गुरुवार 5 अक्टूबर को मध्यप्रदेश के इंदौर शहर में एक होटल में मिलिंद जुमड़े नाम के एक शख्स ने आत्महत्या कर ली. जुमड़े पेशे से आर्किटेक्ट थे और भोपाल में अर्थ असोसिएट्स नाम की फर्म चलाते थे. मौके से बरामद हुए सुसाइड नोट में उन्होंने अपने बिज़नेस पार्टनर पर पैसों के लिए दबाव डालने का आरोप लगाया. मिलिंद ने अपने सुसाइड नोट में जो बाते कहीं वह महत्वपूर्ण हैं. उन्होंने लिखा कि आर्थिक दबाव और पर्रिवार का बिखरना उनके लिए असहनीय था. बताया गया कि उनकी पत्नी उनसे तलाक लेने का निर्णय ले चुकी थीं. नोट में अपने पार्टनर का ज़िक्र करते हुए उन्होंने लिखा,
“खांडे की वजह से मेरा पूरा परिवार बिखर गया.”
गुरुवार 13 जुलाई, मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में एक शख्स ने अपने पूरे परिवार के साथ आत्महत्या कर ली. ख़बरों के अनुसार पति-पत्नी ने फाँसी लगाकर आत्महत्या कर ली थी. वहीँ उन्होंने अपने 9 और 3 वर्षीय बच्चे को कोल्ड ड्रिंक में ज़हर मिलाकर पिला दिया था. पुलिस के बयान के अनुसार यह शख्स धोखाधड़ी का शिकार हुआ था. मीडिया से बात करते हुए मृतक के भाई ने कहा कि मृतक ने उससे यह बात कभी साझा नहीं की असल में पूरा मामला है क्या? यह घटना इतनी गंभीर थी कि पूरे प्रदेश में यह चर्चा का विषय थी.
2021 में हुईं सबसे ज़्यादा आत्महत्या
मध्य प्रदेश के 2 बड़े शहरों में हुई यह घटनाएँ देशभर में होने वाली 1 लाख 64 हज़ार 33 (NCRB, 2021) आत्महत्याओं में से एक हैं. साल 2021 भारत में सबसे ज़्यादा आत्महत्या के दर्ज होने का साल था. इस रिपोर्ट के अनुसार हमारे देश में हर साल 1 लाख से भी ज़्यादा लोग आत्महत्या के कारण अपनी जान गँवा देते हैं. एनसीआरबी की वेबसाईट में प्राप्त 2021 तक के आँकड़ों का आकलन करें इस साल आत्महत्या का आँकड़ा 2020 के मुकाबले 7 प्रतिशत ज़्यादा था.
महाराष्ट्र में दर्ज हुए सबसे ज़्यादा आत्महत्या के मामले
यदि राज्यों की बात करें तो 22 हज़ार 207 आत्महत्या के आँकड़े के साथ महाराष्ट्र में देशभर में सबसे ज़्यादा आत्महत्या के मामले दर्ज किए गये थे. इसके अलावा 13 हज़ार 500 आत्महत्याओं के साथ मध्यप्रदेश इस लिस्ट में तीसरे स्थान पर था. चिंताजनक बात यह भी है कि साल 2020 से 2021 तक लगातार दो साल तक महाराष्ट्र, तमिलनाडु और मध्य्राप्रदेश क्रमशः पहले, दूसरे और तीसरे स्थान पर थे.
वहीँ अगर आत्महत्या दर (प्रति 1 लाख आबादी में आत्महत्याओं की संख्या) की बात करें तो अंडमान निकोबार द्वीप समूह में आत्महत्या की दर सबसे ज़्यादा (39.7%) थी. वहीँ 39.2 प्रतिशत दर के साथ सिक्किम दूसरे स्थान पर था. ध्यान रहे की यह आकलन कुल जनसँख्या के आधार पर हुआ है.
पुरुषों में बढ़ते आत्महत्या के मामले
रिपोर्ट से प्राप्त आंकड़ों की माने तो भारत में सबसे ज़्यादा पुरुषों द्वारा आत्महत्या की जाती है. 18 साल से नीचे के आत्महत्या करने के वालों में सर्वाधिक महिलाएँ हैं. मगर पुरुषों और महिलाओं के आँकड़े में बहुत अंतर नहीं है. महिलाओं के लिए यह आँकड़ा 5655 है. वहीँ 2021 में इस आयुवर्ग के 5075 पुरुषों ने आत्महत्या की. 45 से 60 वर्ष के पुरुषों द्वारा सबसे ज़्यादा (24,554) आत्महत्या की गई.
पुरुषों द्वारा सबसे ज़्यादा आत्महत्या करने के पीछे के कारण को बताते हुए मनोविज्ञान विशेषज्ञ डॉ. समीक्षा साहू कहती हैं कि
"बचपन से ही पुरुषों की एक ख़ास तरह से की जाने वाली कंडिशनिंग इसका एक प्रमुख कारण है. वह कहती हैं कि समाज द्वारा बचपन से बच्चों को यह कहा जाता है कि लड़के रोते नहीं हैं. हमने पुरुषों द्वारा उनकी भावनाएं साझा करने को एक कमजोरी की तरह पेश किया है. ऐसे में पुरुषों के अन्दर उनकी परेशानियों का भरे रह जाना आत्महत्या का प्रमुख कारण है. "
पारिवारिक दिक्कतें सबसे बड़ा कारण
एनसीआरबी की रिपोर्ट और अलग-अलग अध्ययनों में पारिवारिक दिक्कतों को आत्महत्या का प्रमुख कारण बताया गया है. रिपोर्ट के अनुसार 33.2 प्रतिशत आत्महत्या इसी कारण से की जाती हैं. मगर डॉ. साहू का मानना है कि इस आँकड़े के पीछे की कहानी समझना बेहद ज़रूरी है.
“अध्ययनों के अनुसार आत्महत्या करने वाले 95 प्रतिशत पुरुष किसी न किसी मानसिक बिमारी से जूझ रहे होते हैं. मगर आत्महत्याओं की घटनाओं को रिपोर्ट करते हुए आम तौर पर एक कारण या घटना का हवाला दिया जाता है.”
डॉ. साहू के अनुसार यह घटनाएँ इन रोगों के होने पे किसी उत्प्रेरक की तरह काम करती हैं. मगर असल कारण वह मानसिक रोग होते हैं जिनके इलाज के लिए किसी मनोवैज्ञानिक के पास जाना समाज में टैबू माना जाता है.
मनोचिकित्सकों की कमी
नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरोसाइंस के अनुसार भारत में 150 मिलियन लोगों को मानसिक रोगों के चलते चिकित्सीय मदद की ज़रूरत है मगर इनमें से केवल 30 मिलियन लोगों तक ही यह मदद पहुँच पाती है. वहीँ इन्डियन जर्नल ऑफ़ साईकेट्री के अनुसार भारत में एक लाख मरीजों में 0.75 मनोचिकित्सक ही मौजूद है. पश्चिम के देशों में इसके लिए सपोर्ट ग्रुप का कल्चर है. यह उन लोगों का समूह होता है जो किसी तरह की मानसिक परेशानी से गुज़र रहे होते हैं. यहाँ लोग अपनी परेशानियों को साझा करते हैं. डॉ. साहू के अनुसार भारत में यदि इस तरह के प्रयासों को एक कल्चर के रूप में स्थापित किया जाए तो आत्महत्या के यह आँकड़े सुधारे जा सकते हैं.
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