/ground-report/media/media_files/1ywLiMgp9O99I5HMkniB.png)
Subhan Singh a fisherman with his boat near Omkareshwar Floating Solar Project, Picture Credit Rajeev Tyagi
Read in English | सुभान सिंह अपनी नांव पर खड़े होकर उंगली के इशारे से हमें पानी पर तैरते सोलर पैनल दिखाते हैं,
"पहले हम वहां मछली पकड़ा करते थे, सबसे अधिक मछली वहीं मिलती थी। हम जाल डालते, इंतज़ार करते, खाना भी यहीं टापू पर खाते थे, पूरा दिन यहीं बीतता था। एक दिन में कभी-कभी 50 किलो तक मछली मिल जाती थी। लेकिन अब पानी पर सोलर प्लेट लग चुकी हैं, हमारी नांव वहां नहीं जा सकती, सब कुछ खत्म हो गया है।"
ओमाकरेश्वर फ्लोटिंग सोलर पर हमारी वीडियो रिपोर्ट
सुभान सिंह का गांव 'एखंड' ओमकारेश्वर बांध की कावेरी शाखा से सटे उन तीन गांवों में से एक है, जहां 21 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में भारत का सबसे बड़ा फ्लोटिंग सोलर पावर प्लांट स्थापित किया गया है। पानी पर सोलर प्लेट्स लगने की वजह से 312 से अधिक मछुआरे अब मछली पकड़ने का काम नहीं कर पा रहे हैं। परिवार के सदस्यों को भी शामिल करें तो इससे कुल 1877 लोगों का जीवन प्रभावित हुआ है। इनमें ज्यादातर लोग वो हैं जिन्हें ओमकारेश्वर बांध के निर्माण के वक्त अपना घर और ज़मीन खोनी पड़ी थी और विकल्प के तौर पर इन्होंने मछली पकड़ना या नाव चलाने का काम सीखा था। फ्लोटिंग सोलर इनके लिए दूसरे झटके की तरह होगा।
5 हज़ार करोड़ रुपए की लागत वाला 600 मेगावॉट क्षमता का यह प्रोजेक्ट दो चरणों में पूरा होगा। इस प्रोजेक्ट का निर्माण केंद्र सरकार की अल्ट्रा मेगा रिन्यूएबल एनर्जी पावर पार्क (UMREPP) योजना के तहत किया जा रहा है।
/ground-report/media/media_files/FkgfK4PnEdHNDh6Jilvc.jpg)
हम अपने घर से बेघर हो गए हैं
इस पूरे प्रोजेक्ट में 6 लाख 20 हज़ार सोलर प्लेट्स लगाई जाएंगी, अकेले सुभान सिंह के गांव एखंड में ही 2 लाख 2 हजार सोलर प्लेट पानी में लगाई गई हैं।
सुभान सिंह की पत्नी गीता कहती हैं
"जहां मछली मिलती थी वहां तो सोलर प्लेट लग गई है, अब मछली कहां मारे हम? जाल डालते हैं तो कंपनी वाले जाल काट देते हैं। हम शुरु से मछली के पीछे भागे हैं, न पढ़े-लिखे हैं न कोई दूसरा काम आता है। पिछले एक साल (अगस्त 2023) से काम बंद है, ऐसे में बच्चे कैसे पालें हम?"
गीता उन 82 महिला मछुआरों में से एक हैं जो इस प्रोजेक्ट से प्रभावित होंगी। गीता ने अपने पिता से मछली मारना सीखा और शादी के बाद इस काम में अपने पती का हाथ बंटाया। पति की गैरमौजूदगी में वो अकेले ही यह काम करती हैं।
/ground-report/media/media_files/YBtlGkIbsBOiIdi4ebpL.jpg)
फ्लोटिंग सोलर प्रोजेक्ट की फाईनल इंवायरमेंटल एंड सोशल इंपैक्ट असेसमेंट रिपोर्ट में यह स्वीकार किया गया है कि इस प्रोजेक्ट की वजह से 6 गांव (गुंजारी, बिलाया, छोटा एखंड, एखंड, इंधावरी और सक्तापुर) के 312 मछुआरों की आजीविका बुरी तरह प्रभावित होगी। रिपोर्ट में साफ तौर पर लिखा है कि जिन परिवारों की आजीविका इस प्रोजेक्ट से प्रभावित होगी उनके पास रोज़गार का दूसरा कोई साधन नहीं है। ये लोग आर्थिक और सामाजिक रुप से बेहद कमज़ोर तबके से आते हैं।
रिपोर्ट के मुताबिक लगभग सभी 312 प्रभावित मछुआरे कमज़ोर श्रेणी में आते हैं और दूसरी बार विस्थापन का दर्द झेलेंगे। रिपोर्ट में प्रभावितों के लिए पुनर्वास योजना बनाने और उसका क्रियांवयन करने पर विशेष ज़ोर दिया गया है।
विस्थापन
परियोजना कार्यान्वयन कंपनी रीवा अल्ट्रा मेगा सोलर लिमिटेड के एक वरिष्ठ अधिकारी ने ग्राउंड रिपोर्ट को बताया,
“हमने यह प्लांट 12 वर्ग किमी में स्थापित किया है। इसके बाद भी जलाशय में अभी भी काफी जगह बची हुई है। अत: आजीविका संकट अथवा विस्थापन का प्रश्न ही नहीं उठता। यह कुछ लोगों की निजी महत्वाकांक्षा है। हमने मछुआरा समिति से भी सहमति ली थी। हमने कोई भी प्रोजेक्ट एकदम से शुरू नहीं किया।''
वरिष्ठ अधिकारी ने पुनर्वास योजना के क्रियान्वयन नहीं होने पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया। उपरोक्त बात को अधिकारी द्वारा संबोधित करते हुए नर्मदा बचाओ आंदोलन से जुड़े आलोक अग्रवाल बताते हैं,
“हर समिति का एक कार्यक्षेत्र होता है, जिसके 8 किलोमीटर के रेडियस में ही मछुआरे कानूनन मछली पकड़ सकते हैं। प्रभावित गांवों की 6 मछुआरा समितियों के कार्यक्षेत्र पर सोलर प्लेट्स लगाई गई हैं। जब आप कहते हो कि दूर जाकर मछली मारो तो इन्हें दूसरे गांव जाना पड़ेगा, नए सिरे से रजिस्ट्रेशन करवाना होगा। जब मैं दूसरे गांव जा रहा हूं तो मेरा फिज़िकल डिस्प्लेस्मेंट तो हो ही गया और जब लाईवलीहुड के लिए दूसरी जगह जा रहे हो तो इकोनॉमिक डिस्प्लेस्मेंट भी हो गया, तो आपको पुनर्वास तो करना ही होगा।”
आलोक की बात का सार गीता के कथन से समझ आता है। वो कहती हैं
“हमारा जीवन पानी और नांव पर बीता है ऐसा लगता है, हम अपने घर से बेघर हो गए हैं।”
/ground-report/media/media_files/0MCgxttnCfX5hRztUOS9.jpg)
आलोक आगे कहते हैं कि
“हम नर्मदा बचाओ की लड़ाई लड़ते आए हैं, ऐसे मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने एक सिद्धांत प्रतिपादित किया है कि कोई भी डिस्प्लेस्मेंट होने के 6 महीने पहले रीहैबिलिटेशन पूरा होना चाहिए उसके बाद ही काम शुरु होता है। लेकिन यहां 6 मछुआरा सोसाईटी के 350 से अधिक मछुआरों को उनकी लाईवलिहुड से डिस्प्लेस कर दिया गया और कोई रीस्टोरेशन नहीं हुआ।”
हाईकोर्ट में मामला
प्रभावित मछुआरों की ‘मां सतमाता सैलानी मत्स्योद्योग सहकारी समिति’ और ‘मां काजलरानी विस्थापित आदिवासी मछुआरा सहकारी समिति’ ने पुनर्वास की कोई व्यवस्था न होने के कारण जबलपुर हाईकोर्ट में अपने अधिकारों के लिए याचिका दायर की है।
इस पर आलोक कहते हैं कि
“कोर्ट के सामने दो चीज़ें ऱखी हैं, पहला तो प्रभावितों को स्थाई नौकरी दी जाए और भू-अर्जन कानून 2013 के प्रावधानों के तहत पुनर्वास के लाभ दिये जायें।”
इस मामले में 12 फरवरी को हुई सुनवाई में हाईकोर्ट ने राज्य सरकार और रीवा अल्ट्रा मेगा सोलर लिमिटेड को नोटिस जारी कर जवाब देने को कहा है। हाई कोर्ट ने प्रोजेक्ट के काम पर रोक नहीं लगाई है, लेकिन यह स्पष्ट कहा है कि प्रोजेक्ट का भविष्य कोर्ट के अंतिम निर्णय पर निर्भर करेगा।
/ground-report/media/media_files/2DnUztneECFLXRJcJVyb.jpg)
स्थाई रोज़गार का वादा
ओमकारेश्वर के मछुआरा संघ से जुड़े दीपक वर्मा कहते हैं कि
“प्रोजेक्ट का काम शुरु होने से पहले सर्वे किया गया था। तब हमसे कहा गया था कि 150 लोगों को स्थाई रोज़गार दिया जाएगा, आपके बच्चों को अच्छी शिक्षा मिलेगी। लेकिन प्रोजेक्ट का काम पूरा होने के बाद कंपनी वाले आये ही नहीं, न मुआवज़ा मिला, न नौकरी और न शिक्षा। प्रशासन से भी कोई हमारी खबर लेने नहीं आया। इसीलिए हमने केस कर दिया”
आपको बता दें कि फ्लोटिंग सोलर से प्रभावित होने वाले 312 मछुआरों के लिए लाईवलीहुड रिस्टोरेशन प्लान बनाया गया था, इसका अनुमानित बजट 5 करोड़ 19 लाख 55 हज़ार 200 रुपए आंका गया था। लेकिन ज़मीन पर अभी तक इसका क्रियांवयन नहीं हुआ है। रीस्टोरेशन प्लान में प्रत्येक प्रभावित व्यक्ति को 36000 रुपए तक निर्वाह भत्ता, सभी कमज़ोर प्रोजेक्ट अफेक्टेड फिशरमेन को 50,000 रुपये तक की एकमुश्त अतिरिक्त वित्तीय सहायता, 150 मछुआरों को स्थाई नौकरी, 162 मछुआरों को स्किल डेवलपमेंट ट्रेनिंग और स्व रोज़गार स्थापित करने के लिए ज़रुरी इक्विपमेंट खरीद में आर्थिक सहायता का प्रावधान है।
सुभान सिंह कहते हैं कि उन्हें फ्लोटिंग सोलर परियोजना से कोई समस्या नहीं है।
"दुख केवल इस बात का है कि हमारे जलाशय पर सोलर प्लेट लगाने से पहले हमसे पूछा तक नहीं गया। मुआवज़ा देना तो दूरी की बात है।"
मुआवज़े की बात पर गीता कहती हैं कि
“उचित मुआवज़ा मिलेगा तो हम कहीं भी तालाब खुदवा कर मछली पालन और अपने बच्चों की परवरिश कर सकते हैं। सरकार को हमारे बारे में सोचना चाहिए।”
/ground-report/media/media_files/gJgjDFFTWls7XNk13cQL.jpg)
फ्लोटिंग सोलर और तूफान
सुभान सिंह हमें अपनी नाव से फ्लोटिंग सोलर के बेहद करीब ले जाते हैं। पानी में बहुत दूर तक सोलर प्लेट्स तैरती दिखाई देती हैं, पानी की सतह पर पहले फ्लोटर्स लगाए गए हैं जिसके ऊपर सोलर प्लेट्स कसी गई हैं। फ्लोटर्स को आपस में एंकर किया गया है और सतह पर हुक लगाया गया है जिससे की तेज़ बहाव या तूफान की स्थिति में इन्हें नुकसान न हो। आलोक अग्रवाल 9 अप्रैल की घटना का ज़िक्र कर तूफान में फ्लोटिंग सोलर के टिके रहने की संभावना पर सवाल खड़ा करते हैं।
दरअसल मंगलवार 9 अप्रैल को 50 किलोमीटर प्रति घंटे की ऱफ्तार से आए समर स्टॉर्म में इंधावाड़ी गांव स्थिति फ्लोटिंग सोलर यूनिट की सोलर प्लेट्स उड़कर एक जगह इकट्ठा हो गई थी। रीवा अलट्रा मेगा सोलर लिमिटेड से मिली जानकारी के मुताबिक तूफ़ान से हुए नुकसान का आंकलन किया गया है, यह बेहद कम 0.01 प्रतिशत के आसपास रहा होगा। जो प्लेट्स अपनी जगह से हटी थीं वह सही तरीके से बाँधी नहीं गई थीं।
आलोक कहते हैं कि
“यहां तो इससे भी अधिक तीव्रता के तूफान आते रहते हैं, एक्सट्रीम वेदर इवेंट्स के दौर में यह फ्लोटिंग सोलर कितना टिक पाएगा यह देखने वाली बात होगी।”
सुभान सिंह नांव घर की तरफ मोड़ लेते हैं और कहते हैं कि हम इन सोलर प्लेट्स को कोई नुकसान नहीं पहुंचाएंगे, बस सरकार हमें उचित मुआवज़ा दे दे तो हम अपनी रोज़ी का कुछ और बंदोबस्त कर लेंगे।
रीवा अलट्रा मेगा सोलर लिमिटेड के मुताबिक चुनाव बाद इस प्रोजेक्ट का सेकेंड फेज़ अवॉर्ड करवा लिया जाएगा, उधर मछुआरे हाई कोर्ट से आस लगाए बैठे हैं।
यह भी पढ़ें
- बुन्देलखण्ड के गांवों की हकीकत, सरकार के जल जीवन मिशन के आंकड़ों से उलट
- Loksabha Election 2024: क्या भोपाल में भाजपा का विजय रथ रोक पाएगी कांग्रेस?
- राजस्थान में पानी के लिए तरसते इंसान और जानवर, पलायन ही सहारा
- झाबुआ की मन्नु परमार जिन्होंने अपने जज़्बे से तोड़ा पलायन का जाल
पर्यावरण से जुड़ी खबरों के लिए आप ग्राउंड रिपोर्ट को फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम, यूट्यूब और वॉट्सएप पर फॉलो कर सकते हैं। अगर आप हमारा साप्ताहिक न्यूज़लेटर अपने ईमेल पर पाना चाहते हैं तो यहां क्लिक करें।