबंधी तकलीफे बढ़ी हैं। आदमपुर के लोगों पर पड़ रहा प्रभाव भानपुर लैंडफिल साईट से भी ज्यादा है।

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बरक्तुल्ला यूनीवर्सिटी के वहीद अहम हुर्रा और अभिलाषा भावसार ने आदमपुर छावनी और भानपुर लैंडफिल साईट के आसपास रह रहे लोगों के स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव पड़ इसका अध्ययन किया है, इसमें सामने आया कि भानपुर के मुकाबले आदमपुर के आसपास रह रहे लोगों के स्वास्थ्य पर ज्यादा असर पड़ा है।

आदमपुर छावनी के आसपास 58 फीसदी लोगों में टायफॉयड, 24 फीसदी लोगों में फेफड़े संबंधी बीमारियां, 34 फीसदी लोगों में डायरिया और कोलेरा, 22 फीसदी लोगों में मलेरिया और 16 फीसदी लोगों में स्किन इंफेक्शन जैसी बीमारियां हुई हैं।

वहीं भानपुर लैंडफिल साईट, जो अब बंद हो चुकी हैं वहां टायफॉयड के 58 फीसदी, चेस्ट संबंधी बीमारियों के 8 फीसदी, डायरिया और कोलेरा के 22 फीसदी, मलेरिया के 12 फीसदी और स्किन इंफेक्शन के 4 फीसदी मामले ही आए थे।

लैंडफिल साईट की वजह से भोपाल की लोकल पॉप्यूलेशन पर पढ़ने वाले असर का यह इंवायरमेंटल इंपैक्ट असेसमेंट पिछले साल जियोग्राफी, जियोलॉजी और इंवायरमेंट के अंतर्राष्ट्रीय जर्नल में छपा है।

अब बात करते हैं भ्रष्टाचार की

टाईम्स ऑफ इंडिया की खबर के मुताबिक भोपाल मुनिसिपल कॉर्पोरेशन ने मेसर्स ग्रीन फर्म को मई 2022 तक आदमपुर लैंडफिल साईट पर इकट्ठा हुए 5 लाख टन कचरे का वैज्ञानिक तरीके से निपटान करने के लिए 2.62 करोड़ रुपए का भुगतान किया था। बाद में इसकी समय सीमा बढ़ाकर सितंबर 2022 की गई, लेकिन यह डेडलाईन भी मिस हो गई।

एनजीटी ने इस मामले पर जांच शुरु कर दी है।

ऑडिट में जिस तरह से प्राईवेट फर्म को भुगतान किया गया उसपर सवाल उठे थे, बीएमसी का कहना है कि 400 मीटर तक लैंडफिल का कचरा प्रोसेस हो चुका है, जबकि लैंडफिल साईट को बिजली कनेक्शन ही अक्टूबर 2019 में मिला है और कचरे के निपटान के लिए मशीने ही नवंबर में आई हैं।

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दैनिक भास्कर की रिपोर्ट के मुताबिक मेसर्स ग्रीन पर आदमपुर लैंड फिल साईट पर सही से कचरे का निपटान न करने के लिए 25 लाख की पैनल्टी लगाई गई है। 14 मार्च को कंपनी को कारण बताओ नोटिस भी जारी किया गया।
इसका न तो मेसर्स ग्रीन ने अबतक जवाब दिया है न ही काम में कोई सुधार किया है।

50 दमकलें तीन अलग अलग शिफ्ट में आग बुझाने का काम कर रही हैं। आग को बुझाने में लगे दमकल कर्मियों का कहना है कि कचरे से गैस का रिसाव हो रहा है जो आग पकड़ रही है, पानी डालने पर दूसरी जगह से आग लगना शुरु हो जाती है।

आपको बता दें कि अगर समय पर यह आग नहीं बुझी तो 10-12 गांवों में लोगों की सेहत पर असर पड़ सकता है।

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