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मिट्टी के देवा: मूर्तिकार प्रकाश बेदी की चौथी पीड़ी सीख रही है मूर्तियां बनाना

प्रकाश बेदी पिछली तीन पीड़ियों से मूर्ती बनाकर ही अपने परिवार का लालन पालन कर रहे हैं। उनके दादा मैनपुरी इटावा के रहने वाले थे, सीहोर शहर के आराकश मौहल्ले में ही प्रकाश का जन्म हुआ।

By Nehal Rizvi
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Prakash Bedi Sculptor of Sehore

प्रकाश बेदी (Prakash Bedi) गणपति की मूर्ति को अंतिम रुप देते हुए बारिश में भीग चुकी कुछ मूर्तियां दिखाते हुए कहते हैं कि इन मूर्तियों को कोई नहीं लेगा, मेरा इस वर्ष बारिश की वजह से 1.5 लाख का नुकसान हो गया है। गणेश उत्सव शुरु होने में महज़ दो दिन बचे हैं, 31 अगस्त से गणपति विराजमान हो जाएंगे। अगर ये मूर्तियां तब तक ठीक नहीं कर पाया तो फिर पूरे एक साल के लिए कमरा किराए पर लेकर इन मूर्तियों को रखना पड़ेगा। जो मूर्तियां ज्यादा खराब हो चुकी हैं उन्हें विसर्जित करना होगा।

बारिश से भारी नुकसान

इस वर्ष भोपाल से 35 किलोमीटर दूर स्थित सीहोर शहर में बारिश ने सारे रिकॉर्ड ध्वस्त कर दिए। 21 अगस्त की रात से शुरु हुई बारिश अगले दो दिन तक अपना कहर बरपाती रही। बारिश के साथ आई आंधी सीहोर शहर के मूर्तिकार प्रकाश बेदी (Sculptor Prakash Bedi) के लिए भी मुसीबतों का अंबार लेकर आई। उनका पूरा घर मूर्तियों से भरा पड़ा है, बड़ी मूर्तियां वो घर के बाहर ही रखते हैं, 21 अगस्त को आई बारिश से उन्होंने जैसे तैसे मूर्तियों को प्लास्टिक से ढंक कर बचाया। फिर भी कई मूर्तियां पानी लगने और नमी की वजह से खराब हो गई।

प्रकाश बेदी (Sculptor Prakash Bedi) पिछली तीन पीड़ियों से मूर्ती बनाकर ही अपने परिवार का लालन पालन कर रहे हैं। उनके दादा मैनपुरी इटावा के रहने वाले थे, सीहोर शहर के आराकश मौहल्ले में ही प्रकाश का जन्म हुआ। 14 वर्ष के हुए तो पिता गुज़र गए, बेहद कम उम्र में प्रकाश ने मूर्ती बनाना शुरु किया। उनके दादा उन्हें साथ बैठाकर बताते की कैसे मूर्तियों को आकार देते हैं, कैसे सजाते हैं और किन बातों का ध्यान रखते हैं। प्रकाश बताते हैं कि यह उनकी चौथी पीड़ी भी इस काम को सीख रही है, उनकी बेटी और बेटा दोनों मूर्तियां बना लेते हैं।

सीहोर शहर में 10-12 मूर्तिकार हैं और वो सभी प्रकाश बेदी (Sculptor Prakash Bedi) की परिवार से ही हैं। जनवरी से ही वो गणेश जी की मूर्ती का काम शुरु कर देते हैं, उसके बाद दुर्गाजी और फिर लक्ष्मी जी का काम शुरु होते है। सितंबर से जनवरी तक उन्हें उनकी मेहनत का फल मिलता है। बाकि पूरा साल इस दौरान हुई आमदनी पर ही कटता है। घर के सभी खर्चे और कारीगरों की पगार इस आमदनी से निकल जाती है। हालांकि कई बार उन्हें इस काम के लिए लोन भी लेना पड़ता है। सालाना 3-4 लाख रुपए की आमदनी उन्हें इस काम से होती है।

मूर्ती में इस बार राम मंदिर डिज़ाईन की धूम

राम मंदिर की डिज़ाईन वाली मूर्ति दिखाकर प्रकाश (Sculptor Prakash Bedi) कहते हैं कि इस बार इस अयोध्या मंदिर की डिज़ाईन लोगों को खूब पसंद आ रही है। वो मूर्ति बनाते हुए यह ध्यान रखते हैं कि किसी भी तरह से धार्मिक आस्था को चोट न पहुंचे। इन मूर्तियों से लोगों की आस्था जुड़ी है, ऐसे में किसी भी प्रकार से भगवान की मूर्ति का मज़ाक बने, ऐसे डिज़ाईन वो नहीं बनाते। बस वो इस बात का ध्यान रखते हैं कि मूर्ति आकर्षक हो और मनमोहक लगे।

प्रकाश बेदी के घर में सभी लोग मूर्ती बनाने में सहयोग करते हैं, घर की महिलाएं भी इस काम में सहयोग करती है। प्रकाश बेदी ने शादी के बाद अपनी पत्नी को भी यह काम सिखाया। मूर्तियों में रंग भरना, श्रंगार करना और उनमें सुधार करने का काम महिलाएं कर लेती हैं।

प्रकाश (Sculptor Prakash Bedi) कहते हैं कि उनकी बेटी 14 साल की है, वो भी मू्र्ती बना लेती हैं। साथ ही वो सलाह भी देती हैं कि पापा इसे ऐसे नहीं ऐसे करते हैं। मुझे लगता है कि शायद हमारी अगली पीड़ी हमसे भी आगे निकल जाएगी।

हालांकि प्रकाश अपने बच्चों को खूब पढ़ाना चाहते हैं और वो चाहते हैं कि वो पढ़ाई के बाद अगर समय बचे तभी मूर्तियों का काम करें। उनका बेटा पुलिस की नौकरी करने का सपना देखता है, और प्रकाश उसके सपने को साकार करने का। लेकिन उन्हें शंका है कि आजकल आसानी से नौकरियां मिलती नहीं है इसलिए अगर पुश्तैनी काम भी साथ में सीख लिया जाए तो कोई बुराई नहीं है।

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