Bageshwar, Uttarakhand | उत्तराखण्ड के बागेश्वर ज़िले में धान की फसल (Paddy Crop Destroyed) पक कर तैयार थी किसानों ने कटाई शुरू कर दी थी, लेकिन अक्टूबर के महीने में 11 दिन तक हुई बरसात की वजह से कई किसानों की फसल खेतों में ही पड़ी रही। पानी और मिट्टी लगने से धान की फसल पूरी तरह बर्बाद हो गई।
बागेश्वर ज़िले के किसान रामेश्वर कहते हैं की उन्होंने इससे पहले कभी अक्टूबर के महीने में इतनी बारिश नहीं देखी थी। उन्होंने इस बार अपने खेत में धान बोई थी, फसल बहुत बढ़िया थी। लेकिन उन्होंने फसल काट कर खेत में रखी ही थी की तेज़ बारिश शुरू हो गई। 3 तक राज्य में भारी बारिश का रेड अलर्ट रहा। अगर बारिश एक दिन रुक जाती तो वो अपनी फसल को सुरक्षित जगह पर रख सकते थे। असमय हुई बरसात ने उनके सपनों पर पानी फेर दिया। रामेश्वर बस उतना ही धान अपने खेत में उगा पाते हैं जिससे साल भर उनके परिवार का भरण पोषण हो सके। बारिश की वजह से ख़राब हुई फसल की वजह से (Paddy Crop Destroyed in Uttarakhand) अब उन्हें बाज़ार से चावल ख़रीदना होगा।
बागेश्वर ज़िले के कई गाँवों में यही हाल देखने को मिल रहा है। बड़े पैमाने पर किसानों के खेतों में पानी भरने से धान ख़राब हुई है। आपको खेतों में धान बिछी हुई और पानी में डूबी हुई दिखाई दे जाएगी।
Paddy Crop Destroyed: धान के हीप नहीं बना पाए किसान
पहाड़ी इलाकों में किसान फसल काटने के बाद धान के हीप बना देते हैं, यह एक गुम्मद के आकार का होता है, जिसमें धान की बालियाँ घाँस से ढँकी होती हैं, जो इसे बारिश से बचाकर कर रखती है। अगर किसान समय से धान के हीप बना देते तो शायद उनकी फसल बच सकती थी। कुछ किसान इसमें सफल हो गये तो कई किसानों की फसल खेत में ही पड़ी रह गई। (Paddy Crop Destroyed in Uttarakhand)
पहाड़ी इलाक़ों में ज़्यादातर किसान धान को इसी परंपरागत तरीक़े से स्टोर करते हैं, उनके पास स्टोरेज की दूसरी सुविधा नहीं होती। खेतों में बनाए गए ये धान के छोटे-छोटे पहाड़ फसल को सुरक्षित तभी रख पाते हैं जब मौसम साफ़ हो और धूप खिली हो। लंबे समय तक बरसात हो तो ये स्ट्रॉ हीप्स फसल को सुरक्षित रखने में असफल साबित हो जाते हैं। पानी से गीली हुई फसल अंकुरित होने लगती है, धान के बीज टूट जाते हैं और काले पड़ जाते हैं, जिससे फिर बाज़ार में इसकी क़ीमत गिर जाती है।
बंदरों से किसान परेशान
बंदरों और दूसरे जानवर भी इन स्ट्रॉ हीप्स को बर्बाद करने में लगे होते हैं, जिससे किसानों को बहुत नुक़सान होता है। चौरसु गाँव की अमीना बताती हैं की वो बंदरों से काफ़ी परेशान हैं, 'सरकार ट्रकों में भरकर बंदर यहाँ छोड़ जाती है और ये यहाँ हमारी फसलों और बगीचों को बर्बाद कर देते हैं। इनका जल्द से जल्द समाधान किया जाना चाहिए। बारिश ने पहले ही फसल बर्बाद कर दी है, जो थोड़ी बची थी वो बंदरों ने चौपट कर दी है।'
TOI के मुताबिक़ उत्तराखंड का Rice Bowl माने जाने वाले तराई क्षेत्र में बारिश की वजह से ख़रीफ़ की फसल (Paddy Crop Destroyed in Uttarakhand) को बहुत नुक़सान हुआ है। रूद्रपुर ज़िले के किसानों का कहना है की उन्हें प्रति एकड़ 10 हज़ार रुपय का नुक़सान हुआ है जिसकी भरपाई सरकार को करनी चाहिए।
क्लाईमेट चेंच का असर
वहीं जीबी पंत यूनिवर्सिटी के मौसम विशेषज्ञ आर के सिंह ने बताया की अक्टूबर माह में 11 दिनों के भीतर 286 मिमी बारिश दर्ज की गई है, जो पूरे अक्टूबर में होने वाली औसत 38.7 मिमी बारिश से कई ज़्यादा है। क्लाइमेट चेंज की वजह से हो रहे बदलाव काफ़ी अश्चर्य चकित करने वाले हैं।
फ़िलहाल बागेश्वर ज़िले के किसान मायूस हैं और कुछ मदद की उम्मीद कर रहे हैं।
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