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करगिल युद्ध : हुंडरमन कारगिल से कुछ दूर बसा एक गांव, जो 1971 के भारत-पाक युद्ध और कारगिल संघर्ष से हुई तबाही का जीवित स्मारक है। यह गांव युद्ध की त्रासदी को बयां करता है। सीमा पार से दागे गए मोर्टार और गोलियों ने इस गांव को खंडहर में बदल कर रख दिया। और यहां रह रहे लोगों को अपनी ज़मीन छोड़ उंचाई पर जाने को मजबूर कर दिया। मामूली आबादी वाले इस छोटे से गांव के लोगों ने तबाही के सामानों को इकट्ठा कर एक संग्रहालय बना दिया जो आज सैलानियों के लिए आकर्षण का केंद्र बना हुआ है।
1971 के युद्ध के दौरान पाकिस्तान सेना द्वारा उपयोग किए जाने वाले प्राथमिक चिकित्सा बॉक्स, उनके सैन्य उपकरण, पाकिस्तान सेना के सूखे राशन के बक्से संग्रहालय में रखे गए हैं। कारगिल संघर्ष के दौरान प्राप्त सभी बुलेट और मोर्टार के गोले इस संग्रहालय में देखे जा सकते हैं। कारगिल शहर से मात्र 12 किमी दूर स्थित हुंडरमन, नियंत्रण रेखा पर बसा अंतिम गाँव है। 1971 के युद्ध से पहले, इस गांव पर पाकिस्तान का कब्जा हुआ करता था, अब यह भारत का हिस्सा है। युद्ध के बाद इस गांव के लोगों के कई परीचित सीमा के उस पार ही
रह गए थे, मोबाईल कनेक्टीविटी आने के बाद फिर से बिछड़े सद्स्यों के तार इस गांव से जुड़ पाए।
कारगिल संघर्ष के बीस साल बाद, गाँव के आस-पास का क्षेत्र अभी भी एक युद्ध क्षेत्र जैसा दिखाई देता है। 1971 और कारगिल युद्ध के दौरान भारतीय सेना द्वारा बिछाई गई बारूदी सुरंगों की उपस्थिति के नोटिस बोर्ड इस गांव में जहां तहां देखे जा सकते हैं। गाँव में लगभग 32 परिवार हैं और लगभग 250 व्यक्तियों की आबादी है। गाँव के पुरुष सदस्य सेना के लिए काम करते हैं और महिलाओं को खेती करते देखा जा सकता है।
विदेशी सैलानी यहां आना पसंद करते हैं। इस गांव में जीवन यापन करने के कम ही साधन उपलब्ध हैं। गांव के पुरुष सेना की छोटी मोटी मदद कर पैसा कमाते हैं और महिलाएं खेतों में काम कर ग्रहस्थी का चूल्हा जलाए रखतीं हैं।
बड़े-बड़े शहरों में एयरकंडीशन कमरों में बैठ कर हम टीवी पर युद्ध भड़काने वाले न्यूज़ कार्यक्रम देखते हैं। और सीमा पर बसे यह गांव युद्ध की त्रासदी को झेलते हैं। नियती समझ कर हम इन लोगों को इनके हाल पर जीने को छोड़ देते हैं। युद्ध के हिमायती लोगों को हिंडरमन जैसे गांवों का रुख जीवन में एक बार ज़रुर करना चाहिए। वे जान पाएंगे की जब एक गोली चलती है तो उसकी तबाही की छाप कैसी होती है।
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