‘रेत समाधि’, देश दुनिया में छाया यह उपन्यास हिंदी के पाठकों की रुह से नाता जोड़ लेता है। गीतांजली श्री द्वारा हिंदी में लिखे गए इस उपन्यास का अंग्रेजी अनुवाद ‘टूम्ब ऑफ सैंड’, इंटरनेशनल बुकर सम्मान के लिए शॉर्ट लिस्ट हो चुका है। यह हिंदी साहित्य के लिए एक बड़ी उपलब्धी है।
रेत समाधि, मध्यम वर्गीय परिवार की दिनचर्या, रिश्तों-नातों, नोंक-झोंक, भाव-विडंबनाओं, लगाव-अलगाव और सपने-उम्मीदों को रेखांकित करता चलता है। ऐसे ही परिवार की दो स्त्रियां, एक बेटी और एक मां, एक बड़ी होती और दूसरी उम्र के साथ छोटी, एक गंभीर और ज़िम्मेदार तो दूसरी उम्र के साथ आज़ाद और आबाद, इस कहानी की धुरी हैं, जिस पर सारा उपन्यास घूमता रहता है। मां और बेटी के बीच के रिश्ते को बड़ी बारीकी से रेत समाधि उकेरता चलता है।
बेटी को विदा करने के बाद एक मां, बेटी के घर का पानी भी न पीने वाले समाज में बेटी के साथ कम ही रह पाती है। उसकी नियती होती है पूरी उम्र बेटे के घर में बिता देना। इस कहानी में जब मां कुछ समय के लिए बेटी के साथ रहने आती है तो पुड़िया में बंद बुढ़िया से आज़ाद गुड़िया बन जाती है। बेटी मां और मां बेटी के तरीके से जीने लग जाती है। जो लोग संयुक्त परिवार में रहे हैं, वो रेत समाधि के परिवार से खुद को जोड़ पाते हैं।
गीतांजलि श्री कहती हैं कि वो चार लाईन में नहीं बता सकतीं की इस उपन्यास की कहानी क्या है, क्योंकि यह ‘एक’ कहानी नहीं है। इसके हर पन्ने पर एक नई कहानी जन्म लेती है। इसमें हर पैराग्राफ में एक नया किरदार प्रवेश करता है और अपना किस्सा सुनाने लगता है। निर्जीव चीज़ें भी इसमें जीवंत हो उठती हैं, और अपना-अपना किस्सा सुनाने लग जाती हैं। घर का दरवाज़ा, दीवारें, छड़ी, पेड़-पौधे, पंछी-तितलियां और यहां तक की रेत और हवा भी।
इस किताब का नाम रेत समाधि क्यों रखा गया? इस सवाल का जवाब उन पाठकों के लिए स्पॉईलर होगा जो किताब पढ़ने के पहले यह समीक्षा पढ़ रहे हैं, इसलिए इस पर बात करना ठीक नहीं होगा। लेकिन इसे पढ़ने के बाद आप जान जाएंगे, और हर व्यक्ति इस बात का जवाब अलग-अलग देगा, यह तय है।
रिश्तों के ताने-बाने में उपन्यास कई मुद्दों पर कटाक्ष करता चलता है। समाज की स्त्री से उम्मदें, उसका तय रास्ते से भटकने पर उपजने वाला टकराव, पितृसत्ता, मस्कुलिनिटी, फेमिनिस्म, राजनीति, पर्यावरण, सांप्रदायिकता, ट्रांस्जेंडर ईशूज़, ब्रेन ड्रेन, पार्टीशन, भारत-पाकिस्तान पॉलिटिक्स, प्रेम भी।
एक आम घर से निकली कहानी कैसे बॉर्डर पार कर पाकिस्तान पहुंच जाती है, यह पढ़ना काफी रोमांचक है। गीतांजलि श्री का यह उपन्यास सिर्फ भारत-पाकिस्तान सरहद ही नहीं पार करता बल्कि लेखन की भी हर सरहद को तोड़ता चलता है। बिना वाक्य बनाए भी शब्द इतना कमाल कर सकते हैं, वो आप इस उपन्यास में देखते हैं। यह कब कहानी से कविता में ढलता है और कब कविता से गीत में, आप जान नहीं पाते। हालांकि कहीं-कहीं थोड़ी ऊब भी पैदा करते हैं। लगता है जैसे चीज़ें जबरन खींची जा रही हैं। लेकिन अगले कुछ पन्ने नीरसता से पढ़ने के बाद कहानी नया मोड़ लेती है और पाठक फिर कहानी में रम जाता है।
राग दरबारी के बाद शायद ही किसी उपन्यास ने मुझे इतना गुदगुदाया है। यह उपन्यास एक सांस में पढ़ जाने का मन करता है, लेकिन इसे आप जितना हौले-हौले पढ़ेंगे उतने ज्यादा दिन आप इस अनोखे कथा संसार में डूबे रहेंगे।
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