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Research Scholars: बढ़कर और समय पर मिले फेलोशिप, वरना फिर आंदोलन

नीति आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक पर कैपिटा एक्सपैंडिचर के हिसाब से यह बेहद कम है। दूसरे देशों में पोस्ट डॉक्टोरल फेलोशिप में छात्रों को अच्छी सुविधाएं और मौके मिल रहे हैं।

By Pallav Jain
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Research scholars fellowship hike

कोई भी देश आत्मनिर्भर तब बनता है जब बड़े पैमाने पर वहां रीसर्च और इनोवेशन (Research and Innovation) को महत्व दिया जाता है। जो भी देश आज विकास के मामले में शीर्ष पर हैं उन्हें यहां तक देश के साईंटिस्ट्स और रीसर्चर्स ने ही पहुंचाया है। लेकिन भारत में आज भी हमारे रीसर्चर्स कई ज़रुरी संसाधनों के अभाव में जीवन बिता रहे हैं।

भारत रीसर्च और डेवलपमेंट में खर्च के मामले में दुनिया में सातवे नंबर पर आता है। नीति आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक पर कैपिटा एक्सपैंडिचर के हिसाब से यह बेहद कम है। दूसरे देशों में पोस्ट डॉक्टोरल फेलोशिप में छात्रों को अच्छी सुविधाएं और मौके मिल रहे हैं। इसकी वजह से बड़ी मात्रा में ब्रेन ड्रेन हो रहा है। ब्यूोरो ऑफ इमीग्रेशन के मुताबिक साल 2022 में मार्च तक 1 लाख से ज्यादा स्टूडेंट्स ने हायर स्टडीज़ के लिए बाहर के देशों का रुख किया है।

भारत में हालत यह है कि देश के तमाम इंस्टीट्यूट में रीसर्च स्कॉलर्स समय पर स्कॉलरशिप न मिलने की शिकायत कर रहे हैं।

कभी समय पर नहीं मिलती स्कॉलरशिप

ऑल इंडिया रीसर्च स्कॉलर असोसिएशन के ज़रिए मिली जानकारी के मुताबिक, औसतन एक रीसर्चर को अपनी स्कॉलरशिप के लिए 4-5 महीने का इंतेज़ार करना पड़ता है। कोविड के बाद स्थिति और ज्यादा खराब हुई है। पोस्ट डॉक्टोरल फेलोशिप में तो कोविड के बाद से बहुत ज्यादा परेशानियां आ रही हैं।

यूजीसी के शोधार्थियों को 2-3 महीने के डिले के बाद स्कॉलरशिप मिल रही है, यह इंतेज़ार कुछ स्टूडेंट्स के लिए और भी ज्यादा है। इसकी वजह डॉक्यूमेंटेशन की जटिल प्रक्रिया है। इसके मुताबिक रीसर्चर्स को हर महीने 10 तारीख तक अपने फाईनेंशियल स्टेटस की जानकारी यूनिवर्सिटी डिपार्टमेंट और अपनी लैब को प्रोवाईड करनी होती है। ये डिपार्टमेंट्स एक महीने का समय प्रोसेस पूरी करने में लेते हैं, फिर एक महीने बाद चेक जनरेट होता है।

जो छात्र किसी वजह से 10 तारीख तक अपने डॉक्यूमेंट्स सबमिट नहीं कर पाते उनके लिए इंतेज़ार 5 से 6 महीने तक बढ़ जाता है। जो समय छात्र अपनी रीसर्च करने में लगा सकते थे, वो समय अभी कागज़ी कार्रवाही पूरी करने में जा रहा है।

जानें अभी रीसर्च स्कॉलर्स को भारत में कितनी मिलती हैं फेलोशिप

रीसर्च स्कॉलर्स का दावा है कि बढ़ती महंगाई के बीच मिल रही फेलोशिप की राशि पर्याप्त नहीं है। हर चार साल में फेलोशिप इंक्रीमेंट का वादा सरकार की ओर से किया गया था, जिसे अभी तक पूरा नहीं किया गया है। हर चार साल में इन्हें आंदोलन करना पड़ता है तब जाकर इसपर कोई एक्शन लिया जाता है। रीसर्च स्कॉलर्स साल 2014 और 2018 में सड़क पर उतरे थे तब उन्हें आश्वासन दिया गया था कि हर चार साल में स्कॉरशिप रिवाईज़ होगी 2022 में अब तक इसका सर्कुलर आ जाना चाहिए था। एआईआरएसए ने इसके लिए पीएमओ तक खत लिखे हैं लेकिन अभी तक इसपर जवाब नहीं दिया गया है।

ऑल इंडिया रीसर्च स्कॉलर असोसिएशन (AIRSA) की तरफ से चार मांगे रखी गई हैं...

  • हर चार साल बाद स्कॉलरशिप अमाउंट ऑटोमैटिक रिवईज़ हो जाए इसके लिए छात्रों को आंदोलन करने की ज़रुरत न पड़े।
  • छात्रों को मिलने वाली फेलोशिप समय पर प्रदान की जाए, डॉक्यूमेंटेशन की प्रक्रिया को आसान बनाया जाए।
  • रीसर्च के लिए पर्याप्त संसाधन और इंफ्रास्ट्रक्चर की वय्वस्था की जाए।
  • सभी इंस्टीट्यूट्स में रीसर्च फेलो को मैडिकल की सुविधाएं दी जाएं।

बढ़ती महंगाई के बीच रीसर्च स्कॉलर्स की चिंताएं बढ़ती जा रही है, उनका कहना है कि आर्थिक तंगी के बीच रीसर्च कैसे करें उन्हें नहीं पता।

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