उत्तराखंड हाईकोर्ट ने एक जनहित याचिका में स्वतः संज्ञान लेते हुए राज्य सरकार को आदेश दिया की नैनीताल स्थित सूखाताल में सभी निर्माण कार्यों पर तत्काल रोक लगा दी जाए। सूखाताल के सौदर्यीकरण के मामले में सुनवाई की तारीख को कोर्ट ने 20 दिसंबर का समय दिया है। इस फैसले से प्रशासन के सूखाताल पर किये जा रहे निर्माण पर रोक लग जाएगी और पर्यावरणविदों की जीत होगी। आईये समझते हैं कि क्या है सूखाताल विवाद
दरअसल पिछले वर्ष दिसंबर में उत्तराखंड हाईकोर्ट चीफ जस्टिस ने सूखाताल में लगातार हो रहे अतिक्रमण के विषय पर उन्हें लिखे गए नागरिकों और एक्टिवस्ट्स के पत्रों का स्वतः संज्ञान लिया था और सरकार से इस विषय में जवाब मांगा था। सरकार ने आईआईटी रुरकी द्वारा तैयार की गई एक रिपोर्ट के आधार पर सूखाताल के आसपास के कंक्रीट की दीवार बनाने का काम शुरु किया था। पर्यावरविदों का कहना था कि इस कॉंक्रीट बेड से सूखाताल खत्म हो जाएगी और यह एक प्राकृतिक झील से मैनमेड झील बनकर रह जाएगी।
इस मामले में कोर्ट के एमिकस क्यूरे एडवोकेट कार्तिकेय हरी गुप्ता ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि उन्होंने कोर्ट को बताया है कि हाईड्रोलॉजिकल स्टडीज़ के मुताबिक सूखाताल, नैनी लेक को रीचार्च करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है और राज्य सरकार इस पर कंक्रीट का बेड बनाकर गलत कर रही है। किसी भी प्रकार के इमपरमीएबल मटीरियल का इस्तेमाल इस तरह की लेक में करना वैज्ञानिक दृष्टीकोण से गलत है।
सरकार आईआईटी रुरकी की स्टडी के मुताबिक सूखाताल में कंस्ट्रक्शन कर रही है जो गलत है क्योंकि आईआईटी रुरकी को इंवायरमेंटल असेसमेंट करने की कोई एक्सपर्टीज़ हासिल नहीं है, उनकी इस रिपोर्ट पर ही कई सवाल खड़े होते हैं क्योंकि उन्होंने एक मलबे को रोकने के लिए कंक्रीट की दीवार बनाने का सुझाव तो दिया लेकिन पहले हो रखे एंक्रोचमेंट और इससे होने वाले नैनी लेक को नुकसान का आंकलन नहीं किया।
सरकार सूखाताल का सौंदर्यीकरण कर नैनीताल में पर्यटन बढ़ाना चाहती है, इस बात पर कोर्ट ने कहा कि नैनीताल को और पर्यटकों की ज़रुरत नहीं है क्योंकि यह शहर पहले ही ओवरलोड हो चुका है।
आईये समझते हैं कि-
क्या है सूखाताल और इसके सौंदर्यीकरण का विरोध क्यों हो रहा है?
दरअसल सूखाताल को नैनीताल की फेमस नैनी लेक की फीडल लेक माना जाता है। यह एक मौसमी लेक है जो नैनी लेक से 800 मीटर दूर है।
यह नैनीलेक को 40-50 फीसदी तक रीचार्च करती है। सूखाताल नैनीलेक से उंचाई पर है, यहां पर कैचमेंट का एक्सेस वॉटर स्टोर रहता है और बाकी का पानी नैनीलेक पहुंचता है। इसकी वजह से लोगों के पीने के पानी की समस्या भी हल होती है।
लेकिन पिछले कुछ सालों में बेतहाशा होते कंस्ट्रक्शन और मलबे के इस लेक में डाले जाने से इसकी कैपेसिटी कम हुई है। वर्ष 2000 के बाद 10 बार ऐसे मौके आए जब नैनी लेक का पनी निम्नतर स्तर पर पहुंच गया था।
हाईकोर्ट के आदेश के बाद सूखाताल से इल्लीगल एंक्रोचमेंट को हटाया जाएगा, जिससे नैनीताल के लेक्स को दोबारा जीवन देने में मदद मिलेगी।
हालांकि सरकार की ओर से तालाबों के गहरीकरण और मलबे को हटाने की बजाए उसमें कंक्रीट लगाकर उसके वजूद को खत्म करने का काम किया जा रहा था, ताकि असल समस्या से ध्यान भटकाया जा सके।
नैनीताल को उसकी सुंदर झीलों की वजह से ही जाना जाता है। लेकिन पर्यटन बढ़ाने के चक्कर में सरकार उन्हें झीलों को नष्ट कर देना चाहती है। यानी जिस पेड़ पर बैठे हैं उसी को काटने का प्रयास।
सूखाताल का इतिहास
सूखाताल आज जिस स्वरुप में है उसके पीछे शहरीकरण और प्राकृतिक स्त्रोतों का लगातार दोहन है। माना जाता है कि नैनीझील की तरह सूखाताल झील भी पानी से लबालब हुआ करती थी। उसमें नावें भी चलती थीं और आसपास हरियाली भी थी।
पीटर बैरन की पुस्तक ‘वांडरिंग इन द हिमाला’ में सूखाताल का जिक्र है। यह झील लोक परंपरा के साथ भी जुड़ी रही। नैनीझील में स्नान करने वाले लोग सूखाताल को देवी का निवास मानते हुए वहां मत्था टेकते थे और बारापत्थर से शहर से बाहर जाते थे।
1971 में जब दुनियाभर में वेटलैंड के संरक्षण की शुरुवात हुई तो भारत में भी 1987 में वेटलैंड बोर्ड बना लेकिन उत्तराखंड में यह लागू नही हुआ और यहां की झीलें आज इसकी फल देख रही है।
यहां अतिक्रमण कर होटल बनाने के लिए लालायित रसूखदार लोग चाहते हैं कि सूखाताल को पूरी तरह नष्ट कर दिया जाए और उसकी जगह पर उनके बड़े होटल बनने का मार्ग खुल जाए। सरकार भी टैक्स के लोभ मे प्रकृति के विनाशकों का साथ दे रही है।
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