उज्जैन महाकाल की नगरी है। श्रीकृष्ण का गुरुकुल है, और कालिदास की तपस्थली है। उज्जैन मध्यप्रदेश सांस्कृतिक केंद्र है, उज्जैन उन चुनिंदा तीर्थों में से है जहां सिंहस्थ महाकुंभ का आयोजन होता है।
लोकसभा चुनावों के लिहाज से भी उज्जैन की सीट महत्वपूर्ण है। उज्जैन 1989 से 2004 तक लगातार भाजपा के सत्यनारायण जाटिया जीते है। 2009 में कांग्रेस जीती लेकिन उसके बाद लगातार भाजपा ही जीतती आई है। प्रदेश के वर्तमान मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव भी उज्जैन से ही आते हैं। आइये जानते हैं इस बार किनके बीच है मुकाबला और जनता के लिए कौन से मुद्दे हैं खास।
क्या कहती है उज्जैन की डेमोग्राफी
उज्जैन लोकसभा में उज्जैन की 7 और रतलाम की 1 विधानसभा सम्मिलित है। इस लोकसभा में नागदा-खचरौद, महीदपुर, घटिया, वडनगर, उज्जैन उत्तर, उत्तर दक्षिण, आलोट और तराना विधानसभाएं हैं। इन 7 में से 6 पर भाजपा और 2 पर कांग्रेस का कब्जा है। उज्जैन लोकसभा अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है।
उज्जैन में 61 फीसदी आबादी ग्रामीण है और 38 फीसद शहरी है। उज्जैन में अनुसूचित जाति की आबादी 26 फीसदी है, और अनुसूचित जनजाति 2.3 फीसद है। उज्जैन में मुस्लिम जनता 11.57 प्रतिशत है।
इस बार कौन है आमने-सामने
भाजपा ने इस बार भी अपने 2019 के उम्मीदवार को रिपीट किया है। उज्जैन में भाजपा के उम्मीदवार अनिल फिरोजिया हैं। अनिल फिरोजिया ने 2019 का चुनाव भी 3 लाख से अधिक वोटों से जीता था। 2013 से 2018 तक अनिल तराना से विधायक भी रह चुके हैं, और उज्जैन विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष भी रह चुके हैं। इसके अलावा अनिल फिरोजिया को खाद्य और उपभोक्ता मामलों, अनुसूचित जाती व जनजाति कल्याण पर बनी स्टैंडिंग कमेटी के सदस्य भी रह चुके है। अनिल विदेश मामलों पर बनी सलाहकार संसदीय समिति के भी सदस्य हैं।
अनिल फिरोजिया के सामने कांग्रेस ने महेश परमार को खड़ा किया है। महेश साल 2000 से जिला सदस्य रहे हैं और 2013 से 2018 तक जिला पंचायत अध्यक्ष भी रहे हैं। महेश परमार वर्तमान में तराना से 2 बार से विधायक हैं। 2018 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने तराना से अनिल फिरोजिया को ही हराया था। अब एक बार फिर उनका सामना अनिल फिरोजिया से है, लेकिन इस बार मैदान बड़ा है।
क्या हैं उज्जैन की जनता के मुद्दे
उज्जैन की जनता के लिए सबसे जरूरी मुद्दा है क्षिप्रा नदी। क्षिप्रा नदी की स्थिति सुधारने के लिए कई प्रयास और 600 करोड़ से अधिक की राशि खर्च की जा चुकी है लेकिन इसमें कोई सुधार नहीं आया है। 2016 के सिंहस्थ के समय क्षिप्रा सूखने की कगार पर थी, तब क्षिप्रा से नर्मदा को जोड़ कर उपाय निकाला गया था। अभी क्षिप्रा प्रदूषित है और बीमार है। एक सप्ताह पहले ही आने वाले त्योहारों, गुड़ी पड़वा हुए सोमवती अमावस श्रद्धालुओं को पर्याप्त जल मिले, इसलिए कान्हन और नर्मदा का जल क्षिप्रा में जोड़ा गया था। कान्हन के प्रदूषित जल से ऑक्सीजन की कमी कारण क्षिप्रा की कई मछलियां मर गईं, अंततः इसे मिट्टी का बांध बनाकर रोका गया। क्षिप्रा की हालत ऐसी है की यहां श्रद्धालू स्नान करने से कतराते हैं।
उज्जैन का महाकालेश्वर मंदिर 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। यहां देश दुनिया से श्रद्धालू दर्शन करने आते हैं। ये सभी उज्जैन में बढ़े वीवीआईपी कल्चर से दुखी हैं। जहां आम श्रद्धालुओं को घंटों लाइन में लगने के बाद मात्र कुछ सेकंड वो भी काफी दूर से दर्शन मिलता है, वहीं वीवीआईपी लोग आरती जलाभिषेक करते हैं। यहां महाकाल का आम भक्त अपनी श्रद्धा को पैसे के सामने हारता पाता है।
उज्जैन में महाकाल लोक कॉरिडोर धूम धाम से बना जिसका उद्घाटन खुद प्रधानमंत्री मोदी ने किया। कुछ की समय बाद तेज हवा चलने से यहां की मूर्तियां गिर कर छतिग्रस्त हो गईं। एक ओर भाजपा का दावा है की इसे टूरिज्म बढ़ावा मिलेगा और लोगों के लिए आय के अवसर बनेंगे, वहीं विपक्ष अब भी महाकाल लोक छतिग्रस्त मूर्तियों का हिसाब मांग रहा है।
सिंहस्थ 2028 से पहले मध्यप्रदेश सड़क विकास निगम लिमिटेड (MPRDC) ने इंदौर-उज्जैन मार्ग की चौड़ाई बढ़ाने का निर्णय का लिया, इसे अब 6-लेन करने की बाद की जा रही है।
इसके अलावा केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने भी इंदौर स्टेशन से महाकाल मंदिर तक 189 करोड़ की लागत की रोप-वे परियोजना को स्वीकृति दे दी है। इससे जाहिर तौर पर यात्रियों और निवासियों को सुलभता होगी।
उज्जैन को मध्यप्रदेश के टूरिज्म पॉइंट की तर्ज पर विकसित किया जा रहा है। उज्जैन में मतदान चौथे चरण में 13 मई को होंगे। अब ये नतीजे ही बताएंगे की उज्जैन किसको अपना सांसद चुनती है। ये आने वाला वक्त ही बताएगा की उज्जैन का विकास किस गति से होता है।
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