शनिवार की रात मदुरई के मदक्कुलम के, श्री काबलीश्वरी अम्मन मंदिर पहाड़ी के जंगलों में भीषण आग लग गई। जंगल के कर्मचारियों ने बताया की आग Heat Wave के कारण लगी थी। आइये जानते हैं इस घटना के बारे में और समझते हैं हीट वेव को।
शनिवार को आग फैलने की सूचना के बाद अग्निशमन की 5 यूनिटें मौके पर पहुंची। और 7 घंटे के कठिन श्रम के बाद आग पर काबू पा लिया गया। जंगल के कर्मचारियों के अनुसार इस दुर्घटना में कोई भी जान नहीं गई है।
क्या है Heat Wave?
हीट वेव, अत्यधिक गर्मी के मौसम के लम्बी अवस्था होती है, जिसका हमारे स्वास्थ्य और पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। भारत चूंकि एक उष्ण कटिबंधीय देश है, इसलिए यहां हीट वेव अधिक प्रभावशाली होती है।
भारत के मौसम विज्ञान विभाग के अनुसार मैदानी क्षेत्रों में यदि तापमान 40 डिग्री सेल्सियस या इससे अधिक और पहाड़ी क्षेत्रों में 30 डिग्री सेल्सियस या उससे अधिक हो तो इस अवस्था को Heat Wave माना जाता है।
यदि किसी क्षेत्र का तापमान वहां के सामान्य अधिकतम तापमान से 6 डिग्री सेल्सियस या उससे अधिक बढ़ जाए तो इसे गंभीर Heat Wave की स्थिति कहेंगे। उदाहरण के तौर पर यदि किसी क्षेत्र का सामान्य अधिकतम तापमान 31 डिग्री सेल्सियस है तो वहां के तापमान के 4 से 5 डिग्री बढ़ने पर लू और यदि तापमान 6 डिग्री बढ़ गया यानी 37 डिग्री सेल्सियस या उससे अधिक हो गया तो इसे गंभीर हीट वेव कहेंगे।
आपको बता दें की हीट वेव भारत की एक गंभीर मौसमी समस्या है। 1970 से 2019 तक भारत में 706 Heat Wave आए हैं, जिसके कारण इस दरमियान 17,362 लोगों की जानें गईं है। भारत में आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और उड़ीसा का क्षेत्र इससे सर्वाधिक प्रभावित रहा है।
भारत के जंगल पहले भी झुलस चुके है हीट वेव्स से
मई 2019 में उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल क्षेत्र के जंगलों अधिक गर्मी के कारण आग लगने से काफी नुकसान हुआ था और कई जानवरों की जानें गई थी। वहीं भारत के पर्यावरण मंत्रालय की 2019 की रिपोर्ट के अनुसार भारत के फारेस्ट कवर का 21.4 फीसदी हिस्सा वनाग्नि के खतरे में रहता है। मदुरै के जंगलों में लगी आग इसका हालिया उदाहरण है। इससे जुड़ी सबसे बड़ी चिंता यह है कि इनमे से अधिकतर क्षेत्र Bio Diversity Hot Spot में आते हैं और काफी संवेदनशील है।
Heat Wave का अधिक और बार-बार आना क्लाइमेट चेंज का एक संकेत है। यह हमारे लिए अलार्म है की हम बढ़ते शहरीकरण को रोकें, वृक्षारोपण को बढ़ावा दें और सबसे जरूरी, संसाधनों का समझदारी से उपयोग करें।
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