केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय के अंतर्गत आने वाली जेनेटिक इंजीनियरिंग अप्रेज़ल कमीटी (GEAC) ने 18 अक्टूबर को देश में ट्रांसजीनिक हायब्रिड मस्टर्ड डीएमएच 11 (Transgenic hybrid mustard DMH-11 ) के इस्तेमाल को लेकर हरी झंडी दिखाई जिसके बाद देश में जेनेटिकली मॉडीफाईड मस्टर्ड (Geneticlally Modified Mustard) के इस्तेमाल को लेकर रास्ते खुल गए हैं। माना जा रहा है कि जेनेटिक मॉडिफाईड मस्टर्ड (GM Mustard) के इस्तेमाल से किसानों को फायदा होगा और देश में सरसो की पैदावार बढ़ जाएगी।
लेकिन कई किसान संगठन और एपीकल्चर इंडस्ट्री (Apiculture Industry) से जुड़े किसान इसका विरोध कर रहे हैं। आईये समझते हैं कि जीएम मस्टर्ड क्या है और इसका विरोध क्यों हो रहा है।
विरोध
- डाउन टू अर्थ की खबर के मुताबिक करीब 100 से ज्यादा एपीक्लचरिस्ट और बीकीपर्स ने भरतपुर राजस्थान स्थित आईसीएआर मस्टर्ड रीसर्च इंस्टीट्यूट पर केंद्र सरकार द्वारा जीएम मस्टर्ड को अनुमति देने के फैसले का विरोध किया।
- राजस्थान, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश और हरियाणा के किसानों ने भी 4 नवंबर 2022 को केंद्र सरकार से इस फैसले को वापस लेने की मांग की है।
- मधुमक्खी-पालन उद्योग (Beekeeping industry) के महासंघ ‘कंफेडरेशन ऑफ ऐपीकल्चर इंडस्ट्री’ (CAI) ने इस फैसले को ‘मधु क्रांति (Honey Revolution) के लिए बेहद घातक बताते हुए इस पर रोक लगाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से दखल देने की मांग की है।
- भारतीय किसान यूनियन के राकैश टिकैत (Rakesh Tikait) ने कहा है कि ‘‘जब पूरी दुनिया में कोई चीज प्रतिबंधित है, 400 वैज्ञानिकों की रिपोर्ट हमारे पास है, बीटी काटन की खेती के खराब परिणाम हमारे पास हैं तो ऐसे में भारत सरकार को क्या जरूरत पड़ी है कि वह जीएम सरसों की खेती की अनुमति दे। क्या देश में सरसों की कमी है।’’ हम देश में कहीं भी जीएम सरसो का ट्रायल नहीं होने देंगें।"
- सुप्रीम कोर्ट में सरकार के फैसले के खिलाफ याचिका भी दायर की गई है, अदालत ने केंद्र से इस हाइब्रिड फसल (GM Mustard) की खेती को पूरी तरह से मंजूरी देने से फिलहाल रुकने को कहा है.इस मामले पर अब सुप्रीम कोर्ट 10 नवंबर को सुनवाई करेगा
क्यों हो रहा है विरोध?
दरअसल केंद्र सरकार ने जेनेटिक इंजीनियरिंग अप्रेज़ल कमीटी (Genetic Engineering Appraisal Committee) द्वारा धारा मस्टर्ड हाईब्रिड डीएमएच 11 (Dhara Mustard hybrid DMH-11) के इस्तेमाल को दिए गए इंवायरमेंट क्लीयरेंस के बाद जीएम सरसो (GM Mustard) के फील्ड ट्रायल को मंजूरी दे दी है। जिसका किसान संगठन, एपीकल्चर से जुड़े किसान, हनी बिज़नेस से जुड़े लोग और पर्यावरण विद विरोध कर रहे हैं।
किसानों का मानना है कि इससे मधुमक्खी पालन से जुड़े किसानों का रोज़गार छिन जाएगा तो वहीं पर्यावरणविदों का कहना है कि इससे बायोडायवर्सिटी को काफी नुकसान होगा।
Sr.No. | State/UT | Number of honey-producing units/Beekeepers |
1 | Jammu& Kashmir | 1621 |
2 | Himachal Pradesh | 16069 |
3 | Punjab | 19269 |
4 | UT Chandigarh | 3 |
5 | Uttarakhand | 1303 |
क्या है जेनेटिक मॉडीफाईड सरसों?
जीएम मस्टर्ड में भारतीय किस्म वरुणा की क्रॉसिंग पूर्वी यूरोप की किस्म अर्ली हीरा – 2 से कर तैयार किया गया है। दावा किया गया है कि DMH-11 की उपज वरुणा से 28 फीसदी ज्यादा है।
हाईब्रिडाईज़ेशन के लिए दो अलग जीन वाली सेम स्पीसी के प्लांट वैराईटी से मिलाकर एक क्रॉस वैराईटी डेवलप की जाती है। ऐसी क्रॉस फसलों के फर्स्ट जनरेशन ऑफस्प्रिंग दोनों पैरेंट के मुकाबले ज्यादा यील्ड देते हैं।
हालांकी यह हाईब्रिडाईज़ेंशन मस्टर्ड में करना आसान नहीं था, क्योंकि इसके फूल में मेल और फीमेल दोनों पार्ट होते हैं और यह सेल्फ पॉलीनेटिंग प्लांट होता है।
सेल्फ पॉलिनेशन का मतलब होता है कि एक प्लांट के एग्स दूसरे प्लांट के पॉलेन ग्रेन से फर्टिलाईज़ नहीं हो सकते हैं। इसलिए मस्टर्ड का हाईब्रिड बनाना कॉटन, मक्का और टमाटर की तुलना में ज्यादा कठिन था।
फिर कैसे तैयार हुआ GM Mustard?
इसके लिए भारतीय वैराईटी वरुणा के ‘barnase’ जीन को युरोप के अर्ली हीरा म्यूटेंट (बार्सटार जीन से मिलाया गया और एफ 1 प्रोजेनी डेवलप की गई ।
क्या हैं इसके फायदे?
जैनेटिक मॉडिफाईड सरसों में कीट से कम नुकसान होगा और इसकी पैदावार ज्यादा होगी जिससे बाज़ार में भारत खाद्य तेल का बड़ा उत्पादक देश बन जाएगा।
क्या हैं नुकसान?
- मधुमक्खी पालने वाले किसानों का कहना है कि पहले जिन जीएम फसलों को अनुमति दी गई उसकी वजह से हनी का प्रोडक्शन कम हो चुका है। सरसो की फसल में भी अगर जीएम सीड इस्तेमाल हुआ था, एपीकल्चर इंडस्ट्री को और ज्यादा नुकसान होगा।
- सरसो एक ऐसी नैचुरल क्रॉप है जिसपर ज्यादातर मधुमक्खी पालक डिपेंडेंट हैं। पहले साल के आठों महीने किसानों को हनी मिल जाता था। लेकिन जीएम सीड से उगाई गई फसलों में फ्लावरिंग का समय घट चुका है जिसकी वजह से अब कम मधु इकट्ठा हो रहा है।
- सनफ्लावर, कॉटन, ज्वार, बाजरा, कॉर्न, सीसम, तुअर और चने की फसल भी हनी का अच्छो सोर्स हुआ करती थी, लेकिन अब इन फसलो में ज्यादा यील्ड और शॉर्ट फ्लावरिंग डेज़ वाले सीड इस्तेमाल होने लगे हैं।
- हायब्रिड फसलों ने नैचुरल प्रोसेस को बुरी तरह प्रभावित किया है जिसकी वजह से मधुमक्खियों की संख्या कम हो रही है और इसके साथ ही हनी प्रोडक्शन भी। अब हनी हार्वेस्ट का सीज़न साल में 8 महीने से घट कर 3 महीने रह गया है।
- भारत दुनिया में हनी का एक बड़ा एक्सपोर्टर देश है। मस्टर्ड से हार्वेस्ट होने वाला हनी का इसमें एक बड़ा हिस्सा है। विरोध करने वाले किसानों को डर है कि इससे उनकी लाईवलीहुड खतरे में पड़ जाएगी।
आपको बता दें की भारत का ज्यादातर हनी मस्टर्ड की फसल से हार्वेस्ट होता है। मस्टर्ड हनी की डिमांड यूएस और यूरोप के मार्केट में काफी ज्यादा है। लेकिन ये देश जीएम फ्री सर्टिफिकेट मांगते हैं। मस्टर्ड में जीएम फसलों के इस्तेमाल के बाद सीधे तौर पर भारता का एक्सपोर्ट प्रभावित होगा.
GM Mustard के विरोध का एक कारण और भी है
जीएम मस्टर्ड में थर्ड बार जीन होता है जो इसे वीडीसाईड ग्लूफौसीनेट अमोनियम टॉलरेंट बनाता है। पहले खरपतवार हटाने के लिए मैनुअल लेबर लगानी होती थी, अब कैमिकल डालने से काम हो जाएगा।
आरएसएस के स्वदेशी जागरण मंच कहता है कि इससे मज़दूरों का रोज़गार खत्म हो जाएगा और केमीकल का इस्तेमाल बढ़ेगा।
हालांकि जेनेटिक इंजीनियरिंग अप्रेज़ल कमीटी का कहना है कि जीएम सरसों के इस्तेमाल से मधुमक्खी और अन्य कीटों को नुकसान होगा ऐसे कोई साईंटिफिक एविडेंस नहीं है। जीईऐसी का कहना है कि लोग जीएम सीड का इस्तेमाल करें, फील्ड डिमॉंस्ट्रेशन के बाद हनीबी पर कितना असर होता है उसका व्यापक डेटा उपलब्ध उसके बाद हो पाएगा।
किसानों का कहना है कि बिना रीसर्च करे ही जीएम सरसो को अनुमति दी जा रही है।
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