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रवीश कुमार जन्मदिन: भारत में रात का अंधेरा न्यूज़ चैनलों पर प्रसारित ख़बरों से फैलता है

Ravish kumar quotes : प्रख्यात हिन्दी पत्रकारों में से एक रवीश कुमार का आज जन्मदिन है। उनके जन्मदिन पर आज वो दिन भर ट्विटर पर ट्रेंड होते रहे।

By Pallav Jain
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Ravish kumar quotes

Ravish kumar quotes : भारत के प्रख्यात हिन्दी पत्रकारों में से एक रवीश कुमार का आज जन्मदिन है। उनके जन्मदिन पर आज वो दिन भर ट्विटर पर ट्रेंड होते रहे। किसी ने उनकी पत्रकारिता को सराहा तो किसी ने आलोचना की। मैगसेसे अवॉर्ड से सम्मानित रवीश कुमार हमेशा अपने शो प्राईमटाईम में यह बात दोहराते हैं कि न्यूज़ चैनल देखना बंद कर दीजिए। वो भारत में पत्रकारिता के हाल पर कटाक्ष करने से नहीं चूकते। मैगसेसे अवॉर्ड जीतने के बाद दी गई उनकी स्पीच से हमने कुछ अंश( Ravish kumar quotes) निकाले हैं जिन्हें हम सभी को ज़रुर पढ़ना चाहिए।

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रविश कुमार की स्पीच की 10 ज़रूरी बातें

01

सूचना जितनी पवित्र होगी, प्रामाणिक होगी, नागरिकों के बीच भरोसा उतना ही गहरा होगा। देश सही सूचनाओं से बनता है। फ़ेक न्यूज़, प्रोपेगंडा और झूठे इतिहास से हमेशा भीड़ बनती है।

02

मीडिया अब सर्वेलान्स स्टेट का पार्ट है। वह अब फोर्थ एस्टेट नहीं है, बल्कि फर्स्ट एस्टेट है। प्राइवेट मीडिया और गर्वनमेंट मीडिया का अंतर मिट गया है। इसका काम ओपिनियन को डायवर्सिफाई नहीं करना है, बल्कि कंट्रोल करना है. ऐसा भारत सहित दुनिया के कई देशों में हो रहा है।

03

असहमति लोकतंत्र और नागरिकता की आत्मा है। उस आत्मा पर रोज़ हमला होता है। जब नागरिकता ख़तरे में हो या उसका मतलब ही बदल दिया जाए, तब उस नागरिक की पत्रकारिता कैसी होगी।

04

मेरे ख़्याल से सिटिज़न ज़र्नलिज़्म की कल्पना का बीज इसी वक्त के लिए है, जब मीडिया या मेनस्ट्रीम जर्नलिज़्म सूचना के खिलाफ हो जाए। उसे हर वह आदमी देश के खिलाफ नज़र आने लगे, जो सूचना पाने के लिए संघर्ष कर रहा होता है।मेनस्ट्रीम मीडिया नागरिकों को सूचना से वंचित करने लगे। असमहति की आवाज़ को गद्दार कहने लगे।

05

भारत का मेनस्ट्रीम मीडिया पढ़े-लिखे नागरिकों को दिन-रात पोस्ट-इलिटरेट करने में लगा है। वह अंधविश्वास से घिरे नागरिकों को सचेत और समर्थ नागरिक बनाने का प्रयास छोड़ चुका है। अंध-राष्ट्रवाद और सांप्रदायिकता उसके सिलेबस का हिस्सा हैं।

06

जब मेनस्ट्रीम मीडिया में विपक्ष और असहमति गाली बन जाए, तब असली संकट नागरिक पर ही आता है। दुर्भाग्य से इस काम में न्यूज़ चैनलों की आवाज़ सबसे कर्कश और ऊंची है।

07

भारत के नागरिकों में लोकतंत्र का जज़्बा बहुत ख़ूब है, लेकिन न्यूज़ चैनलों का मीडिया उस जज़्बे को हर रात कुचलने आ जाता है। भारत में शाम तो सूरज डूबने से होती है, लेकिन रात का अंधेरा न्यूज चैनलों पर प्रसारित ख़बरों से फैलता है।

08

एक सरकार का मूल्यांकन आप तभी कर सकते हैं, जब उसके दौर में मीडिया स्वतंत्र हो।

09

मैं ऐसे किसी दौर या देश को नहीं जानता, जो ख़बरों के बग़ैर धड़क सकता है। किसी भी देश को ज़िंदादिल होने के लिए सूचनाओं की प्रामाणिकता बहुत ज़रूरी है।

10

गांधी ने कहा था - आप इन निकम्मे अखबारों को फेंक दें। कुछ ख़बर सुननी हो, तो एक दूसरे से पूछ लें. अगर पढ़ना ही चाहें, तो सोच-समझकर अख़बार चुन लें, जो हिन्दुस्तानवासियों की सेवा के लिए चलाए जा रहे हों। जो हिन्दू और मुसलमान को मिलकर रहना सिखाते हों। भारत के अखबारों और चैनलों में हिन्दू-मुसलमान को लड़ाने-भड़काने की पत्रकारिता हो रही है। गांधी होते, तो यही कहते, जो उन्होंने 12 अप्रैल, 1947 को कहा था और जिसे मैं यहां आज दोहरा रहा हूं।

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