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पीड़ितों को इंसाफ दिलाने के लिए गैस पीड़ित महिला उद्योग संगठन ने कसी कमर

भोपाल गैस पीड़ित महिला उद्योग संगठन के दफ्तर पर इन दिनों भारी संख्या में गैस पीड़ित इकट्ठे हो रहे हैं। मकसद है सुप्रीम कोर्ट को अपने ज़िंदा होने का प्रमाण देना

By Pallav Jain
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Bhopal Gas peedir mahila udyog sangathan

भोपाल गैस पीड़ित महिला उद्योग संगठन के दफ्तर पर इन दिनों भारी संख्या में गैस पीड़ित इकट्ठे हो रहे हैं। सभी इस जद्दोजहद में लगे हैं कि सरकार और सुप्रीम कोर्ट को यह प्रमाण दे सके कि 3 दिसंबर 1984 में हुई गैस त्रासदी के पीड़ित आज भी ज़िंदा हैं और गैस का प्रभाव आज भी उनकी ज़िंदगी में ज़हर घोल रहा है।

दरअसल सुप्रीम कोर्ट में गैस त्रासदी के पीड़ितों के लिए अतिरिक्त मुआवज़े के लिए सरकार और 5 संगठनों द्वारा लगाई गई क्यूरेटिव पिटीशन पर 11 अक्टूबर को सुनवाई होनी है, सरकार को कोर्ट में सही आंकड़े पेश करने है। सरकार इसमें लापरवाही बरतती  नज़र आ रही है। 20 तारीख को हुई सुनवाई में सोलिसिटर जनरल ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि वो अभी भी सरकार के निर्देश का इंतेज़ार कर रहे हैं। सरकार के रुख को देखकर भोपाल गैस पीड़ित महिला उद्योग संगठन ने गैस राहत अस्पतालों से मरीज़ों के मैडिकल रिकॉर्ड निकलवाने के लिए फॉर्म भरवाना शुरु किया है। संगठन के सहयोजक शाहवर का कहना है कि अगर सरकार आंकड़े पेश नहीं करेगी तो हम सुप्रीम कोर्ट को गैस पीड़ितों के सही आंकड़े उपलब्ध करवाएंगे।

सुप्रीम कोर्ट में अतिरिक्त मुआवज़े के लिए 2010 में लगाई गई क्यूरेटिव पिटीशन में भारत सरकार के साथ-साथ 5 गैस पीड़ित संगठन भी याचिकाकर्ता बनाए गए हैं।

Also Read: Bhopal Gas Tragedy: सुप्रीम कोर्ट में सरकार मौत के असली आंकड़े पेश करने से बच क्यों रही है?

पीड़ितों को नहीं मिल रहा सही इलाज

भोपाल में गैस पीड़ित आज भी कई तरह की समस्याओं का सामना कर रहे हैं, हॉस्पिटल में डॉक्टर का न होना और सही ईलाज न मिलना इसमें एक सबसे बड़ा मुद्ददा है और दूसरा एक डर लोगों में है कि सरकार गैस पीड़ितों को अब निज़ी अस्पतालों के भरोसे छोड़ देना चाहती है। शाहवर कहते हैं कि " गैस पीड़ितों के पास पहले से गैस राहत अस्पताल का स्मार्ट कार्ड है, लेकिन उन्हें वहां सही इलाज नहीं दिया जा रहा, सरकार गैस पीड़ितों को आयुष्मान योजना से मर्ज करना चाहती है, जिसका मकसद गैस राहत अस्पताल में ताले डालकर पीड़ितों को निजी इलाज के भरोसे छोड़ देना है।

भोपाल गैस पीड़ित महिला उद्योग संगठन क्या है?

भोपाल गैस पीड़ित महिला उद्योग संगठन ने त्रासदी के दिन से ही गैस पीड़ितों के हक की लड़ाई लड़ी है। संगठन के संस्थापक अब्दुल जब्बार यूनियन कार्बाईड फैक्ट्री से दो किलोमीटर दूर राजेंद्र नगर में रहते थे, जब 3 दिसंबर 1984 की रात को भोपाल में गैस त्रासदी हुई। तो उनके परिवार के कई सदस्यों की जान इस त्रासदी में चली गई।

विनाश लीला के प्रत्य़क्ष दर्शी रहे अब्दुल जब्बार जीवनपरंत गैस पीड़ितों को न्याय दिलाने के लिए लड़ते रहे।

साल 1988 में अब्दुल जब्बार द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दायर किए गए मुकदमें की ही बदौलत यनियन कार्बाईड 705 करोड़ का हर्जाना देने को राजी हुई थी।

उन्होंने न्याय की इस लड़ाई में कभी किसी विदेशी संस्था या कॉरपोरेट हाउस से फंडस् नहीं लिए। इसकी जगह उन्होंने आत्मनिर्भरता का रास्ता चुना, उन्होंने पीड़ित महिलाओं को सिलाई और कढ़ाई की ट्रैनिंग देना शुरु किया। वो गैस पीड़ितों के लिए खैरात नहीं रोज़गार चाहते थे।

अब्दुल जब्बार भोपाल गैस त्रासदी की लड़ाई का चेहरा रहे। 2019 में मौत के बाद संगठन की ज़िम्मेदारी उनकी बहन हमिदा बी ने संभाली जो इस लड़ाई में अब्दुल जब्बार के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही थी। गैस पीड़ितों के लिए हमीदा बी किसी मसीहा से कम नहीं रही। दोनों ही भाई बहन खुद गैस पीड़ित थे और खुद भी कई बीमारीयों से पीड़ित रहने के बावजूद गरीब गैस पीड़ितों के लिए लड़ते रहे।

साल 2020 में अब्दुल जब्बार को भोपाल गैस पीड़ितों को न्याय दिलाने के लिए किए गए संघर्ष के लिए मर्णोपरांत पद्म श्री अवॉर्ड से नवाज़ा गया था।

हामिदा बी की मौत के बाद अब इस संगठन की ज़िम्मेदारी हामिदा के बेटे शाहवर के कंधों पर है।

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