रोहित शिवहरे | भोपाल : मध्य प्रदेश के अनूपपुर जिले के ग्राम बुद्धू पानी में रहने वाले 60 साल के करन सिंह में पिछले कई महीनों से टीवी रोग से ग्रसित हैं। वे बताते हैं कि इलाज के दौरान उन्हें जो दवाइयों का डोज मिला था वह 4 गोलियों के जगह दो ही गोलियों का मिला। डोज कंप्लीट हो जाने के बावजूद भी अभी तक आराम नही मिल पाया है। इसलिए रोज दोबारा चालू करा दिया है लेकिन अभी भी मुझे दो ही गोलियों का डोज मिल रहा है।
यही हाल मध्यप्रदेश के शिवपुर जिले की भी है कुसुम यहां पिछले कुछ महीनों से टीवी से पीड़ित हैं उन्हें भी टीवी के चार मुख्य दवाइयों की जगह दो दवाई दवाइयों का ही डोज मिल रहा है। वे बताती है कि मुझे टीबी की इथीम्बीटॉल और आईएनएच दवाइयां ही मिल रही है जबकि इसके लिए जरूरी रिफामपसिन और पायराजिनामाइट ये दो दवाइयां मुझे नही मिल रही।
मध्य प्रदेश में बीते तीन कुछ महीनों से टीबी पीड़ित मरीज आधी दवा के सहारे अपना जीवन काट रहे हैं। प्रदेश के लगभग एक लाख 65 हजार टीबी के मरीजों को बीते कुछ महीनों से दवाइयों का पूरा डोज नहीं मिल पा रहा है। जिसके कारण टीबी के मरीजों को गंभीर नुकसान का सामना करना पड़ सकता है। ऐसे में संक्रमण बढ़ सकता है और मरीजों का इलाज भी लंबा खिंच रहा है।
गौरतलब है कि यह स्थितियां तब है जब केन्द्र सरकार ने लक्ष्य निर्धारित किया है कि साल 2025 तक पूरे देश को टीबी मुक्त बनाना है, लेकिन इसके विपरीत प्रदेश में हालात कुछ और ही बयां कर रहे हैं। केन्द्र सरकार के इस लक्ष्य के अनुरूप साल 2025 तक मध्य प्रदेश से टीबी बीमारी का सफाया नहीं हो पाएगा, क्योंकि मध्य प्रदेश में बीते तीन महीने से टीबी की दवा ही उपलब्ध नहीं है।
टीबी विशेषज्ञ नाम ना छापने की शर्त में बताते है कि टीबी के मरीजों को मुख्य रूप से चार दवाओं का डोज दिया जाता है, जिनमें दो दवा रिफामपसिन और पायराजिनामाइट की सप्लाई केंद्र से ही बंद है। मजबूरीवश मध्य प्रदेश में एक लाख 65 हजार टीबी के मरीजों का इलाज दो दवाओं के सहारे ही काम चलाना पड़ रहा है।
विशेषज्ञों के मुताबिक टीबी के मरीजों को छह महीने तक चार दवाएं रिफामपसिन, इथीम्बीटॉल, आईएनएच और पायराजिनामाइट दवा दी जाती है। पहले दो महीने इंटेसिव पीरियड में चारों दवाएं लेनी होती है। अगले चार महीनों में कन्टीन्यूशन फेज में पहली तीन दवाएं देते हैं। उनके अनुसार इंटेसिव पीरियड महत्वपूर्ण होता है। इस दौरान दवाओं की कमी से मरीजों का संक्रमण बढ़ने का खतरा रहता है।
मीडिया से बातचीत में टीबी अधिकारी ने यह माना कि प्रदेश में टीबी की दवाइयों का शॉर्टेज चल रहा है लेकिन उन्होंने कहा है कि केंद्र से बातचीत करके जल्द से जल्द सारी दवाइयों की आपूर्ति करने की कोशिश की जा रही है।
गौरतलब है कि प्रदेश में टीबी की यह स्थितियां तब है जब केन्द्र सरकार ने लक्ष्य निर्धारित किया है कि साल 2025 तक पूरे देश को टीबी मुक्त बनाना है, लेकिन इसके विपरीत प्रदेश में हालात कुछ और ही बयां कर रहे हैं। केन्द्र सरकार के इस लक्ष्य के अनुरूप साल 2025 तक मध्य प्रदेश से टीबी बीमारी का सफाया नहीं हो पाएगा, क्योंकि मध्य प्रदेश में बीते कई महीने से टीबी की दवा ही उपलब्ध नहीं है। ऐसे में सरकार का 2025 तक टीबी मुक्त होने का दावा खोखला ही जान पड़ता हैं।
मध्यप्रदेश में टीबी के 100 में से दो मरीजों की मौत हो जाती है
आबादी के अनुपात के लिहाज से देश भर में सर्वाधिक टीबी मरीज मध्यप्रदेश में हैं। मरीजों की संख्या के लिहाज से यूपी, महाराष्ट्र और बिहार के बाद सर्वाधिक टीबी मरीजों के मामले में मध्यप्रदेश चौथे स्थान पर है।
प्रदेश में टीबी बीमारी से पीड़ित मरीजों के मामले में छतरपुर जिला सबसे आगे है। छतरपुर में टीबी के 16 हजार से ज्यादा मरीज है। वही दूसरे नंबर पर प्रदेश की राजधानी भोपाल है। राजधानी भोपाल में भी टीबी बीमारी से पीड़ित मरीजों की संख्या 10 हजार से ज्यादा है।
यह भी पढ़ें
- ड्राईविंग सीट पर पिंगलो गांव की लड़कियां
- मौसम की हर असामान्य घटना जलवायु परिवर्तन का परिणाम नहीं होती
- इन ‘क्लीन 200’ कंपनियों का विकास जगा रहा है बेहतर जलवायु की आस
- जातिवाद के दंश से बेहाल समाज
Follow Ground Report for Climate Change and Under-Reported issues in India. Connect with us on Facebook, Twitter, Koo App, Instagram, Whatsapp and YouTube. Write us at [email protected].