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'सीहोर के ग्वालटोली में जन्माष्टमी की धूम वृंदावन से कम नही है'

सीहोर शहर में ग्वाल टोली में जन्माष्टमी पर खास कार्यक्रम होते हैं। ग्वालों की भूमि होने की वजह से भी इस मंदिर की काफी मान्यता है।

By Pallav Jain
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Sehore Janmashtmi gwaltoli

Sehore Janmashtmi: कृष्ण जन्माष्टमी का त्यौहार पूरे देश में हर्षोल्लास के साथ मानाया जा रहा है। कृष्ण ने अपना बचपन एक ग्वाले के रुप में बिताया था, वो गाये चराने जाते और अपनी बांसुरी की धुन से सबको मोहित करते। भारत में यादव समाज के लोगों को कृष्ण का वंशज बताया गया है। यादव समाज के लोग मुख्यत: गाय पालने का काम करते आए हैं। कृष्ण जन्माष्ट्मी का पर्व उनके लिए काफी खास होता है।

सीहोर शहर में यादवों की बस्ती को ग्वाल टोली बोला जाता है, यहां एक बहुत ही प्राचीन राधा श्याम मंदिर है, जहां से शुरु होती है कृष्ण यात्रा जो शहर के अलग-अलग इलाके से होती हुई दोबारा मंदिर लौटती है। मंदिर में शाम के समय कृष्ण भक्ति के कार्यक्रम होते हैं।

जब यह कृष्ण जुलूस शहर के अलग अलग चौराहों पर पहुंचता है तो वहां पर इसका फूलों की बारिश के साथ लोग स्वागत करते हैं। माना जाता है कि भगवान कृष्ण को बचपन में दही और माखन का बेहद शौक था, वो अक्सर घर में टंगी माखन की मटकी को फोड़कर उससे माखन खाया करते थे। आज भी लोग जन्माष्ट्मी के दिन दही हांडी का आयोजन करते हैं जिसमें दही और माखन से भरी मटकी को ऊंचाई पर लटकाया जाता है, और युवा ह्यूमन पिरामिड बनाकर मटकी को फोड़ते हैं। (Sehore Janmashtmi) सीहोर शहर में भी जब कृष्ण जुलूस अलग-अलग चौराहों पर पहुंचता है तो दही हांडी तोड़ी जाती है।

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सीहोर शहर के गंज स्थित चौराहे पर दही हांडी का आयोजन

ग्वाल टोली का राधाश्याम मंदिर काफी पुराना मंदिर है, इस वजह से यहां शहर के सभी लोग एकत्रित होते हैं। ग्वालों की भूमि होने की वजह से भी इस मंदिर की काफी मान्यता है। सुबह से ही यहां लोगों का हूजूम उमड़ने लगता है और पूरा दिन यहां कृष्ण भक्ति के कार्यक्रम होते हैं। शाम में भगवान कृष्ण का जन्मउत्सव मनाया जाता है, जिसमें कृष्ण भक्ति के गीत गाए जाते हैं और बाल कृष्ण को पालने में झुलाया जाता है।

ग्वाल टोली शहर ग्वालों की वजह से जानी जाती है, जो पीड़ियों से गाय पालने का काम करते आए हैं। ग्वालटोली में हर दूसरी दुकान का नाम भगवान कृष्ण के अलग अलग नामों पर रखा गया है। कहीं कान्हां दूध डेरी है तो कहीं किशन किराना। इससे एहसास होता है कि इस जगह पर भगवान कृष्ण को कितना माना जाता है।

(Sehore Janmashtmi) सीहोर शहर में ज्यादातर लोगों के घर दूध ग्वालटोली से ही आता है। यहां लगभग हर घर में गाय और दूसरे मवेशी पाले जाते हैं। लेकिन समय के साथ नई पीड़ी यह कार्य छोड़ रही है और दूसरे कामों की तरफ अपना रुख कर रही है। इसकी एक मुख्य वजह पर्याप्त आमदनी न होना है।

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