महाराष्ट्र के विदर्भ स्थित वानी वरोरा हाईवे पर दुनिया का पहला बांस से बना 200 मीटर लंबा क्रैश बैरियर इंस्टॉल किया है। यह न सिर्फ कारगर है बल्कि पर्यावरण के लिए भी काफी फायदेमंद है। इस बंबू कार क्रैश बैरियर को बाहु बल्ली नाम दिया गया है। इसके नाम से आप इसकी ताकत का अंदाज़ा लगा सकते हैं।
क्या करता है क्रैश बैरियर?
कार क्रैश बैरियर का मुख्य काम एक्सीडेंट की स्थिति में गाड़ियों को सड़क पर ही रोकना होता है। यह गाड़ियों को सड़क से दूर जाकर गिरने से रोकते हैं, जिससे एक्सीडेंट का इंपैक्ट कम होता हो और एक हद तक हादसों में मौत को रोकने का काम करता है।
केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी के मुताबिक यह भारत के आत्मनिर्भर कार्यक्रम और भारत के बांस उद्योग के लिए बड़ी उपलब्धी है। इस क्रैश बैरियर को बनाने में बांस की बांबुसा बाल्कोआ (Bambusa Balcoa) प्रजाति का इस्तेमाल किया गया है। इसे क्रियोसॉट ऑयल से ट्रीट किया गया है और हाई डेंसिटी पॉली इथलीन की कोटिंग इस पर लगाई गई है।
बांस की बंबुसा बाल्कोआ प्रजाती
बांस की यह प्रजाती अपनी मज़बूती के लिए जानी जाती है। इसकी लंबाई 80 फीट तक होती है, और मोटाई 6 इंच तक।
बांस की यह प्रजाती भारतीय उपमहाद्वीप की नेटिव प्रजाति है, साउथ अफ्रीका में इसका कमर्शियल प्लांटेशन किया जाता है। यह बांस लंबे समय तक सूखा झेलने में सक्षम है।
कितना दमदार है बाहु बल्ली?
अगर इस कार क्रैश बैरियर की क्षमता की बात करें तो पीथमपुर इंदौर स्थित नैशनल ऑटोमोटिव टेस्ट ट्रैक्स (NATRAX) और विविध सरकारी संस्थानों में इसका परीक्षण किया गया है। सेंट्रल बिल्डिंग रीसर्च इंस्टीट्यूट रुड़की द्वारा किये गए फायर रेटिंग टेस्ट में इसकी गुणवत्ता को क्लास वन सर्टीफिकेट मिला है। इंडियन रोड कांग्रेस ने भी इसे मान्यता प्रदान की है।
पर्यावरण के लिए सही
बंबू कार क्रैश बैरियर पर्यावरण के लिहाज़ से भी अच्छा है क्योंकि इसकी रिसायकलिंग वैल्यू 50-70 फीसदी है जबकि स्टील बैरियर की 30-50 फीसदी होती है। इसमें कोटिंग के लिए पॉली एथलीन का उपयोग ज़रुर किया गया है लेकिन यह भी पूरी तरह से रीसायकल्ड है। बंबू कार क्रैश बैरियर जंगलों के आस पास के हाईवे पर भी इस्तेमाल किया जाएगा जिससे वाईल्ड लाईफ को सड़क पर आने से रोका जा सकेगा।
यह कार क्रैश बैरियर स्टील का विकल्प अच्छा विकल्प है इससे भारत के कृषकों को रोज़गार मिल सकेगा, साथ ही ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बल मिलेगा।
भारत के बंबू कार क्रैश बैरियर के अस्तित्व में आने के कहानी
भारत सड़क हादसों को रोकने के लिए एक कारगर तकनीक की खोज में था जो स्टील बैरियर का विकल्प बन सके और सड़क दुर्घटना के बाद क्रैश की वजह से होने वाली मौतों को कम कर सके। इसके लिए एक लो कॉस्ट सॉल्यूशन पर सहमति बनी जिसमें कार क्रैश बैरियर बंबू की मदद से बनाया जा सकता था।
VNIT नागपुर के एक्सपर्ट्स को इस बैरियर को डिज़ाईन करने का काम दिया गया।
केंद्रीय नितिन गडकरी के मुताबिक भारत हर साल 25 हज़ार करोड़ रुपए कार क्रैश बैरियर पर खर्च करता है। अनुमान के मुताबिक स्टील बैरियर पर 2000 रुपए प्रति मीटर का खर्च आता है। यह पैसा भारतीय किसानों के पास जा सकता है अगर बांस से बना कार क्रैश बैरियर सफल होता है। नितिन गडकरी के ही आईडिया ने इस बाहु बल्ली कार क्रैश बैरियर को हकीकत में तब्दील किया है।
फिर एक सवाल उठा कि क्या बांस से बना बैरियर वेदर प्रूफ और लंबे समय तक टिके रहने वाला होगा। इसपर नितिन गडकरी ने कहा कि नॉर्थ ईस्ट में आप देख सकते हैं कि कैस बांस से बने स्ट्रक्चर सालों तक एक्सट्रीम रेनफॉल में भी टिके रहते हैं।
आपको बता दें कि भारत में हर साल औसत 5 लाख सड़क दुर्घटनाएं होती हैं, जिसमें करीब देढ़ लाख लोग अपनी जान गंवा देते हैं। भारत एशियन डेवलपमेंट बैंक और वर्लड बैंक के साथ मिलकर ऐसे ब्लैक स्पॉट्स को हटाने के काम में लगा है जहां एक्सीडेंट ज्यााद होते हैं। इस काम के लिए 14 हज़ार करोड़ रुपए खर्च कर सड़क की डिज़ाईन में परिवर्तन किया जा रहा है।
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